डॉक्टर कफील खान की रिहाई को चुनौती : उत्तर प्रदेश सरकार ने एनएसए के तहत कफील खान की हिरासत को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक सितंबर के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की है जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉक्टर कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया था।
आधिकारिक वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार 26 अक्टूबर को दायर याचिका उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम नुजहत परवीन (डॉक्टर खान की मां) को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (एनएसए) के प्रावधानों के तहत हिरासत में रहे डॉक्टर कफील खान को एक बड़ी राहत देते हुए विगत एक सितंबर को सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया था। इस निर्णय को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
यह आदेश डॉक्टर खान की मां द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है और उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने डॉक्टर खान के खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद्द कर दिया था।
चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया, वह भाषण ऐसा नहीं है कि एक तर्कसंगत व्यक्ति उस निष्कर्ष तक पहुंचेगा, जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा निरोध के आदेश के तहत दिया गया है, जिन्होंने डॉक्टर कफील के खिलाफ इस साल फरवरी में हिरासत का आदेश पारित किया था।
पीठ ने खान के भाषण को संपूर्णता में पढ़ने की बात कहते हुए कहा,
"भाषणकर्ता ने निश्चित रूप से सरकार की नीतियों का विरोध किया और ऐसा करते हुए कई विशेष उदाहरण दिए हैं, हालांकि उनसे हिरासत की आशंका प्रकट नहीं होती है। प्रथम दृष्टया, भाषण पूरा पढ़ने से घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास का खुलासा नहीं होता है। इससे अलीगढ़ शहर की शांति के लिए भी खतरा नहीं है। यह राष्ट्रीय अखंडता और भाषण नागरिकों के बीच एकता का आह्वान करता है। यह भाषण किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला मजिस्ट्रेट ने भाषण के चयनात्मक हिस्सें को पढ़ा है और चयनात्मक हिस्से का उल्लेख किया है और भाषण के वास्तविक इरादे को नजरअंदाज किया है।"
डॉक्टर कफील को 29 जनवरी को यूपी एसटीएफ ने भड़काऊ भाषण के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किया था। 10 फरवरी को अलीगढ़ सीजेएम कोर्ट ने जमानत के आदेश दिए थे लेकिन उनकी रिहाई से पहले NSA लगा दिया गया और वो जेल से रिहा नहीं हो पाए। उन पर अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप लगाए गए थे।
13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ में उनके खिलाफ धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के मामले में धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया गया। आरोप था कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में धार्मिक भावनाओं को भड़काया और दूसरे समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किया।
अगस्त 2017 में गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी के कारण लगभग 60 शिशुओं की मौत के मामले के दौरान खान पहली बार खबरों में आए थे। शुरू में सूचित किया गया था कि उन्होंने अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्रवाही करके एक उद्धारकर्ता के रूप में काम किया है।
बच्चों के लिए गैस सिलेंडरों की व्यवस्था करने में नायक माने जाने के बावजूद, उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा धारा 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन ), 308 ( गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज एफआईआर में नामजद किया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की थी जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी हुई। उन्हें सितंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था, और अप्रैल 2018 में रिहा कर दिया गया था, जब उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि व्यक्तिगत रूप से डॉक्टर खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई सामग्री मौजूद नहीं है, उनकी जमानत अर्जी को अनुमति दे दी थी।
उन्हें पद पर लापरवाही बरतने आरोप में सेवा से भी निलंबित कर दिया गया था। विभागीय जांच की एक रिपोर्ट में उन्हें सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया गया।