'मनमाना और अव्यवहारिक': तमिलनाडु में SIR को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची CPI(M)
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] ने तमिलनाडु में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, इसे “मनमाना, अवैध और असंवैधानिक” करार दिया है।
CPI(M) तमिलनाडु के सचिव पी. शन्मुगम द्वारा दायर याचिका में 27 अक्टूबर 2025 के ECI आदेश को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें राज्य में SIR प्रक्रिया को एक महीने में पूरा करने का निर्देश दिया गया था।
शन्मुगम ने कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना ज़रूरी है, लेकिन ECI की अधिसूचना “व्यवहारिक रूप से असंभव” और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 व मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के विपरीत है।
याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक बूथ लेवल अधिकारी (BLO) को प्रतिदिन 500 घरों का सत्यापन करने का लक्ष्य दिया गया है, जबकि एक BLO व्यावहारिक रूप से केवल 40-50 घरों तक ही पहुंच सकता है। पूरी प्रक्रिया 28 अक्टूबर 2025 से 7 फरवरी 2026 के बीच — मात्र 102 दिनों में पूरी करनी है। CPI(M) का कहना है कि इतनी कम अवधि में यह कार्य “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता” और अनुच्छेद 14 व 324 की भावना के विपरीत है।
पार्टी ने यह भी कहा कि SIR का कोई वैधानिक आधार नहीं है। ROPA की धारा 28(3) के तहत ऐसी किसी प्रक्रिया को राजपत्र में अधिसूचित कर संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, जो इस मामले में नहीं किया गया।
CPI(M) ने चेताया कि SIR से हाशिए पर रहने वाले, प्रवासी और दस्तावेज़-रहित मतदाताओं का वंचन हो सकता है। बिहार में हुए इसी तरह के अभ्यास में भी बड़ी संख्या में मतदाता सूची से बाहर रह गए थे।
याचिका में यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग ने BLO अधिकारियों को नागरिकता सत्यापन और “संदिग्ध विदेशी नागरिकों” की पहचान करने का अधिकार देकर अपनी सीमा लांघी है — जो “अप्रत्यक्ष NRC प्रक्रिया” जैसा कदम है।
CPI(M) ने कहा कि यह प्रक्रिया सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है और तमिलनाडु को “केवल एक क्रियान्वयन एजेंसी” बना दिया गया है।
गौरतलब है कि सत्तारूढ़ DMK ने भी SIR को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट कल DMK की याचिका पर सुनवाई करेगा।