क्या बीसीआई गैर मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज से ग्रेजुएट को इनरोल करने से मना कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Update: 2023-06-08 04:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें यह सवाल उठाया गया कि क्या बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के पास वकील के रूप में इनरोमेंट करने से पहले शिक्षा से संबंधित मामलों को विनियमित करने की शक्ति है या नहीं।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने आदेश दिया,

"नोटिस तामील किए जाने के बावजूद प्रतिवादियों की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। हमने याचिकाकर्ताओं के वकील को सुना है। फैसला सुरक्षित रखा जाता है।"

सुनवाई के दौरान बीसीआई की ओर से पेश एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद ने पीठ को सूचित किया कि अखिल भारतीय बार परीक्षा से संबंधित संविधान पीठ के फैसले में अदालत ने कहा कि बीसीआई के पास व्यापक अधिकार हैं, जो कि न केवल नामांकन के बाद बल्कि नामांकन करने से पहले भी प्रयोग किए जा सकते हैं।

बेंच ने पूछा,

"प्रतिवादी कहां है?"

जवाब में एडवोकेट ने कहा कि सवाल में एक व्यक्ति शामिल नहीं है, लेकिन मुख्य रूप से बीसीआई की शक्तियों के दायरे में है।

उन्होंने कहा,

"यौर लॉर्डशिप ने (2013 में) में पारित फैसले पर रोक लगा दी है।"

सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें बीसीआई को वकील के रूप में नामांकन के लिए किसी भी शर्त को लागू करने से रोक दिया गया था, जिसमें यह भी शामिल था कि लॉ स्टूडेंट को केवल मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज से ग्रेजुएट होना चाहिए।

मामले के अनुसार, प्रतिवादी रबी साहू ने लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की, जिसकी संबद्धता बीसीआई द्वारा रद्द कर दी गई थी। जब उन्होंने वकील के रूप में नामांकन करना चाहा तो वे ऐसा करने में असमर्थ रहे। व्यथित होकर उन्होंने हाईकोरो्ट का रुख किया, जिसने कहा कि बीसीआई एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 24 के तहत निर्धारित नियमों के अलावा नामांकन के लिए कोई नियम नहीं बना सकता है और न ही कोई शर्त जोड़ सकता है।

मामला जब न्यायालय में पहुंचा तो कई तर्क दिए गए। यह कहा गया कि बीसीआई द्वारा दी गई मान्यता इस बात से संतुष्ट होने के बाद है कि संस्थान के पास उचित कानूनी शिक्षा प्रदान करने के लिए सभी सुविधाएं हैं। इसके लिए बीसीआई का निरीक्षण अनिवार्य है, अदालत को बताया गया। ये सभी कदम बीसीआई द्वारा पांच वर्षीय पाठ्यक्रमों के माध्यम से कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए।

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि बीसीआई ने 48 कॉलेजों की मान्यता रद्द कर दी और यदि विवादित निर्णय को ऐसे ही छोड़ दिया गया तो अन्य कॉलेज संबद्धता मांग कर समानता का दावा करेंगे। प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय उस समय के निर्णय पर रोक लगाने के लिए इच्छुक था। इस मामले को कोर्ट ने 2013 में स्वीकार किया था।

केस टाइटल: बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम रबी साहू

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