'महिलाओं को दशकों बाद भी अपनी शिकायत सामने रखने का अधिकार': दिल्ली कोर्ट ने एमजे अकबर आपराधिक मानहानि केस में प्रिया रमानी को बरी किया
दिल्ली की अदालत ने बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को बरी कर दिया है। प्रिया द्वारा लगाए गए ''मीटू'' यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद यह अवमानना का केस दायर किया गया था।
अदालत ने कहा कि,''महिलाओं को दशकों के बाद भी अपनी शिकायत सामने रखने का अधिकार है।'' यह भी कहा कि सोशल स्टे्टस वाला व्यक्ति भी यौन उत्पीड़न करने वाला हो सकता है।
कोर्ट ने माना कि,''यौन शोषण गरिमा और आत्मविश्वास को खत्म कर देता है। प्रतिष्ठा का अधिकार गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता है।''
अदालत ने प्रासंगिक समय पर विशाखा दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति का विशेष ध्यान रखते हुए कहा कि,''समाज को अपने पीड़ितों के खिलाफ हुए यौन शोषण और उत्पीड़न के प्रभाव को समझना चाहिए।''
आदेश में कहा गया है कि,''संविधान के तहत आर्टिकल 21 और समानता के अधिकार की गारंटी दी गई है। उसे अपनी पसंद के प्लेटफार्म पर अपने मामले को रखने का पूरा अधिकार है''
''समय आ गया है कि हमारा समाज यह समझे कि कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात के कारण वर्षों तक नहीं बोल पाता है। महिला को यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।''
अदालत ने आरोपी की तरफ से दिए तर्क की उस संभावना को भी स्वीकार किया कि उसके द्वारा खुलासा करने के बाद अकबर का नाम अन्य महिलाओं ने भी सैक्सुअल प्रेडटर के रूप में लिया था। न्यायालय ने यह भी स्वीकार किया कि अकबर उत्कृष्ट प्रतिष्ठा का व्यक्ति नहीं था।
कोर्ट ने रमानी के इस तर्क को भी स्वीकार कर लिया कि गजाला वहाब की गवाही ने अकबर के उत्कृष्ट प्रतिष्ठा के दावे को धूमिल कर दिया है क्योंकि कथित तौर पर अकबर ने उसका भी यौन शोषण किया था।
यह निर्णय अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, रवींद्र कुमार पांडेय ने दोनों पक्षों की उपस्थिति में ओपन कोर्ट में सुनाया।
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए, रमानी ने कहा ''मुझे अमेजिंग लग रहा है, मैं दोषमुक्त महसूस कर रही हूं क्योंकि मेरे सत्य को कानून की अदालत में स्वीकार कर लिया गया है।''
प्रिया रमानी की वकील सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने मीडिया को बताया ''प्रिया रमानी द्वारा बताई गई सच्चाई की रक्षा की गई।''
जॉन ने कहा कि,''यह एक अद्भुत निर्णय है, हम आभारी हैं कि अदालत ने सबूतों पर इतनी सावधानी से विचार किया। बचाव पक्ष ने शिकायतकर्ता के मामले का बहुत मजबूती से खंडन किया था और उनके बचाव की दलीलों को बरकरार रखा गया है।''
अदालत ने 1 फरवरी, 2021 को अकबर और रमानी की दलीलें सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह निर्णय मूल रूप से 10 फरवरी के लिए आरक्षित रखा गया था, परंतु बाद में 17 फरवरी के लिए टाल दिया गया था क्योंकि न्यायाधीश ने कहा था कि लिखित दलीलें अदालत में देरी से प्रस्तुत की गई थी,इसलिए फैसला देने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने श्री एमजे अकबर का प्रतिनिधित्व किया, जबकि सुश्री प्रिया रमानी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने किया। कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए दोनों पक्षकारों को 4 दिनों के भीतर अतिरिक्त लिखित दलीलें दाखिल करने की स्वतंत्रता प्रदान की थी।
अक्टूबर 2018 में एमजे अकबर द्वारा दिल्ली की एक अदालत में आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था। रमानी के '#MeToo' movement के तहत किए गए ट्वीट के बाद उनके खिलाफ कई महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। यह भी खुलासा किया गया था कि उसके द्वारा पूर्व में 'The Vogue' में लिखे गए एक लेख में जिस व्यक्ति को यौन उत्पीड़न करने वाला संदर्भित किया गया था,वह अकबर था।
तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री अकबर ने रमानी के ट्वीट के बाद उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के कई आरोप लगाए जाने के बाद एक मानहानि का मामला दायर किया था। उनका मामला यह था कि रमानी के कथित मानहानि वाले ट्वीट से पहले, उनकी समाज में एक 'उत्कृष्ट प्रतिष्ठा' थी, जो उनके ट्वीट के बाद खराब हो गई, इसलिए वह आपराधिक मानहानि के लिए जिम्मेदार है। अकबर ने यह भी दावा किया था कि रमानी के ट्वीट से उनके खिलाफ सोशल मीडिया ट्रायल चला था, वह ऐसा कुछ था जिसे कानूनन समाज में अनुमति नहीं दी जा सकती है।
रमानी ने अपने बचाव में सार्वजनिक हित, सार्वजनिक भलाई, और सच्चाई का दावा किया और तर्क दिया कि यौन दुराचार का एक आरोपी उत्कृष्ट प्रतिष्ठा होने का दावा नहीं कर सकता है, इसलिए प्रतिष्ठा नष्ट होने का कोई सवाल ही नहीं था। न ही अकबर की कोई मानहानि हुई थी।
रमानी को अदालत ने इस मामले में जनवरी 2019 में समन जारी किया था और फरवरी 2019 में जमानत पर रिहा कर दिया था।
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहुजा के समक्ष दलीलें पूरी हो गई थी,हालांकि नवंबर 2020 में कड़कड़डूमा कोर्ट में उनके स्थानांतरण के बाद, एसीएमएम रवींद्र कुमार पांडेय के समक्ष अंतिम बहस शुरू हुई। गवाहों के साक्ष्य की रिकॉर्डिंग एसीएमएम पाहुजा के समक्ष पूरी की गई थी।
जब एसीएमएम पांडेय ने मामले की जिम्मेदारी संभाली, तो उन्होंने पक्षकारों से पूछा था कि क्या समझौता करने कोई चांस है। हालांकि, रमानी ने कहा कि वह अपने बयानों पर टिकी है और मामले में समझौता करने से इनकार कर दिया था।