कावेरी नदी विवाद| सीडब्ल्यूआरसी के आदेश में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप करने से इनकार, सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने दिया यह तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इस आदेश में कर्नाटक राज्य को बिलिगुंडलू में 15 दिनों के लिए 5000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश 13 सितंबर से 27 सितंबर की अवधि का है। कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्ल्यूआरसी) द्वारा पारित आदेश की सीडब्ल्यूएमए ने पुष्टि की है।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि सीडब्ल्यूएमए और सीएमआरसी में जल संसाधन प्रबंधन और कृषि के क्षेत्र के विभिन्न विशेषज्ञ शामिल हैं। अदालत ने कहा कि सीएमआरसी ने इस साल पानी की कमी और पिछले 15 दिनों में कावेरी बेसिन में बढ़ती संकट की स्थिति सहित कई अन्य कारकों को ध्यान में रखा है। न्यायालय ने यह भी कहा कि हर 15 दिन में उचित प्राधिकारियों द्वारा स्थिति की निगरानी की जा रही है।
तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि हालांकि सीडब्ल्यूएमए और सीडब्ल्यूआरसी ने स्वीकार किया है कि राज्य 6400 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए पात्र है, लेकिन इसे घटाकर 5000 क्यूसेक कर दिया गया है।
सीनियर एडवोकेट रोहती ने दलील दी,
"यह हर किसी के लिए संकटपूर्ण वर्ष है। मैं निम्न कृषि प्रधान राज्य हूं। गणना उसी पर आधारित है। एक नियमित वर्ष में मैं 3 गुना अधिक के लिए पात्र होता।"
कर्नाटक राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि सीडब्ल्यूएमए का आदेश कर्नाटक के हित के खिलाफ है, लेकिन इसका अनुपालन अभी भी किया जा रहा है। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि आदेश को चुनौती देते हुए कर्नाटक द्वारा अलग आवेदन दायर किया गया है।
उन्होंने तर्क दिया,
"कर्नाटक को उत्तर पूर्वी मानसून का भी लाभ नहीं मिलता।"
मामले की पृष्ठभूमि
तमिलनाडु सरकार ने 14 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कर्नाटक को अपने जलाशयों से तुरंत 24,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) पानी छोड़ने के लिए बाध्य करने में हस्तक्षेप की मांग की थी। इसका उद्देश्य चालू माह के शेष भाग के लिए अंतरराज्यीय सीमा पर बिलिगुंडलू में पानी की निर्दिष्ट मात्रा को सुरक्षित करना था।
अनुरोध में न्यायालय से कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) के फरवरी 2007 में हुए अंतिम निर्णय के अनुसार, सितंबर 2023 के लिए निर्धारित 36.76 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी की रिहाई की गारंटी देने के लिए कर्नाटक को निर्देश देने की याचिका भी शामिल थी, जिसे बाद में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित किया। कर्नाटक ने कम बारिश का हवाला देकर तमिलनाडु की मांग का विरोध किया।
25 अगस्त को कोर्ट ने इस मामले में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) से रिपोर्ट मांगी थी।
कावेरी जल विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद है। यह 1974 में शुरू हुआ जब ऊपरी तटवर्ती राज्य कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी मोड़ना शुरू कर दिया। 2007 में सीडब्ल्यूडीटी द्वारा जल बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने के बाद यह झगड़ा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। यह अवार्ड 5 फरवरी, 2007 को आया था और 19 फरवरी, 2013 को केंद्र सरकार द्वारा राजपत्रित किया गया था। पानी के बंटवारे पर निर्णय लेने के अलावा, न्यायाधिकरण ने कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड और कावेरी जल विनियमन समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।
2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानविलकर की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कर्नाटक राज्य को तमिलनाडु राज्य को 192 टीएमसी के बजाय 177.25 टीएमसी पानी जारी करने का निर्देश दिया था।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य अपने मुख्य सचिव द्वारा बनाम तमिलनाडु राज्य अपने मुख्य सचिव द्वारा एमए 3127/2018 सी.ए. में. क्रमांक 2453/2007