'जमानत आदेश को चुनौती देने के लिए तीसरे पक्ष को अनुमति नहीं दे सकते', सुप्रीम कोर्ट ने वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत की जमानत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने वीडियोकॉन समूह के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत को अंतरिम जमानत देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को घनश्याम उपाध्याय की ओर से दी गई चुनौती पर विचार करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा, किसी तीसरे पक्ष को जमानत के लिए किसी के आवेदन में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने शुरुआत में ही याचिका पर विचार करने के प्रति अपनी अनिच्छा व्यक्त की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय के वकील एडवोकेट सुभाष झा से एक अहम सवाल किया।
उन्होंने पूछा,
"आप किसी के जमानत आवेदन में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? आप जमानत के लिए किसी के आवेदन में कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? यदि उन्होंने गलत तरीके से जमानत दी है, तो राज्य अपील करेगा। लेकिन हम एक निजी पक्ष को कैसे अनुमति दे सकते हैं?"
जब झा ने अपनी पक्ष रखने का प्रयास किया, तो सीजेआई ने आगे कहा-
"आप एक अधिवक्ता हैं। आप किसी को जमानत देने को चुनौती नहीं दे सकते हैं, चाहे कितना भी गलत आदेश पारित किया गया हो। आप शिकायतकर्ता भी नहीं हैं। यह एक बहुत ही गलत मिसाल कायम करेगा। यह एक आपराधिक मामला है। आप एक अनुभवी आपराधिक वकील हैं। कल्पना कीजिए कि अगर हम जमानत के आदेशों को चुनौती देना शुरू कर दें। पूरी दुनिया यहां आ जाएगी।"
झा ने यह कहते हुए जवाब दिया कि लोकस स्टैंडी आपराधिक न्यायशास्त्र के लिए बाहरी है, और इस मामले में मुद्दा हाईकोर्ट द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत जमानत देने के लिए शक्तियों का प्रयोग करने के संबंध में है।
उन्होंने कहा,
"यह कौन करेगा? कौन हस्तक्षेप करेगा? इस मामले में, सीबीआई को तर्क देना चाहिए था। हमारे द्वारा रिकॉर्ड पर रखे जाने और आईए के सर्कूलेट होने के बाद भी सीबीआई ने बहस नहीं की। सीबीआई बहस कर सकती थी और हम आप से संपर्क नहीं करते। यह आर्थिक अपराध है।"
जस्टिस नरसिम्हा ने नाराजगी जताते हुए कहा,
"यहां तक कि एक वास्तविक शिकायतकर्ता भी अदालत से संपर्क नहीं कर सकता है या इस तरह से हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हमारे पास जिस तरह के गंभीर मामले हैं, जिस तरह का बोझ इस अदालत पर है, इस तरह के मामले को स्थगित करने की जरूरत है और इसके न्यायशास्त्रीय पहलुओं की बाद में जांच की जा सकती है।"
इसके बाद पीठ ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट अपने आदेश में सही था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा अवैध गिरफ्तारी का आरोप लगाते हुए धूत को अंतरिम जमानत दे दी थी।
केस टाइटल: घनश्याम उपाध्याय बनाम वेणुगोपाल नंदलाल धूत एसएलपी (सीआरएल) नंबर 2702-03/2023