किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सोशल मीडिया पर कमेंट में टैग किया जाना टैग किए जाने वाले व्यक्ति पर कोई दायित्व नहीं डालता: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक स्कूल शिक्षक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिस पर फेसबुक पर की गई टिप्पणियों के माध्यम से सांप्रदायिक घृणा और हिंसा फैलाने का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने फैसले में कहा कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सोशल मीडिया पर टिप्पणियों में टैग किया जाना आवश्यक रूप से टैग किए जा रहे व्यक्ति पर "कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं डालता है"।
जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने देखा,
“याचिकाकर्ता को कथित रूप से एक अन्य सह-आरोपी द्वारा अपलोड किए गए फेसबुक पोस्ट में टैग किया गया लगता है। केस डायरी के दस्तावेजों में फेसबुक पोस्ट पर याचिकाकर्ता की किसी भी टिप्पणी का खुलासा नहीं किया गया है, जिससे विभिन्न समुदायों के बीच धार्मिक घृणा को बढ़ावा मिले। याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराधों में सीधे तौर पर शामिल होने के आरोप केस रिकॉर्ड में उसे आरोपित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"
शिकायतकर्ता द्वारा 6 मई, 2021 को दायर की गई शिकायत के आधार पर फेसबुक पर टिप्पणियों के माध्यम से समाज के लोगों के बीच सांप्रदायिक घृणा और हिंसा फैलाने के आरोप के आधार पर याचिकाकर्ता और अन्य व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), धारा 505 (वर्गों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान)\धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और धारा 120 बी (आपराधिक साजिश की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता ने कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक विचारधाराओं के कारण झूठे आधार पर बदला लेने के एक गुप्त उद्देश्य के साथ झूठा फंसाया गया है। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि एफआईआर में बताए गए आरोप एक संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते हैं....।
यह तर्क दिया गया कि कथित सोशल मीडिया पोस्ट किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपलोड किया गया था और याचिकाकर्ता को केवल पोस्ट में टैग किया गया था, जिसके कारण यह उसके फेसबुक प्रोफाइल पर दिखाई दे रहा था।
यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ता न तो पोस्ट का निर्माता था और न ही उसने पश्चिम बंगाल में विभिन्न समुदायों के बीच दंगा फैलाने के इरादे से कोई धार्मिक घृणा फैलाने का इरादा किया था।
राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को फंसाने के लिए रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और उसकी संलिप्तता को परीक्षण की प्रक्रिया के माध्यम से साबित किया जाएगा और समय से पहले कार्यवाही को रद्द नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने पाया कि 6 मई, 2021 की शिकायत और रिकॉर्ड पर सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए बयान आईपीसी के उपरोक्त प्रावधानों के तहत किए गए अपराध को सही ठहराने के लिए वर्तमान याचिकाकर्ता के विशिष्ट कार्य का वर्णन नहीं करते हैं।
यह भी देखा गया कि शिकायत एक दंगे की घटना का अनुमान लगाती है लेकिन ऐसी घटना की किसी भी घटना का जिक्र नहीं करती, तो फेसबुक पोस्ट के कारण हुई हो।
अदालत ने उक्त टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 504, 505, 506 और 120 बी के तहत कार्यवाही को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: श्री प्रतीप रॉय बसुनिया बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य