दिल्ली की अदालत ने 2008 के बटला हाउस मुठभेड़ मामले में आरिज खान को दोषी ठहराया

Update: 2021-03-08 10:19 GMT

दिल्ली की एक सत्र अदालत ने सोमवार को 2008 के बटला हाउस मुठभेड़ से संबंधित मामले में आरोपी आरिज खान उर्फ ​​जुनैद को दोषी ठहराया। मामले में पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा और दो कथित आतंकवादी मुठभेड़ में मारे गए थे।

कोर्ट ने आरिज खान धारा 186, 333, 353, 302, 307, 174A, 34 आईपीसी और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी पाया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने मामले में फैसला सुनाया। दिल्ली में 13.09.2008 को एक ही दिन में पांच जगहों, कनॉट प्लेस, करोल बाग, ग्रेटर कैलाश और इंडिया गेट पर बम विस्पोट हुए ‌थे।

जज ने फैसले में कहा, "अभियोजन पक्ष की ओर से रिकॉर्ड पर पेश किए गए सबूत कोई भी संदेह नहीं छोड़ते हैं, कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेहों से परे अपने मामले को सिद्ध किया है, और अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है। यह साबित हो गया है कि अभियुक्त आरिज खान गोलीबारी के दौरान भागने में सफल रहा। और घोषण के बावजूद अदालत में पेश होने में विफल रहा। तदनुसार अभियुक्त को धारा 186, 333, 353, 302, 307, 174, 34 आईपीसी और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया गया।"

अतिरिक्त लोक अभियोजक एटी अंसारी ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया जबकि अधिवक्ता एमएस खान ने मुकदमे की कार्यवाही में आरोपी, आरिज खान का प्रतिनिधित्व किया।

शुरुआत में, अदालत ने एक अलग आदेश के जर‌िए जांच अधिकारी को आरिज खान और उसके परिवार की वित्तीय स्थिति का पता लगाने के लिए एक जांच करने का निर्देश दिया, ताकि पीड़ितों को मुआवजा दिया जा सके।

न्यायालय ने किसी जांच अधिकारी को किसी अन्य कारक को शामिल करने की भी स्वतंत्रता दी, जिससे इस मामले में मुआवजे का पहलू सुविधाजनक बन सके।

बाटला हाउस एनकाउंटर

19 सितंबर 2008 को दिल्ली स्थिति बाटला हाउस इलाके में हुई मुठभेड़ में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकवादी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद मारे गए थे। मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की भी मौत हो गई थी।

पुलिस के अनुसार, एक सूचना मिलने के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम फ्लैट नं 108, एल -18 बटला हाउस गई थी, जिसका नेतृत्व इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की ने किया था, जिन्हें मुठभेड़ में एक आरोपी ने गोली मार दी थी।

मुठभेड़ के बाद, अभियुक्त आरिज खान उर्फ ​​जुनैद को भगौड़ा घोषित कर दिया गया। वह घटना स्थल से भागने में सफल रहा था।

आरिज खान को दिल्ली पुलिस ने 2018 में नेपाल की सीमा के नजदीक, उत्तराखंड के बनबसा से गिरफ्तार किया। पुलिस के अनुसार, खान ने "मोहम्मद सलीम" की नकली पहचान के साथ नेपाली नागरिकता कार्ड और पासपोर्ट हासिल कर लिया था।

2013 में एक ट्रायल कोर्ट ने कॉन्स्टेबल बलवंत सिंह और राजबीर सिंह की हत्या और इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा पर गोली चलाने के आरोप में इंडियन मुजाहिदीन के एक अन्य आतंकी शहजाद अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

अदालत ने शहजाद को हत्या, हत्या के प्रयास, लोक सेवकों पर हमला करने और काम में बाधा डालने और पुलिस अधिकारियों को ड्यूटी से रोकने के लिए उन्हें गंभीर रूप से घायल करने के आरोप में दोषी करार दिया था।

अभियुक्त शहजाद को दोषी करार देते हुए, 25 जुलाई 2013 के निर्णय में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शास्त्री ने कहा था, "मेरे दिमाग में यह बात कौंधती है कि विचाराधीन घटना पुलिस और हमलावरों के बीच अचानक हुई टकराव नहीं थी। पुलिस को पहले से ही जानकारी थी, जिसे पाने के बाद, एक छापेमारी दल का गठन पहले ही किया गया था।

इन सब के बावजूद, इंस्पेक्टर एमसी शर्मा ने किसी भी प्रकार का बॉडी प्रोटेक्शन डिवाइस यानी बुलेटप्रूफ जैकेट आदि नहीं पहना था। इसके अलावा, छापेमारी दल के कम से कम दो सदस्यों के पास कोई हथियार नहीं था, इस तथ्य को जानने के बावजूद कि उन्हें फायरिंग का सामना करना पड़ सकता है।

यह स्पष्ट नहीं है कि यह केवल एक गलतफहमी थी या दिल्ली पुलिस में व्यावसायिकता की कमी थी या दिल्ली पुलिस के पास हथियारों की कमी है। चाहे कुछ भी हो, इसने एक फ्लैट में रहने वालों को, एक मामले की जांच के लिए वहां आए पुलिसकर्मियों पर गोली चलाने का कोई लाइसेंस नहीं दिया, सिर्फ इसलिए कि वे निहत्थे थे या अपनी बुलेटप्रूफ नहीं पहनी थी। उनसे उम्मीद थी कि वे पुलिस की सहायता करेंगे और उन पर हमला नहीं करेंगे। इस प्रकार अभियुक्त को धारा 186/353/333/307/302/34 IPC के तहत दंडनीय अपराधों के ‌लिए दंडित किया गया है।"

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