सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले के आरोपी महेश राउत को मेडिकल आधार पर 6 हफ़्तों की अंतरिम ज़मानत दी। महेश राउत को कथित माओवादी संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत गिरफ़्तार किया गया। जून 2018 में गिरफ़्तारी के बाद से ही वह हिरासत में है।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट सी.यू. सिंह द्वारा राउत को रूमेटाइड अर्थराइटिस (र्यूमेटॉइड अर्थराइटिस) से पीड़ित होने का ज़िक्र किए जाने के बाद ज़मानत दी। यह एक स्व-प्रतिरक्षित विकार है, जो हड्डियों और मांसपेशियों पर हमला करता है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू (NIA की ओर से) अदालत में उपस्थित नहीं है। हालांकि, NIA की ओर से एक अन्य वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उनके ख़िलाफ़ आरोप गंभीर हैं, क्योंकि उन पर माओवादियों को धन हस्तांतरित करने का आरोप है।
सिंह ने जवाब दिया कि राउत को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 सितंबर, 2023 को गुण-दोष के आधार पर ज़मानत दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने NIA को अपील दायर करने के लिए एक सप्ताह के लिए आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद NIA ने अदालत में अपील दायर की, जिसे जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट द्वारा दी गई एक सप्ताह की रोक को 5 अक्टूबर, 2023 तक बढ़ा दिया। तब से रोक को समय-समय पर बढ़ाया गया।
जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि अदालत मेडिकल आधार पर ज़मानत देने के पक्ष में है।
अदालत ने आदेश दिया:
"आवेदक मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत मांग रहा है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उसे वास्तव में ज़मानत दी गई थी, हम 6 सप्ताह की अवधि के लिए मेडिकल ज़मानत देने के पक्ष में हैं।"
Case Details: THE NATIONAL INVESTIGATION AGENCY v MAHESH SITARAM RAUT AND ANR.|Crl.A. No. 3048/2023