सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जगन्नाथ मंदिर के पुजारी को अग्रिम जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ मंदिर के पुजारी राजकुमार दैतापति को मनी लॉन्ड्रिंग के कथित अपराध के लिए उनके खिलाफ शुरू की गई PMLA कार्यवाही के संबंध में अग्रिम जमानत दी।
याचिकाकर्ता श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी, उड़ीसा के पीढ़ी दर पीढ़ी के पुजारी बताए जाते हैं। उनको कुछ विदेशी नागरिकों द्वारा दर्ज की गई FIR के संबंध में धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA) की धारा 3 और 4 के तहत कार्यवाही में शामिल किया गया। FIR कुलदीप शर्मा और उनकी पत्नी अपर्णा शर्मा के खिलाफ एक निश्चित संपत्ति की बिक्री पर 232,568 अमेरिकी डॉलर की धोखाधड़ी के अपराधों के लिए दर्ज की गई।
याचिकाकर्ता को विदेशी नागरिकों (शिकायतकर्ताओं) द्वारा मामले की देखरेख करने और विदेशियों की ओर से समझौता करने और धन प्राप्त करने के लिए मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी दी गई।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा कि पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार, अपीलकर्ता को विदेशी नागरिकों की ओर से 92 लाख रुपये मिलने थे, लेकिन अब तक उसने आरबीआई के पास केवल 80 लाख रुपये जमा किए (जैसा कि कथित तौर पर अपराध की आय है)।
बेंच ने इस शर्त पर अग्रिम जमानत देने पर सहमति जताई कि याचिकाकर्ता द्वारा 3 सप्ताह के भीतर आरबीआई के पास अतिरिक्त 20 लाख रुपये ब्याज सहित जमा किए जाएं। इसके बाद शिकायतकर्ताओं को औपचारिकताओं के अनुपालन के बाद राशि जमा करने की अनुमति दी जाएगी।
बेंच ने आगे निर्देश दिया,
"अपीलकर्ता को ECIR नंबर... प्रवर्तन निदेशालय बनाम राजकुमार दैतापति के संबंध में गिरफ्तार किए जाने की स्थिति में भी जमानत पर रिहा किया जाएगा। PMLA 2002 की धारा 3 के साथ धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए।"
कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को भी खारिज की, जिसमें याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।
न्यायालय ने आगे कहा,
"आक्षेपित निर्णय को निरस्त किया जाता है तथा अपील को उपरोक्त शर्तों के अंतर्गत स्वीकार किया जाता है। हालांकि हम स्पष्ट करते हैं कि अग्रिम जमानत दिए जाने को मामले के गुण-दोष पर राय की अभिव्यक्ति माना जाएगा। इसके अतिरिक्त, अपीलकर्ता अब CrPC की धारा 438(2) के तहत शर्तों का पालन करेगा।"
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट आत्माराम एनएस नादकर्णी, एओआर साल्वाडोर संतोष रेबेलो तथा एडवोकेट राघव शर्मा ने किया।
राजस्थान हाईकोर्ट ने 11.11.2021 के अपने आदेश में अग्रिम जमानत आवेदन इस आधार पर खारिज किया कि याचिकाकर्ता ने 17 सितंबर, 2021 के विशेष न्यायालय के आदेश को चुनौती नहीं दी थी, जिसमें गैर-जमानती वारंट को जमानती वारंट में बदलने के लिए CrPC की धारा 70(2) के तहत याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया गया था। उल्लेखनीय रूप से धारा 70(2) में प्रावधान है कि न्यायालय द्वारा जारी कोई भी वारंट तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता या जब तक उसे निष्पादित नहीं कर दिया जाता।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का आदेश राजवीर सिंह बनाम राजस्थान राज्य में हाईकोर्ट के फैसले के विपरीत है, जहां न्यायालय ने माना कि आर्थिक अपराधों में जमानत देना जमानती या गैर-जमानती वारंट जारी करने जैसे कारकों पर निर्भर नहीं हो सकता।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि अपराध की कथित आय पहले ही 21.09.2016 और 29.06.2017 के अनंतिम कुर्की आदेश के माध्यम से ED के पास जमा कर दी गई। याचिका में आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता को न तो "मूल FIR नंबर 17/2010 में आरोपी के रूप में नामित किया गया और न ही जांच के बाद कार्यवाही में उसे शामिल किया गया।"
इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को FIR 17/2010 से उत्पन्न PMLA कार्यवाही में गलत तरीके से फंसाया गया, जिस पर 3 अक्टूबर, 2013 को हाईकोर्ट में रोक लगा दी गई - विशेष न्यायालय द्वारा PMLA की धारा 3 और 4 के तहत अपराधों के लिए 24 दिसंबर, 2010 के अपने आदेश में संज्ञान लेने से 7 साल पहले। इसने बताया कि "2013 से मूल शिकायतकर्ता/विदेशी नागरिक किसी भी जांच एजेंसी के समक्ष जांच में शामिल नहीं हुए। जांच के लिए उनका पता नहीं लगाया जा सका है। इसके बावजूद, कोई औचित्य दिए बिना प्रवर्तन निदेशालय ने मूल शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किए बिना ही तत्काल कार्यवाही शुरू करना पसंद किया"
केस टाइटल: राजकुमार दैतापति बनाम निदेशक प्रवर्तन | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 9517/2021