(सीपीसी ऑर्डर 8 रूल 1 ए 3) अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की बचाव पक्ष की अर्जी पर विचार करते वक्त कोर्ट को नरम रुख अख्तियार करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-10-29 05:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को उस वक़्त नरम रुख अख्तियार करना चाहिए जब बचाव पक्ष उस दस्तावेज को पेश करने की अर्जी देता है जो वह लिखित बयान के साथ नहीं दे पाया था।

कोर्ट मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था। हाईकोर्ट ने बचाव पक्षों की ओर से दायर उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के ऑर्डर 8 रूल 1(ए)(3) के तहत दायर याचिका को सुनने से इनकार कर दिया गया था। बचाव पक्ष ने अपनी पुनर्विचार याचिका में अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति मांगी थी, जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया था। उसके बाद बचाव पक्ष ने मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। बचाव पक्ष ने कहा था कि उन्हें विवादित प्रॉपर्टी से संबंधित ये दस्तावेज हाल में प्राप्त हुए हैं, इसलिए उन्होंने लिखित बयान के साथ इन दस्तावेजों को तब पेश नहीं किया था।

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने सीपीसी के ऑर्डर 8 के नियम 1ए का हवाला देते हुए कहा कि यह बचाव पक्ष को अपने पास उपलब्ध दस्तावेज कोर्ट के समक्ष पेश करने का अधिकार प्रदान करता है तथा उसे लिखित बयान के साथ भी फाइल करने का हक देता है।

कोर्ट ने कहा :

"उसे (बचाव पक्ष को) उन दस्तावेजों के बारे में स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए थी जो उनके पास है और जो नहीं भी है। यदि बचाव पक्ष लिखित बयान के साथ कोई भी दस्तावेज पेश नहीं करता तो इस प्रकार का तो इस प्रकार का दस्तावेज मुकदमे की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की ओर से साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं होगा। हालांकि, यह वादी के गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए पेश दस्तावेज या गवाहों की महज याद ताजा करने के लिए पेश दस्तावेजों पर लागू नहीं होगा। उप नियम 3 कहता है कि कोई दस्तावेज जो लिखित बयान के साथ पेश नहीं किया जाता है उसे साक्ष्य के रूप में नहीं माना जाएगा जब तक कि कोर्ट उसकी अनुमति नहीं देता। सीपीसी के ऑर्डर 13 के नियम एक में एक बार फिर यह सभी पक्षों के लिए अनिवार्य किया गया है कि वे मामले के निपटारे से पहले मूल दस्तावेज पेश करेंगे।"

कोर्ट ने कहा कि उप नियम 3 बचाव पक्ष को दस्तावेज पेश करने के लिए एक और मौका प्रदान करता है जिसके तहत कोर्ट की अनुमति से लिखित बयान के साथ ये दस्तावेज़ पेश किए जाने चाहिए।

"ऐसी अनुमति को लेकर कोर्ट को दिए गए विशेषाधिकार का सोच समझकर इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो कोई सीधा फार्मूला इसके लिए नहीं है, लेकिन कोर्ट द्वारा इस प्रकार की अनुमति बचाव पक्ष की ओर से प्रदर्शित अच्छे कार्यों को ध्यान में रखते हुए दी जा सकती है। .... ऐसा हमेशा कहा जाता है कि प्रक्रिया न्याय की दासी होती है। कोर्ट द्वारा न्याय करते वक्त प्रक्रियागत और तकनीकी बाधा आने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। यदि प्रक्रिया से डिगने से दूसरे पक्ष के प्रति गंभीर पूर्वाग्रह नहीं होता है तो कोर्ट को प्रक्रिया संबंधी और तकनीकी बाधाओं का ध्यान रखने के बजाय व्यापक न्याय की दिशा में देखना चाहिए। हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि मुकदमा कुछ और नहीं बल्कि सत्य की ओर एक यात्रा है जो न्याय का फाउंडेशन है और कोर्ट को प्रत्येक विवाद में छिपे सत्य को बाहर निकालने के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत होती है। इसलिए कोर्ट को उप नियम 3 के तहत दस्तावेज पेश करने के लिए दी गई अर्जी पर नरम रुख के साथ विचार करना चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा केस में बचाव पक्ष ने लिखित बयान के साथ दस्तावेज पेश नहीं करने के लिए पुख्ता कारण दिए हैं इसलिए अदालत को इसकी अनुमति देनी चाहिए थी।

केस का नाम: सुगंधी (मृत) बनाम पी राजकुमार

केस नंबर : सिविल अपील नंबर 3427 / 2020

कोरम: न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

वकील : एडवोकेट आनंद पदमनाभन, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड शशि भूषण कुमार और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एस महेंद्रन।

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