वैधानिक आवश्यकता का उल्लंघन करने पर कर्मचारी को रोजगार के नियमों और शर्तों को चुनौती देने से नहीं रोका जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-09-04 05:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी को उस स्तर पर रोजगार के नियमों और शर्तों पर सवाल उठाने से नहीं रोका जा सकता है जहां वह खुद को पीड़ित पाता है।

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा,

"यदि रोजगार की शर्तें संबंधित कानून के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुरूप नहीं है तो कर्मचारी उसे चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है और उसे उस स्तर पर पूछताछ करने से नहीं रोका जा सकता है, जहां वह खुद को पीड़ित पाता है।"

इस मामले में उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत प्रदत्त चयन प्रक्रिया के जरिये नियुक्त किये गये शिक्षकों ने इस अधिनियम के सांविधिक योजना के उलट तीन साल के कांट्रैक्ट पर की गयी नियुक्ति की मनमानी शर्तों को चुनौती दी थी। उन्होंने एक रिट याचिका दायर कर यह घोषणा करने की मांग की थी कि वे सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए मूल रूप से नियुक्त शिक्षक (एसोसिएट प्रोफेसर / सहायक प्रोफेसर) और केंद्रीय विश्वविद्यालय एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय सेवा के सदस्य हैं, जो संबंधित अधिनियम के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालय की सेवा के लिए नियुक्ति नियमित शिक्षकों के लिए लागू वेतनमान और अन्य परिणामी लाभों के हकदार हैं।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, विश्वविद्यालय की दलील थी कि चूंकि इन शिक्षकों ने नियुक्ति पत्र में निहित नियमों और शर्तों को स्वीकार कर लिया है, इसलिए वे अब इसे चुनौती नहीं दे सकते।

इस तर्क को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्त व्यक्ति जिस विभाग में नौकरी करने के लिए रखा गया है उससे इतर नियमों और शर्तों को चुनने के लिए आजाद नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

"यह बिना कहे चलता है कि नियोक्ता हमेशा एक प्रमुख स्थिति में होता है और नियोक्ता कर्मचारी के लिए रोजगार की शर्तों को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है। हमेशा हाशिये पर रहने वाले कर्मचारी शायद ही रोजगार के नियमों और शर्तों में मनमानी की शिकायत करते हैं। यह न्यायालय इस तथ्य का न्यायिक नोटिस ले सकता है कि यदि कोई कर्मचारी रोजगार के नियमों और शर्तों पर सवाल उठाने की पहल करता है, तो उसकी नौकरी ही चली जायेगी। सौदेबाजी की शक्ति नियोक्ता के पास ही निहित है और संबंधित प्राधिकार द्वारा निर्धारित शर्तों को स्वीकार करने के लिए कर्मचारी के पास कोई विकल्प नहीं बचता है। यदि यह कारण है, तो कर्मचारी शर्तों को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है, यदि वे शर्त कानून के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुरूप नहीं हैं और उसे उस स्तर पर पूछताछ करने से नहीं रोका जा सकता है जहां वह खुद को व्यथित पाता है।"

अदालत ने कहा कि चूंकि ये शिक्षक अधिनियम की योजना के तहत प्रदान की गई चयन प्रक्रिया से गुजरे हैं, इस तथ्य की परवाह किए बिना कि पद अस्थायी या स्थायी प्रकृति का है, कम से कम उनकी नियुक्ति मूल प्रकृति की है और जब सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्थायी रूप से पद स्वीकृत किया जाता है तो उन्हें स्थायी बनाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि वे स्थायी स्वीकृत पद के खिलाफ अपनी नियुक्ति का दावा करने और अधिनियम 2009 के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षण संकाय के सदस्य बनने के हकदार हो गये हैं।

केस: सोमेश थपलियाल बनाम. कुलपति, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय; सिविल अपील नंबर 3922-3925/ 2017

साइटेशन: एलएल 2021 एससी 414

कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी

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