सुप्रीम कोर्ट ने Domestic Violence Act मामलों में जमानती वारंट जारी करने की आलोचना की
घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act) के तहत एक मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जमानती वारंट जारी करने की सुप्रीम कोर्ट ने आलोचना की।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामलों में जमानती वारंट जारी करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि वे अर्ध-आपराधिक कार्यवाही हैं और जब तक सुरक्षा आदेश का उल्लंघन नहीं किया जाता है तब तक दंडात्मक परिणाम नहीं होते हैं।
जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा,
“यह न्यायालय यह देखने के लिए बाध्य है कि DV Act के प्रावधानों के तहत दायर आवेदन में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। DV Act के तहत कार्यवाही अर्ध-आपराधिक कार्यवाही है, जिसका कोई दंडात्मक परिणाम नहीं होता, सिवाय इसके कि जहां सुरक्षा आदेश का उल्लंघन या भंग होता है। इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने का निर्देश देना पूरी तरह से अनुचित था।”
न्यायालय घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत याचिकाकर्ता की सास द्वारा दायर घरेलू हिंसा मामले को स्थानांतरित करने की मांग वाली स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता का विशेष रूप से सक्षम नाबालिग बेटा है, जो सुनने की समस्या से पीड़ित है। वह बेरोजगार है और अपने जीवनयापन के लिए पूरी तरह से अपने पिता पर निर्भर है। यह भी बताया गया कि निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जमानती वारंट जारी किए हैं।
याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने याचिका को दिल्ली से लुधियाना स्थानांतरित करने का फैसला किया और याचिकाकर्ता के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने को अनुचित बताया।
केस टाइटल: अलीशा बेरी बनाम नीलम बेरी