लोकसभा में 135 साल पहले बने कानून समेत 65 अप्रचलित कानूनों को निरस्त करने के लिए विधेयक पेश
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को लोकसभा में निरसन और संशोधन विधेयक, 2022 पेश किया, जो उन 65 कानूनों को निरस्त करने का प्रवाधान करता है जो या तो अप्रचलित हैं या अन्य कानूनों के संचालन के कारण निरर्थक हो गए हैं।
विधेयक में तीन अनुसूचियां शामिल हैं - पहली अनुसूची में वर्ष 1885 और 2020 के बीच अधिनियमित 24 कानूनों की सूची है, जिन्हें निरस्त करने का इरादा है, दूसरी अनुसूची में वर्ष 2013 और 2017 के बीच बनाए गए 41 विनियोग अधिनियमों को निरस्त करने की सूची है और तीसरी अनुसूची में 1 अधिनियम की सूची है, जिसमें संशोधन किया जाएगा।
पहली अनुसूची के अनुसार, विधेयक का उद्देश्य भूमि अधिग्रहण (खान) अधिनियम, 1885, गन्ना अधिनियम, 1934, टेलीग्राफ तार (गैरकानूनी कब्ज़ा) अधिनियम, 1950, भारतीय धातु निगम (उपक्रम का अधिग्रहण) अधिनियम 1965 और कोयला खान (संरक्षण और विकास) अधिनियम, 1974 को निरस्त करना है।
पहली अनुसूची में सूचीबद्ध 24 कानूनों में से 16 कानून संशोधित अधिनियम हैं, जो निरस्त माने जाएंगे। इस सूची में कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2017, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2018, व्यक्तिगत कानून (संशोधन) अधिनियम, 2019, आधार और अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम, 2019 और सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019, अन्य के साथ शामिल हैं।
तीसरी अनुसूची का उद्देश्य फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 में मामूली प्रारूपण त्रुटि को दूर करना है, जहां अधिनियम की धारा 31ए (3) में, "उस केंद्र सरकार" शब्दों को "उस सरकार" से प्रतिस्थापित करने का इरादा है।
रिजिजू ने 15 दिसंबर को विशेष रूप से राज्यसभा में भाजपा सांसद धनंजय भीमराव महादिक द्वारा पुरातन और अप्रचलित कानूनों के मुद्दे पर पूछे गए अतारांकित प्रश्न का लिखित उत्तर दिया था।
रिजिजू ने तब कहा था,
"अप्रचलित और पुरातन कानून नागरिकों पर अनावश्यक अनुपालन बोझ डालते हैं। इसलिए इस सरकार का यह संकल्प रहा है कि इस तरह के अनुपालन बोझ को कम किया जाए, कानूनी व्यवस्था में सुधार लाया जाए और इसे आम आदमी के लिए अधिक सुलभ बनाया जाए। इस संकल्प के अनुरूप, सरकार ने मई, 2014 से अब तक 1486 अप्रचलित और अनावश्यक केंद्रीय अधिनियमों को निरस्त कर दिया है।"
रिजिजू ने तब कहा,
"इसके अलावा, राज्य के विषय से संबंधित 76 केंद्रीय अधिनियमों को भी संबंधित राज्य विधानमंडल द्वारा निरस्त कर दिया गया।"
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