सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से पूछा, अगर चार्जशीट अधूरी है तो क्या आरोपी ‌डिफॉल्ट जमानत मांग सकता है?

Update: 2023-08-31 09:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट को हाल ही में एक दिलचस्प सवाल का सामना करना पड़ा।

सवाल यह था कि क्या अधूरी चार्जशीट किसी आरोपी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के तहत ‌डिफॉल्ट जमानत का हकदार बना देगी और क्या इस अधूरी चार्जशीट के आधार पर मामले का संज्ञान लिया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह सवाल एक ऐसे मामले में उठा, जहां सीआरपीसी की धारा 167 के अनुसार 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर की गई थी।

डिफॉल्ट जमानत की मांग के लिए दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि अधूरी चार्जशीट संज्ञान लेने के आधार के रूप में काम नहीं करना चाहिए। हालांकि इस तर्क को ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्टदोनों ने खारिज कर दिया था।

हाईकोर्ट ने कहा था,

सीआरपीसी की धारा 167 की उप-धारा (2) की योजना के तहत जो विचार किया गया है वह आरोपी के खिलाफ अपराध से संबंधित जांच का पूरा होना है न कि मामले की जांच या सीआरपीसी की धारा 173 के तहत चार्जशीट दाखिल करना, जो यह निर्धारित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण है कि आरोपी वैधानिक जमानत पाने का हकदार है या नहीं।''

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सीबीआई (प्रतिवादी) को नोटिस जारी किया है।

न्यायालय ने कहा,

''जिस आदेश को चुनौती दी गई है, उसके पैरा 27 में जैसा दिखता है, हाईकोर्ट की उपरोक्त समझ कानून का सही कथन है या नहीं, उसे इस न्यायालय को निर्धारित करने की आवश्यकता है। प्रतिवादी-सीबीआई को नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब दो सप्ताह में दिया जाए।''

मौजूदा मामले में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने याचिकाकर्ता की ‌डिफॉल्ट जमानत की याचिका को अस्वीकार कर दिया था।

मौजूदा मामले में जांच एजेंसी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 167 के तहत अनिवार्य 60 दिनों की वैधानिक समय सीमा के भीतर, 12 नवंबर 2022 को चार्जशीट दायर किया था।

मजिस्ट्रेट की अदालत में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हालांकि चार्जशीट निर्धारित समय सीमा के भीतर दायर की गई थी, लेकिन यह अधूरी थी। न्यायिक हिरासत के 61 वें दिन रिकॉर्ड पर वैध और कानूनी चार्जशीट की अनुपस्थिति में, वे ‌डिफॉल्ट जमानत के हकदार हैं। हालांकि, इस तर्क को खारिज कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश सी‌नियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने जोर देकर कहा कि अधूरी चार्जशीटों पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता है।

उन्होंने तर्क दिया कि धारा 173(2) के अर्थ के तहत "पुलिस रिपोर्ट" भेजना केवल जांच के निष्कर्ष पर ही स्वीकार्य है। जांच पूरी होने से पहले रिपोर्ट भेजने का कोई भी प्रयास सीआरपीसी की धारा 2(आर) के साथ पढ़ी गई धारा 173(2) के संदर्भ में "पुलिस रिपोर्ट" के रूप में योग्य नहीं होगा।

उन्होंने तर्क दिया कि किसी मजिस्ट्रेट के लिए सीआरपीसी की धारा 190(1)(बी) के ढांचे के भीतर अधूरी चार्जशीट पर आधारित किसी अपराध का संज्ञान लेना अनुचित होगा। प्रस्तुत किए गए तर्कों और हाईकोर्ट की ओर से की गई सूक्ष्म व्याख्या ने सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने और इस समझ की सत्यता का आकलन करने के लिए प्रेरित किया।

'रितु छाबरिया' मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इस साल अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट की 2-जजों की पीठ ने रितु छाबरिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामले में फैसला दिया था कि जांच एजेंसी की ओर से जांच पूरी किए बिना दायर की गई अधूरी चार्जशीट आरोपी के ‌डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को खत्म नहीं करेगी।

हालांकि, बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने रितु छाबरिया को रिकॉल करने के लिए एक आवेदन दायर किया। ईडी के रिकॉल आवेदन पर कार्रवाई करते हुए, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आदेश दिया कि अदालतों को रितु छाबरिया के फैसले के आधार पर ‌डिफॉल्ट जमानत की मांग करने वाले आवेदन को स्थगित कर देना चाहिए।

केस टाइटल: यतिन यादव बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर

साइटेशन: स्पेशल लीव टू अपील (सीआरएल) नंबर्स 10107/2023

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