नारदा घोटाला केस: सीबीआई ने टीएमसी नेताओं को हाउस अरेस्ट करने की अनुमति देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका वापस ली

Update: 2021-05-25 11:47 GMT

सीबीआई ने आज (मंगलवार) नारदा केस में टीएमसी नेताओं को हाउस अरेस्ट करने की अनुमति देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका वापस ले ली है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तृणमूल के चार नेताओं को हाउस अरेस्ट करने की अनुमति देने वाले कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील पर विचार करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को याचिका वापस लेने का सुझाव दिया।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की अवकाशकालीन पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सबसे पहले देखा जाना चाहिए और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे को सीबीआई की गिरफ्तारी का विरोध में मुख्यमंत्री के धरना- प्रदर्शन जैसे अन्य मुद्दों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीबीआई द्वारा टीएमसी के चार नेताओं की गिफ्तारी के विरोध में सीबीआई कार्यालय के समक्ष पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री द्वारा किए गए धरना-प्रदर्शन और अदालत परिसर के सामने कानून मंत्री के नेतृत्व में धरना-प्रदर्शन से संबंधित मामले की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि देते हुए बहस शुरू की। एसजी ने कहा कि सीबीआई को अपने कार्यों को करने से रोकने के लिए अच्छी तरह से योजना बनाकर और सुनियोजित तरीके से प्रयास किया गया।

पीठ ने कहा कि सीबीआई की याचिका में कहा गया है कि वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल (जिसने चारों नेताओं को अंतरिम जमानत खारिज कर दी थी) के आदेश को चुनौती दे रहे हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने स्पष्ट किया कि यह गलती थी और इरादा न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी द्वारा पारित आदेश को चुनौती देना है (जिसमें कहा गया था कि आरोपी को अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए)।

जस्टिस बीआर गवई ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या हाईकोर्ट की खंडपीठ का 17 मई का आदेश जिसने जमानत पर रोक लगाई थी, उसमें आरोपी पक्षकारों को नोटिस जारी करके आदेश पारित किया गया था। एसजी ने जवाब दिया कि कोई नोटिस नहीं दिया गया था।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि,

"यदि आप किसी नागरिक को नोटिस नहीं देते हैं तो यह उस व्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।"

एसजी ने जवाब दिया कि मामले की असाधारण परिस्थितियों में स्थगन आदेश दिया गया था।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि,

"हम यह स्पष्ट कर देंगे कि हम धरने की सराहना नहीं करते हैं, लेकिन अगर सीएम या कानून मंत्री कानून अपने हाथ में लेते हैं, तो क्या इसकी सजा आरोपी को मिलनी चाहिए? आप उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं जिन्होंने कानून अपने हाथ में लिया है।"

न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की कि कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि आरोपी हाउस अरेस्ट होने के बावजूद सीबीआई की निगरानी में हैं। पीठ ने पूछा कि वास्तव में सीबीआई की शिकायत क्या है।

पीठ ने एसजी से पूछा, "हम जानना चाहते हैं कि आप हमसे क्या चाहते हैं? आप किस तरह की राहत की मांग कर रहे हैं?"

न्यायमूर्ति गवई ने 17 मई को कलकत्ता उच्च न्यायालय की बैठक के संदर्भ में कहा कि, हमने देखा है कि स्वतंत्रता से निपटाने के लिए विशेष पीठों को सौंपा गया है। लेकिन यह पहली बार है जब एक विशेष पीठ को स्वतंत्रता वापस लेने के लिए सौंपा गया है।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह राज्य के मुख्यमंत्री या कानून मंत्री का समर्थन नहीं कर रही है और केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर बात कर रही है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह मामला केवल जमानत के मुद्दे पर नहीं है और इसमें कानून का शासन से जुड़े बड़े मुद्दे शामिल हैं।

एसजी ने कहा कि इस राज्य में ऐसा होता रहता है। मुख्यमंत्री आरोपी की मदद के लिए पुलिस थाने में घुस जाते हैं।

पीठ ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ वैसे भी इस मुद्दे पर जांच कर रही है। सॉलिसिटर जनरल ने इस पर कहा कि यौर लॉर्डशिप यदि ये तथ्य आपके विवेक को नहीं हिलाते हैं, तो मेरे पास आगे कहने के लिए कुछ भी नहीं है।

केंद्र सरकार के शीर्ष कानून अधिकारी ने भी टिप्पणी की कि यह बहुत गंभीर मुद्दा है जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि कुछ नोटिस जारी नहीं किया गया था।

पीठ से सॉलिसिटर जनरल ने मामले को शुक्रवार तक के लिए स्थगित करने का अनुरोध किया। इस पर पीठ ने कहा कि आपके अनुरोध पर ही मामले की सुनवाई आज की जा रही है। न्यायमूर्ति सरन ने कहा कि मैं 18 साल से न्यायाधीश हूं। सामान्य प्रथा के अनुसार यदि पीठ के न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश का जमानत के मुद्दे पर भिन्न विचार होता है तो बड़ी पीठ के फैसले तक जमानत दी जाती है।

