धर्मांतरण के लिए चैरिटी नहीं हो सकती' : सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण के खिलाफ दायर जनहित याचिका के सुनवाई योग्य होने पर आपत्तियों को खारिज किया
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा, हर दान और भले काम का स्वागत है, मगर नीयत की जांच जरूरी है। शीर्ष अदालत ने बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठासीन जज जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि दवा और अनाज देकर लोगों को दूसरे धर्म में धर्मांतरित करने के लिए लुभाना 'बेहद गंभीर' मुद्दा है।
उन्होंने कहा,
"यदि आप मानते हैं कि किसी विशेष व्यक्ति की मदद की जानी चाहिए, तो उसकी मदद करें, मगर यह धर्मांतरण के लिए नहीं हो सकता है। लालच देना बहुत खतरनाक है। यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है और हमारे संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है। प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत में रहता है, उसे भारत की संस्कृति के मुताबिक कार्य करना होगा।"
"और धार्मिक सद्भाव भी", खंडपीठ में शामिल जस्टिस सीटी रविकुमार ने जोड़ा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान के मुताबिक (किसी के धर्म का) गलत तरीके से का प्रचार करने की भी अनुमति नहीं है।
एक संगठन (जो इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग कर रहा है) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा, असली सवाल यह है कि 'प्रचार' शब्द का अर्थ क्या है।
एसजी मेहता ने बताया कि केंद्र इस मुद्दे पर राज्यों से डेटा जुटा रहा है। उन्होंने अदालत को बताया कि इस संबंध में गुजरात में अवैध धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून है लेकिन हाईकोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जिसके खिलाफ अलग से विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई है।
खंडपीठ ने कहा कि वह वर्तमान जनहित याचिका में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ चुनौती पर विचार नहीं कर सकती, जब तक कि इसके साथ एसएलपी भी सूचीबद्ध न हो।
सुनवाई के दरमियान याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने पीठ से राज्यों को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहने का अनुरोध किया, जिस पर पीठ ने यह कहते हुए असहमति जताई कि इससे कार्यवाही में देरी होगी।
मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।
सुनवाई योग्य होने के मुद्दों पर सुनवाई नहीं
खंडपीठ ने यह विशेष रूप से स्पष्ट किया कि वह याचिका के सुनवाई योग्य होने के मुद्दे पर विचार नहीं कर रही है।
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े और सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ( वह तर्कवादी समूह केरल युक्तिवादी संगम की ओर से भी मामले में हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं) ने बताया कि पहले की पीठ उपाध्याय द्वारा दायर इसी तरह की याचिका पर विचार करने से इनकार कर चुकी है, जिसके बाद इसे वापस ले लिया गया था।
उन्होंने इसी प्रकार की याचिका के साथ दिल्ली हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था। एक पुजारी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने भी ऐसी ही आपत्ति जताई।
हालांकि, खंडपीठ ने वकील से तकनीकी दृष्टिकोण रखने से परहेज करने को कहा।
जस्टिस शाह ने कहा,
"सुनवाई योग्य होने पर इतना तकनीकी मत बनें। यह एक गंभीर मुद्दा है। हम यहां समाधान के लिए हैं, चीजों को ठीक करने के लिए।"
पीठ ने कहा, "हम अंतिम निस्तारण के चरण में हैं। हम रखरखाव के सवाल में प्रवेश नहीं करेंगे।"
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य | WP(C) NO 63/2022 PIL