क्या केवल एक उम्मीदवार वाले चुनावों में मतदाताओं को NOTA का विकल्प नहीं दिया जा सकता? सुप्रीम कोर्ट ने ECI से पूछा
सुप्रीम कोर्ट ने कल निर्विरोध चुनावों (अर्थात बिना मतदान के) में उम्मीदवारों के प्रत्यक्ष निर्वाचन को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सवाल करते हुए पूछा, "यदि एक ही उम्मीदवार है, लेकिन मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा NOTA (इनमें से कोई नहीं) के माध्यम से उसे निर्वाचित नहीं देखना चाहता तो क्या उनकी 'अदृश्य इच्छा' को पराजित होने दिया जाना चाहिए?"
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) और चुनाव संचालन नियम, 1961 के प्रपत्र 21 और 21बी के साथ नियम 11 के खिलाफ विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की याचिका पर विचार कर रही थी।
धारा 53(2) के अनुसार, यदि किसी चुनाव में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली सीटों की संख्या के बराबर है तो निर्वाचन अधिकारी तुरंत ऐसे सभी उम्मीदवारों को उन सीटों को भरने के लिए विधिवत निर्वाचित घोषित करेगा। इसी प्रकार, आचार नियम, 1961 का नियम 11 निर्विरोध चुनाव के परिणामों की घोषणा ऐसे प्रारूप [यदि यह आम चुनाव है तो फॉर्म 21 (या यदि यह आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए चुनाव है तो फॉर्म 21बी (यदि यह आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए चुनाव है तो)] में करने से संबंधित है, जो उपयुक्त हो।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस कांत ने कहा कि लोगों के 'NOTA' पर वोट देने से पहले किसी उम्मीदवार के प्रति गंभीर आक्रोश होना चाहिए, जिससे नोटा विकल्प प्रभावी हो जाता है। चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि यदि इतना आक्रोश है तो लोग एक स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं।
हालांकि, जस्टिस भुयान ने इससे असहमति जताते हुए कहा,
"यह लोगों के हाथ में नहीं है, इसलिए लोग नोटा पर वोट देंगे..."।
अंत में द्विवेदी ने आग्रह किया कि यदि कानून ऐसा ही है तो चुनाव आयोग को कोई आपत्ति नहीं है।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और एएसजी एसडी संजय ने न्यायालय को सूचित किया कि चुनाव आयोग के अलावा, केंद्र सरकार ने भी इस मामले में एक हलफनामा दायर किया। हालांकि, चूँकि यह हलफनामा रिकॉर्ड में नहीं था, इसलिए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई। संबंधित मुद्दों पर अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि यह केवल "शैक्षणिक अभ्यास" है, क्योंकि 1991 के बाद से निर्विरोध चुनाव का शायद ही कोई उदाहरण रहा हो। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकीलों ने इस बात का खंडन किया।
गौरतलब है कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। ADR की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने पेश होकर बताया कि कई राज्यों ने एक कानून अपनाया है, जिसके अनुसार यदि स्थानीय चुनावों में नोटा को किसी उम्मीदवार से अधिक वोट मिलते हैं तो चुनाव नए सिरे से कराए जाएंगे। हालांकि, लोकसभा के मामले में ऐसा कोई नियम नहीं है।
Case Title: VIDHI CENTRE FOR LEGAL POLICY Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(C) No. 677/2024