'डॉ कफील खान का भाषण घृणा या हिंसा को बढ़ावा नहीं देता, यह राष्ट्रीय अखंडता और नागरिकों की एकता का आह्वान करता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

1 Sep 2020 8:05 AM GMT

  • डॉ कफील खान का भाषण घृणा या हिंसा को बढ़ावा नहीं देता, यह राष्ट्रीय अखंडता और नागरिकों की एकता का आह्वान करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ कफील खान पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के आरोपों को रद्द कर दिया है और उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है।

    कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिया गया डॉ कफील खान का भाषण, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कड़े प्रावधानों के तहत हिरासत में लिया गया, "नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास का खुलासा नहीं करता है।"

    डॉ. कफील खान के खिलाफ एनएसए के तहत लगाए गए आरोप रद्द : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को तुरंत रिहा करने के निर्देश जारी किए

    चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया, वह भाषण ऐसा नहीं है कि एक तर्कसंगत व्यक्ति उस निष्कर्ष तक पहुंचेगा, जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा निरोध के आदेश के तहत ‌दिया गया है, जिन्होंने डॉ कफील के खिलाफ इस साल फरवरी में हिरासत का आदेश पारित किया था।

    पीठ ने खान के भाषण को संपूर्णता में पढ़ने की बात कहते हुए कहा-

    "भाषणकर्ता ने निश्चित रूप से सरकार की नीतियों का विरोध किया और ऐसा करते हुए कई विशेष उदाहरण दिए हैं, हालांकि उनसे हिरासत की आशंका प्रकट नहीं होती है। प्रथम दृष्टया, भाषण पूरा पढ़ने से घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास का खुलासा नहीं होता है। इससे अलीगढ़ शहर की शांति के लिए भी खतरा नहीं है। यह राष्ट्रीय अखंडता और भाषण नागरिकों के बीच एकता का आह्वान करता है। यह भाषण किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला मजिस्ट्रेट ने भाषण के चयनात्मक हिस्‍सें को पढ़ा है और चयनात्मक हिस्से का उल्लेख किया है और भाषण के वास्तविक इरादे को नजरअंदाज किया है।"

    कोर्ट ने डॉ खान के खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद्द कर दिया है; दिनांक 13 फरवरी, 2020 को जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा एनएसए अधिनियम के तहत पारित किए गए हिरासत के आदेश और उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा की गई पुष्टि को रद्द कर दिया है। डॉ कफील खान को हिरासत में रखने की अवधि में किए गए विस्तार को भी अवैध घोषित किया गया है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार यह स्‍था‌पित करने की अपने जिम्‍मेदारी का निर्वहन करने में विफल रहा है कि कफील खान के दिसंबर के भाषण का अलीगढ़ जिले की सार्वजनिक व्यवस्‍था पर बुरा प्रभाव पड़ा और वह 13.02.2020 तक जारी रहा, जिससे आरोपी की निरोधात्मक नजरबंदी आवश्यक हो गई थी।

    हाईकोर्ट ने दो महीने पुराने भाषण पर एनएनए लगाए जाने पर कहा, "स्वभाव‌िक रूप से, निवारक निरोध का आदेश घटना को रोकने के लिए जारी किया जा सकता था, लेकिन दंडात्मक रूप से या केवल उन घटनाओं के परिणामस्वरूप नहीं , जो दो महीने पुरानी थीं।"

    हाईकोर्ट ने कहा, "रिकॉर्ड पर मौजूद किसी भी अन्य सामग्री की अनुपस्थिति में, इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि निरुद्घ व्यक्ति के दिनांक 12.12.2019 को दिए व्याख्यान और 13.10.2019 और 15.10.2019 की घटनाओं में लिंक था। इसके अलावा, उन घटनाओं को जोड़ने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री मौजूद नहीं है, कि, 12.12.2019 को व्याख्यान दिया गया और 13.12.2019 और 15.12.2019 की हिंसक घटनाएं हुई, जिसे हिरासत के कारण के रूप में संदर्भित किया गया है और 13.02.2020 के निरोधात्मक हिरासत के फैसले का संतुष्टि का आधार बनाया गया है।"

    डॉ खान को इस साल जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। उन पर सीएए व‌िरोध प्रदर्शनों के बीच, 13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने का आरोप ‌था।

    उल्लेखनीय है कि खान को 10 फरवरी को सीजेएम, अलीगढ़ की अदालत ने जमानत दी थी, हालांकि, उन्हें एनएसए अधिनियम के तहत जेल में बंद रखा गया, जिसे 15 फरवरी को अलीगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट ने लगाया था।

    इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने कहा कि जब दिसंबर 2019 में कथित भड़काऊ भाषण दिया गया था, जिला प्रशासन, अलीगढ़ ने डॉ कफील खान के भाषण को निवारक निरोध के लिए पर्याप्त नहीं पाया।

    हालांकि, जब 10 फरवरी को सीजेएम ने उनकी जमानत अर्जी की अनुमति दी, जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ ने डॉ कफील खान को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत हिरासत में लेने की प्रक्रिया शुरू की।

    खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निरोध आदेश पारित करने में देरी या किसी व्यक्ति को निरोध आदेश पारित करेन के लिए व्यक्तिपरक संतुष्टि दर्ज करने में देरी एक अनिवार्यत का विषय नहीं हो सकता है। फिर भी, यह देखा गया है, रिकॉर्ड को स्वयं इंगित करना चाहिए कि दर्ज की गई संतुष्टि और अपमानजनक कार्य के बीच "निरंतर आकस्मिक लिंक" मौजूद था।

    वर्तमान मामले में, न्यायालय ने उल्लेख किया,

    "आदेश में हिरासत या हिरासत में लिए जाने के आधार के संबध में कुछ भी नहीं कहा गया है कि जिला प्रशासन के पास 12 दिसंबर, 2019 से 13 फरवरी, 2020 तक निरुद्घ के प्रयासों के बारे में कोई ऐसी जानकारी थी, जिससे अलीगढ़ शहर की शांति और व्यवस्‍था को खरोंच भी लग सकती थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा जमानत आदेश पारित किए जाने के बाद ही पुलिस अधिकारियों और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा कफील खान को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत हिरासत में लेने की प्रक्रिया शुरू हुई।..यह बताना उचित होगा कि 12 दिसंबर, 2019 से 29 जनवरी, 2020 तक निरुद्घ व्यक्ति मुक्त घूम रहा था और तब उसके पास अलीगढ़ की सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के प्रयास करने का पर्याप्त समय था, अगर वह ऐसा करने का इरादा कर रहा था। "

    आदेश में कहा गया कि डॉ खान की जमानत की सुनवाई के समय भी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3 की उप-धारा (2) के तहत शक्तियों के प्रयोग की कोई सिफारिश नहीं की गई। इसलिए, न्यायालय ने माना कि अधिनियम और निरोध आदेश के बीच "आकस्‍मिक जुड़ाव" गायब है / पूरी तरह से टूट गया है।

    फैसले के अंत में न्यायालय ने कहा कि डॉ खान को हिरासत के कारण भी नहीं बताए गया, जिससे उन्हें संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड (5) के अनुसार एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने के लिए दी जाने वाली आवश्यक सामग्री से वंचित किया गया।

    डॉ कफील को एक कॉम्पैक्ट डिस्क के रूप में हिरासत के कारणों और अन्य सामग्र‌ियों की आपूर्ति की गई। हालांकि, कॉम्पैक्ट डिवाइस को के साथ न कोई ट्रांसक्रिप्ट और न ही कोई उपकरण उन्हें उपलब्ध कराया गया, ऐसी परिस्थितियों में कोर्ट ने कहा,

    "ट्रांसस्क्रिप्ट की गैर-आपूर्ति का कोई नतीजा नहीं होता, यदि कॉम्पैक्ट डिस्क को संचालित करने के लिए डिवाइस डिटेन्यू को आपूर्ति की गई होती। यह स्थिति स्वीकार की जाती है कि कोई भी उपकरण डिटेन्यू को उपलब्ध नहीं कराया गया था। ऐसी स्थिति में, कॉम्पैक्ट डिस्क की आपूर्ति बिल्कुल गैर नतीजा है। यह वस्तुतः संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड (5) के अनुसार प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक सामग्री की गैर-आपूर्ति है के अनुरूप है। सामग्री की इस प्रकार की गैर-आपूर्ति संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत निरुद्घ को प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इस आधार पर कफील खान की हिरासत रद्द की जानी चाहिए।"

    कोर्ट ने जोड़ा,

    "डॉ कफील खान की हिरासत दो बार बढ़ाई जा चुकी है। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा है कि जेल में रहते हुए भी वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के संपर्क में हैं और शहर की सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए उन्हें उकसा रहा हैं। हालांकि तथ्य किसी भी सामग्री द्वारा समर्थित नहीं होने के कारण स्वीकार्य नहीं हैं। यह बताना उचित होगा कि ‌निरुद्घ व्यक्ति राज्य की हिरासत में है, जहां उसके पास न कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और न कोई अन्य यांत्रिक उपकरण हो सकता है, जिससे किसी से संपर्क किया जा सके। वह मुलाकातियों के जरिए संदेश भेज रहा है, लेकिन इसका कोई रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं है।"

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