डॉ. कफील खान के खिलाफ एनएसए के तहत लगाए गए आरोप रद्द : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को तुरंत रिहा करने के निर्देश जारी किए
LiveLaw News Network
1 Sept 2020 11:03 AM IST
NSA Charges Against Dr. Kafeel Khan Dropped; Allahabad HC Directs Immediate Release
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (एनएसए) के कड़े प्रावधानों के तहत हिरासत में रहे डॉ. कफील खान को एक बड़ी राहत देते हुए मंगलवार को सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश डॉ. खान की मां द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आया है जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है और उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने डॉ. खान, जो वर्तमान में मथुरा जेल में बंद हैं, उनके खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद्द कर दिया है।
जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा एनएसए अधिनियम के तहत 13 फरवरी, 2020 को पारित किए गए हिरासत के आदेश और उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा की गई पुष्टि को निरस्त कर दिया है। डॉ. कफील खान को हिरासत में लेने की अवधि के विस्तार को भी अवैध घोषित किया गया है।
वर्तमान में खान राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मथुरा जेल में बंद हैं। उन्हें कथित रूप से CAA के विरोध के बीच 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक भड़काऊ भाषण देने के लिए इस साल जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था।
खंडपीठ ने एनएसए के तहत डॉ. खान के खिलाफ कार्यवाही के मूल रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गौरतलब है कि 29 जनवरी को डॉ. कफील को यूपी एसटीएफ ने भड़काऊ भाषण के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किया था। 10 फरवरी को अलीगढ़ सीजेएम कोर्ट ने जमानत के आदेश दिए थे लेकिन उनकी रिहाई से पहले NSA लगा दिया गया और वो जेल से रिहा नहीं हो पाए। उन पर अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप लगाए गए है ।
13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ में उनके खिलाफ धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के मामले में धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया गया है । आरोप है कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में धार्मिक भावनाओं को भड़काया और दूसरे समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किया।
वर्तमान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खान की मां नुजहत परवीन ने दाखिल की है।
उन्होंने इस साल मार्च में पहली बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उसके बेटे को रिहा करने की मांग की गई थी। हालांकि, सीजेआई एस ए बोबडे, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की एक पीठ ने इस दलील पर कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय इस मामले से निपटने के लिए उपयुक्त मंच है इसके बाद, उच्च न्यायालय ने 1 जून, 2020 को इस मामले को सुना।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील के अनुरोध पर कई स्थगन देने के बाद, अदालत ने इसे अंतिम निपटान के आदेश के लिए 19 अगस्त, 2020 को सूचीबद्ध किया।
अगस्त 2017 में गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी के कारण लगभग 60 शिशुओं की मौत के मामले के दौरान खान पहली बार खबरों में आए थे। शुरू में सूचित किया गया था कि उन्होंने अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्रवाही करके एक उद्धारकर्ता के रूप में काम किया है।
बच्चों के लिए गैस सिलेंडरों की व्यवस्था करने में नायक माने जाने के बावजूद, उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा धारा 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन ), 308 ( गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज एफआईआर में नामजद किया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की थी जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी हुई। उन्हें सितंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था, और अप्रैल 2018 में ही रिहा कर दिया गया था, जब उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि व्यक्तिगत रूप से डॉ खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई सामग्री मौजूद नहीं है, उनकी जमानत अर्जी को अनुमति दे दी थी। उन्हें पद पर लापरवाही बरतने आरोप में सेवा से भी निलंबित कर दिया गया था। विभागीय जांच की एक रिपोर्ट में उन्हें सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया गया।