एडवोकेट के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु शिकायतकर्ता और वकील के बीच पेशेवर संबंध ज़रूरी: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-09-24 19:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Advocates Act, 1961 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई सामान्यतः तभी हो सकती है जब शिकायतकर्ता और वकील के बीच पेशेवर (ज्यूरल) संबंध हो।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) द्वारा शुरू की गई कार्यवाही रद्द करते हुए कहा कि विपक्षी पक्ष के वकील के खिलाफ ऐसी शिकायतें “आपत्तिजनक, अस्वीकार्य और अनुचित” हैं।

मामला:

Bar Council of Maharashtra & Goa v. Rajiv Narula में शिकायत थी कि वकील राजीव नारुला ने प्रॉपर्टी विवाद में तथ्यों को दबाया और धोखाधड़ी से डिक्री करवाई।

कोर्ट ने कहा, शिकायतकर्ता नारुला का मुवक्किल कभी नहीं था, इसलिए उस पर Section 35 के तहत misconduct का आरोप अनुचित है।

बार काउंसिल की गलती: 

शिकायत को अनुशासन समिति (Disciplinary Committee) को भेजते समय कारण दर्ज नहीं किए गए

कोर्ट ने दोहराया कि Section 35 के अनुसार रेफर करने से पहले बार काउंसिल को स्पष्ट कारण बताने ज़रूरी हैं।

BCMG का आदेश “बहुत सतही और अस्पष्ट” बताया गया।

एडवोकेट गीता शास्त्री पर केवल अफिडेविट अटेस्ट करने के आधार पर मिली शिकायत भी कोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा –

“सिर्फ अफिडेविट पर साइन करने से वकील उसकी सामग्री का हिस्सा नहीं बनता।”

लागत (cost):

BCMG पर ₹50,000 और

शिकायतकर्ता बंसीधर अण्णाजी भाकड़ पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया गया, ताकि संबंधित वकीलों को हुए उत्पीड़न की भरपाई हो सके।

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