राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ने के लिए अदालतों का इस्तेमाल नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-08-07 04:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक लड़ाई लड़ने के लिए अदालतों का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी और तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। मद्रास हाईकोर्ट ने सरकारी कल्याणकारी योजना के लिए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नाम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने यह आदेश विपक्षी अन्नाद्रमुक सांसद सी.वी. षणमुगम द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया।

अदालत ने अन्नाद्रमुक सांसद के इस आचरण की आलोचना की कि उन्होंने अपनी चुनौती में केवल तमिलनाडु सरकार की योजना का ही ज़िक्र किया, जबकि नेताओं के नाम पर ऐसी योजनाएं पूरे देश में आम हैं। न्यायालय ने द्रमुक की इस दलील पर गौर किया कि अन्नाद्रमुक के कार्यकाल के दौरान, नेताओं के नाम पर कई योजनाएं चलाई गईं।

हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश रद्द करते हुए बेंच ने एक बार फिर दोहराया कि न्यायालय का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक लड़ाई लड़ने के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता।

सीजेआई ने अपने आदेश में कहा:

"हमने बार-बार कहा है कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए। अदालतों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक हिसाब-किताब निपटाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।"

न्यायालय ने विवादित आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि षणमुगम एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकार के पास 10 लाख रुपये की लागत राशि जमा करें।

उक्त लागत का उपयोग राज्य में वंचितों के लिए शुरू की गई किसी भी लाभकारी योजना के लिए किया जाना है।

बेंच ने आगे आदेश दिया कि यदि प्रतिवादी एक सप्ताह के भीतर राशि जमा करने में विफल रहता है तो उसके खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राजनीतिक दलों पर अदालतों को हथियार न बनाने पर ज़ोर दिया

चीफ जस्टिस ने पहले भी इस बात पर ज़ोर दिया कि राजनीतिक दलों को अदालतों का इस्तेमाल राजनीतिक युद्धक्षेत्र के रूप में नहीं करना चाहिए।

चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोदचंद्रन की खंडपीठ ने 21 जुलाई को कर्नाटक के भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद तेजस्वी सूर्या के खिलाफ किसान की आत्महत्या के बारे में कथित रूप से फर्जी खबर फैलाने के आरोप में दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की चुनौती पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए न्यायालय के समक्ष कानूनी मामलों का राजनीतिकरण न करने की चेतावनी दी थी।

चीफ जस्टिस ने कहा था:

"यह क्या है? मामले का राजनीतिकरण न करें। मतदाताओं के सामने अपनी लड़ाई लड़ें। जुर्माने के साथ खारिज..."

संयोग से, उसी दिन चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय के समक्ष मामलों का राजनीतिकरण न करने की चेतावनी दी।

इस मामले में खंडपीठ उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला शुरू करने की मांग की गई।

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की,

"अदालत के सामने राजनीतिकरण करने की कोशिश न करें। आपको अपनी राजनीतिक लड़ाई कहीं और लड़नी चाहिए।"

उसी दिन, न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) से सवाल किया कि उसका इस्तेमाल राजनीतिक लड़ाई के लिए क्यों किया जा रहा है? चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने MUDA घोटाला मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री की पत्नी के खिलाफ ED की याचिका खारिज करते हुए यह तीखी टिप्पणी की थी।

Case Details : DRAVIDA MUNNETRA KAZHAGAM Vs THIRU. C.VE. SHANMUGAM | SLP(C) No. 21487/2025

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