COVID Vaccines: राज्यों को अधिक कीमत क्यों चुकानी पड़ रही है? कीमत एक समान होनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा

Update: 2021-05-31 13:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 से संबंधित मुद्दों (महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति के पुन: वितरण में) पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान कहा, "देश भर में COVID-19 टीकों के लिए एक कीमत होने की आवश्यकता है।"

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की तीन जजों की बेंच ने केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई COVID-19 वैक्सीन की दोहरी कीमत और खरीद नीति के औचित्य पर केंद्र सरकार से कड़े सवाल किए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सोमवार की सुनवाई में यह मुद्दा उठाया कि क्या 18 से 45 वर्ष की आयु के बीच की 50% आबादी को भी वैक्सीन को खुद वहन करना होगा।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस तरह के कीमत के अंतर को कम करने के लिए खरीद और वितरण स्थापित करना होगा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 में कहा गया है,

"भारत, राज्यों का एक संघ है। जब संविधान कहता है, तो हम संघीय नियम का पालन करते हैं। सरकार को वैक्सीन खरीदनी और वितरित करनी है। अलग-अलग राज्यों को बीच में नहीं छोड़ा जा सकता है। भारत की वैक्सीन नीति क्या है? क्या आप खुद को एक राष्ट्रीय एजेंसी मानते हैं और राज्यों के लिए खरीद करते हैं या राज्यों को अपने दम पर छोड़ दिया गया है?"

उपर्युक्त अवलोकन इस संदर्भ में आया कि कैसे राज्य ग्लोबल टेंडर जारी कर रहे है, लेकिन इन्हें अस्वीकार कर दिया गया है, क्योंकि कुछ विदेशी कंपनियां केवल राष्ट्रीय सरकारों से बात करना चाहती है, राज्यों से नहीं।

इसके आलोक में बेंच ने वैक्सीनेशन नीति की मांग की और केंद्र को दोहरी नीति अपनाने के पीछे के तर्क को स्पष्ट करने का निर्देश दिया। इसने केंद्र के 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए वैक्सीन खरीदने और 18 से 45 आयु वर्ग को छोड़ने के औचित्य पर भी सवाल उठाया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,

"क्या हम कह सकते हैं कि 18 से 45 के बीच की 50% आबादी वैक्सीन का खर्च उठाने में सक्षम होगी? बिल्कुल नहीं। हम हाशिए पर रहने वालों और उन लोगों को कैसे देखते हैं, जो खुद को वैक्सीन उपलब्ध नहीं करा सकते हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें हमें गंभीर रूप से देखना होगा। इसके अलावा, राज्यों को अधिक कीमत क्यों चुकानी पड़ती है। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि पूरे देश में एक ही कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध हो।"

इस मुद्दे को एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता और मीनाक्षी अरोड़ा ने भी संबोधित किया है।

गुप्ता ने इस बात को सामने रखा कि विभिन्न राज्यों की अलग-अलग आर्थिक स्थितियाँ है और यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह पूरे देश के लिए वैक्सीन की खरीद करे। दूसरी ओर अरोड़ा ने प्रस्तुत किया कि समवर्ती सूची की प्रविष्टि 29 के साथ-साथ केंद्र सूची की प्रविष्टि 81 ने केंद्र पर वैक्सीन की खरीद का दायित्व रखा है।

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह एक हलफनामे में ब्योरा देंगे। केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी ने यह भी कहा कि सरकार की नीति "पत्थर की लकीर" नहीं है और मौजूदा स्थिति का जवाब देने के लिए लचीली है।

अदालत ने सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर केंद्र से न्यायाधीशों द्वारा उठाई गई चिंताओं का जवाब देने को कहा है।

पृष्ठभूमि

30 अप्रैल को पीठ ने केंद्र की वैक्सीनेशन नीति, आवश्यक दवाओं के वितरण और राज्यों को ऑक्सीजन आवंटन के संबंध में कई प्रासंगिक प्रश्न उठाए थे। पीठ ने प्रथम दृष्टया टिप्पणी की थी कि केंद्र का वैक्सीनेशन नागरिकों के स्वास्थ्य के अधिकार के लिए हानिकारक है और इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के जनादेश के अनुरूप बनाने के लिए एक पुनरीक्षण की आवश्यकता है।

कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया था कि केंद्र को COVID-19 वैक्सीन और दवाओं पर अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसे विकल्पों का पता लगाना चाहिए और यह कि वैक्सीन निर्माताओं से केंद्रीय रूप से खरीदे जाने चाहिए।

जवाब में, केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर जवाब दिया था कि उसकी वैक्सीनेशन नीति विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के आधार पर तैयार की गई है और यह अनुच्छेद 14 और 21 के अनुरूप है। केंद्र ने यह कहकर नीति की न्यायिक समीक्षा का भी विरोध किया कि "किसी भी अति उत्साही, हालांकि अच्छी तरह से न्यायिक हस्तक्षेप से अप्रत्याशित और अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।"

Tags:    

Similar News