COVID 19 के मरीज़ों के मुफ्त इलाज की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन न करें
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों के मुफ्त इलाज की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने अमित द्विवेदी की ओर से दायर याचिका पर कड़ी टिप्पणी की।
बेंच ने कहा कि याचिका कुछ भी नहीं है, लेकिन एक पब्लिसिटी स्टंट है और ऐसी याचिकाएं दायर नहीं की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि
"सरकार को यह तय करना है कि किसे मुफ्त इलाज दिया जाए। हमारे पास कोई फंड नहीं है। मुझे लगता है कि इस मामले को बंद कर देना चाहिए। इस तरह के किसी भी मुकदमे को उठाने की जरूरत नहीं है। सरकारी अस्पताल में इलाज मुफ्त है। इसे जनहित मुकदमा बनाने की जरूरत नहीं है।"
इससे पहले पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 के खतरे से निपटने के लिए भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने के लिए सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था,
"यह ऐसा फैसला नहीं है कि अदालत सरकार को लेने के लिए कहे। हम अस्पतालों के राष्ट्रीयकरण का आदेश नहीं दे सकते। सरकार ने पहले ही कुछ अस्पतालों को अपने कब्जे में ले लिया है।"
न्यायमूर्ति भूषण ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की इस प्रार्थना को 'गलत' बताया, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एडवोकेट अमित द्विवेदी द्वारा दायर इस याचिका को खारिज करने का आग्रह किया था।