सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड वाले दोषियों की कृपा याचिकाओं पर 'शत्रुघन चौहान' फैसले में संशोधन की केंद्र की याचिका खारिज की

Update: 2025-10-08 11:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज (8 अक्टूबर) केंद्र द्वारा दायर संशोधन आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें 2014 के शत्रुघन चौहान फैसले में मृत्युदंड से संबंधित दिशानिर्देशों को अधिक पीड़ित-केंद्रित बनाने का अनुरोध किया गया था।

याद दिला दें कि केंद्र का यह संशोधन आवेदन 2020 में दायर किया गया था, जब 2012 के दिल्ली गैंगरेप-मर्डर मामले में चार दोषियों के मृत्यु वारंट लंबित थे। ये वारंट केवल 2020 में ही लागू किए गए, जब सुप्रीम कोर्ट ने आधी रात में विशेष बैठक में उनकी अंतिम याचिका खारिज कर दी थी।

2014 में, तीन-जजों की खंडपीठ ने मृत्युदंड के दोषियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई दिशानिर्देश दिए थे। इसमें यह भी कहा गया था कि कृपा याचिका (mercy petition) में लंबी देरी होने पर मृत्युदंड को जीवन निर्वाह (life imprisonment) में बदलने का आधार हो सकता है। साथ ही, निर्देश दिया गया कि कृपा याचिका के अस्वीकृति की सूचना और अंतिम कार्यवाही के बीच 14 दिनों की अवधि हो, ताकि दोषी कानूनी उपाय कर सके और मानसिक रूप से मृत्युदंड के लिए तैयार हो।

खंडपीठ में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया शामिल थे, जिन्होंने कहा कि आवेदन में कोई सार नहीं है।

पिछली सुनवाई में, ASG केएम नटराज ने तर्क दिया था कि दिशानिर्देशों में संशोधन आवश्यक है ताकि कृपा याचिकाओं, समीक्षा और क्युरेटिव याचिकाओं की लगातार दायरियों की प्रक्रिया किसी सीमा के बाद रोकी जा सके।

सुप्रीम कोर्ट पहले यह निर्णय लेने के लिए रुकी हुई थी कि 2024 में महाराष्ट्र राज्य बनाम प्रदीप यशवंत कोकड़े मामले में क्या निर्देश दिए गए हैं। उस मामले में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे मृत्युदंड वाले दोषियों की कृपा याचिकाओं को समय सीमा के भीतर तेजी से प्रक्रिया करने के लिए समर्पित सेल बनाएं।

केंद्र के आवेदन में यह अनुरोध किया गया था कि कोर्ट क्युरेटिव याचिका और कृपा याचिका के लिए समयसीमा निर्धारित करे। आवेदन में कहा गया कि सह-दोषियों की याचिकाओं की लंबितता के कारण कार्यवाही को स्थगित करना उस दोषी के लिए मानवता विरोधी मानसिक कष्ट पैदा कर सकता है, जिनके सभी कानूनी उपाय समाप्त हो चुके हों।

केंद्र ने कहा कि वर्तमान दिशानिर्देश पीड़ितों और उनके परिवार, राष्ट्र की सामूहिक चेतना और मृत्युदंड के निवारक प्रभाव को पर्याप्त ध्यान में नहीं रखते।

आवेदन में यह भी कहा गया कि जब एक ही मामले में कई दोषियों को मृत्युदंड का सामना करना पड़ता है, तो यदि वे अलग-अलग समय पर अलग कानूनी उपाय अपनाते हैं, तो सभी दोषियों के समवर्ती कार्यान्वयन में बाधा आती है।

केंद्र ने मृत्युदंड के कार्यान्वयन की 14-दिन की सूचना अवधि को घटाकर 7 दिन करने का भी अनुरोध किया।

केंद्र द्वारा मांगी गई प्रमुख संशोधन मांगें थीं:

1. समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद क्युरेटिव याचिका केवल कोर्ट द्वारा निर्धारित समय में ही दायर की जा सके।

2. कृपा याचिका मृत्यु वारंट जारी होने के 7 दिन के भीतर दायर हो।

3. कृपा याचिका खारिज होने के 7 दिन के भीतर मृत्युदंड कार्यान्वित किया जाए, चाहे सह-दोषियों के मामले लंबित हों।

केंद्र की शत्रुघन चौहान फैसले के खिलाफ समीक्षा और क्युरेटिव याचिकाएं पहले 2014 और 2017 में खारिज की जा चुकी हैं।

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