न्यायमूर्ति गवई ने यह भी पूछा कि उच्च न्यायालय को मामले की सुनवाई के अवसर से क्यों वंचित किया जाए। आखिर पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। इस पर एसजी ने टिप्पणी की कि संख्यात्मक ताकत का कोई मतलब नहीं है।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल को याद दिलाया कि जहां तक संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण का सवाल है तो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय एक ही पायदान पर हैं। न्यायमूर्ति गवई ने यह भी पूछा कि जिनके खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है की तुलना क्या जिन लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया है, वे मामले को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। एसजी ने जवाब दिया कि मैं केवल कानूनी रूप से उत्तर देना चाहता हूं।

एसजी ने फिर दोहराया कि मुद्दा सिर्फ जमानत का नहीं है बल्कि राज्य के मंत्रियों के कहने पर गुंडागर्दी के अभूतपूर्व कृत्यों का है।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा,

"हम नागरिकों की स्वतंत्रता के मुद्दे को राजनेताओं के अवैध कृत्यों के साथ नहीं मिलाना चाहते हैं।"

न्यायमूर्ति सरन ने कहा कि हमें देखना होगा कि जमानत दी जा सकती है या नहीं। अन्य मुद्दों के संबंध में अन्य उपाय हैं। जमानत के मामले में एक व्यक्ति कितनी दूर जा सकता है? किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे पहले देखी जाती है। अन्य को प्रासंगिक कार्यवाही में देखा जाता है।

बेंच ने सुझाव दिया कि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट से मामले को वापस ले और कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष मुद्दों को उठाए।

सॉलिसिटर जनरल ने इसके बाद निर्देश लेने के लिए मामले को पास-ओवर करने का अनुरोध किया। पीठ ने अंत में उठाए जाने वाले मामले को पारित कर दिया।

जब मामले को फिर से लिया गया तो सॉलिसिटर जनरल ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। इस अनुरोध को ध्यान में रखते हुए पीठ ने सीबीआई को कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दों को उठाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी।

पृष्ठभूमि

कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने 21 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं - फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, मदन मित्रा और सोवन चटर्जी की जमानत से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिन्हें नारदा घोटाला मामले में सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी के बाद से 17 मई से हिरासत रखा है। इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजा गया था।

न्यायमूर्ति बनर्जी ने अंतरिम जमानत की अनुमति देते हुए एक आदेश पारित किया था जबकि एसीजे बिंदल असहमत थे और कहा था कि गिरफ्तार किए गए चार टीएमसी नेताओं को हाउस अरेस्ट किया जाना चाहिए, जिसके कारण संदर्भ हुआ। तदनुसार कुछ समय के लिए आरोपियों को हाउस अरेस्ट करने निर्देश दिया गया और उन्हें फाइलों तक पहुंचने, वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अधिकारियों से मिलने की अनुमति दी गई थी ताकि उन्हें अपने कार्यों का निर्वहन करने की अनुमति मिल सके।

बेंच ने हाउस अरेस्ट के आदेश पर रोक लगाने के सीबीआई के अनुरोध को खारिज कर दिया था। इसने टीएमसी नेताओं के वकीलों द्वारा अंतरिम जमानत पर रिहा करने के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया था।

एसीजे बिंदल ने बाद में मामले की सुनवाई के लिए एसीजे बिंदल, और जस्टिस आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और अरिजीत बनर्जी की पांच जजों की बेंच का गठन किया। 17 मई को पीठ ने कोकाटा में विशेष सीबीआई अदालत द्वारा तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और सोवन चटर्जी को दी गई जमानत पर रोक लगा दी थी। इन्हें 17 मई को सीबीआई ने नाटकीय रूप से गिरफ्तार किया था।

पीठ ने सीबीआई द्वारा भेजे गए एक पत्र के आधार पर नाटकीय देर रात सुनवाई के बाद स्थगन आदेश पारित किया था। इसमें मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के नेतृत्व में टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों द्वारा निचली अदालत पर "अभूतपूर्व भीड़ दबाव" का हवाला देते हुए मामले को हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। अगले दिन, टीएमसी नेताओं ने इस आधार पर स्थगन आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया कि यह उन्हें नोटिस जारी किए बिना पारित किया गया था।

पीठ ने 19 मई को सीबीआई के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और गिरफ्तार टीएमसी नेताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा को सुना था। सिंघवी और लूथरा ने इस आधार पर अंतरिम जमानत के लिए प्रार्थना की थी कि आरोपी वृद्ध व्यक्ति हैं और बीमार हैं। पीठ को बताया गया कि गिरफ्तार किए गए तीन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उनमें से एक सोवन चटर्जी अभी भी जेल में है।

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