ईडी पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कहा- प्रतिशोधी न बने, गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में दें
मंगलवार (3 अक्टूबर) को सुनाए गए महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में बताना चाहिए।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने इसके साथ ही रियल एस्टेट समूह एम3एम के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को रद्द करते हुए उक्त फैसला सुनाया।
खंडपीठ ने कहा,
"हम मानते हैं कि अब से यह आवश्यक होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के लिखित आधार की कॉपी निश्चित रूप से और बिना किसी अपवाद के प्रदान की जाए।"
अदालत ने मौजूदा मामले में अपनाए गए दृष्टिकोण के लिए केंद्रीय एजेंसी को कड़ी फटकार लगाई, जिसके द्वारा आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में नहीं दिया गया। यह देखते हुए कि ईडी अधिकारी ने केवल गिरफ्तारी के आधार को पढ़ा, अदालत ने कहा कि ऐसा आचरण संविधान के अनुच्छेद 22(1) और धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 19(1) के आदेश को पूरा नहीं करेगा।
खंडपीठ ने गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।
मौजूदा मामले में ईडी के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए पीठ ने कहा,
"घटनाओं का यह कालानुक्रम बहुत कुछ कहता है और ईडी की कार्यशैली पर नकारात्मक रूप से नहीं तो खराब रूप से प्रतिबिंबित करता है।"
खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि ईडी को पारदर्शी, बोर्ड से ऊपर रहना होगा और निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के प्राचीन मानकों के अनुरूप होना होगा और अपने रुख में प्रतिशोधी नहीं होना चाहिए। इसमें आगे कहा गया कि केवल रिमांड का आदेश पारित करना गिरफ्तारी के आधार को मान्य करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
अदालत ने यहां तक कहा कि ईडी के आचरण से "मनमानेपन की बू आती है" और दोनों आरोपियों को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा,
"प्रमुख जांच एजेंसी होने के नाते, जिस पर हमारे देश में मनी लॉन्ड्रिंग के दुर्बल आर्थिक अपराध को रोकने की कठिन जिम्मेदारी है, ऐसे कृत्य के दौरान ईडी की प्रत्येक कार्रवाई पारदर्शी, बोर्ड से परे और निष्पक्षता के प्राचीन मानकों के अनुरूप होने की उम्मीद है। 2002 के कड़े अधिनियम के तहत दूरगामी शक्तियों से युक्त ईडी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे अत्यंत ईमानदारी और उच्चतम स्तर की उदासीनता और निष्पक्षता के साथ कार्य करते हुए देखा जाना चाहिए।''
यह फैसला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा 14 जुलाई को दिए गए फैसले के खिलाफ बंसल द्वारा दायर याचिकाओं पर दिया गया, जिसमें उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं को न्यायिक आदेशों के माध्यम से हिरासत में भेज दिया गया था, हाईकोर्ट ने उनकी प्रारंभिक हिरासत की वैधता की जांच करने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं पर अनुचित लाभ के लिए न्यायिक अधिकारियों को रिश्वत देने का भी आरोप है। हाईकोर्ट ने इसे "गंभीर मामला" बताते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं की रिहाई की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।
केस टाइटल: पंकज बंसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एसएलपी (सीआरएल) नंबर 9220-9221/2023, बसंत बंसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एसएलपी (सीआरएल) नंबर 9275-9276/2023