कर्नाटक हाईकोर्ट ने सद्गुरु की संस्‍था कहा, इस मुग़ालते में ना रहें कि आध्यात्‍मिक संगठन कानून से ऊपर हैं

Update: 2020-01-07 10:31 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को सद्गुरु जग्गी वासुदेव की संस्‍था ईशा फाउंडेशन को 'कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट' के लिए इकट्ठा की गई राशि का खुलासा करने को कहा है. कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है, साथ ही पूछा है कि फाउंडेशन से उक्त राशि किस तर‌ीके अर्ज‌ित की, ये भी बताएं।

चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस हेमंत चंदागौदर की खंडपीठ ने जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित फाउंडेशन की यह न स्पष्ट करने पर कि क्या राशि स्वेच्छा से एकत्र की जा रही है, ख‌िंचाई की।पीठ ने कहा "इस मुग़ालते में न रहें कि आप एक आध्यात्मिक संगठन हैं, इसलिए आप कानून से बंधे नहीं हैं।"

बेंच एडवोकेट एवी अमरनाथन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने फाउंडेशन को 'कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट' के लिए जनता से धन इकट्ठा न करने का निर्देश देने को कहा था। कोर्ट ने फाउंडेशन द्वारा जबरन धन इकट्ठा किए जाने की शिकायतों की स्वतंत्र जांच नहीं कराए जाने पर राज्य सरकार की भी ख‌िंचाई की।

चीफ जस्टिस अभय ओका ने पूछा "जब एक नागरिक आपसे (राज्य से) शिकायत करता है कि राज्य के नाम पर धन इकट्ठा किया जा रहा है तो क्या राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि वह पूछताछ करे?"

हालांकि, राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसे इस मामले में कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई थी और उसने फाउंडेशन को धन एकत्र करने के लिए अधिकृत भी नहीं किया है। वकील कहा कि राज्य सरकार ने फाउंडेशन को सरकारी जमीन पर कोई भी काम करने की अनुमति नहीं दी है।

याचिका के अनुसार, फाउंडेशन कावेरी नदी तट के 639 किलोमीटर क्षेत्र, तालाकौवरी से तिरुवरूर तक 253 करोड़ पौधे लगाने की योजना बना रहा है। कहा जा रहा है कि फाउंडेशन जनता से प्रत्येक पौधे के लिए 42 रुपए लिए हैं। इसका मतलब है कि कुल 10,626 करोड़ (253 करोड़ X42)रुपए की राशि इकट्ठा की जा रही है. याचिकाकर्ता का आरोप है कि ये एक बड़ा घोटाला है।

दलील में कहा गया है, "फाउंडेशन का दावा है कि उसने कावेरी बेसिन के संबंध में अध्ययन करवाया है। उसे उन रिपोर्टों को राज्य सरकार को सौंपना चाहिए था। राज्य सरकारक को उक्त अध्ययनों पर विचार करने के बाद स्वीकृति देनी चाहिए थी। हालांकि ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि बिना राज्य सरकार के उचित अनुमोदन के सरकारी जमीन पर किसी भी निजी संगठन को किसी भी प्रकार का काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।

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