जैविक विज्ञान में बी.एड एचएसए (प्राकृतिक विज्ञान) पद के लिए वांछनीय योग्यताः सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-08-19 15:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 'जैविक विज्ञान' में बी.एड डिग्री वाले उम्मीदवार केरल के सरकारी स्कूलों में हाई स्कूल असिस्टेंट (प्राकृतिक विज्ञान) के पद पर आवेदन करने के पात्र हैं।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि 'जैविक विज्ञान' में बी.एड डिग्री हाई स्कूल असिस्टेंट (प्राकृतिक विज्ञान) के लिए योग्यता नहीं है।

पृष्ठभूमि के तथ्य

सुप्रीम कोर्ट दो अपीलों पर विचार कर रहा था। अपीलकर्ता 'जैविक विज्ञान' में बी.एड वाले व्यक्ति हैं। केरल लोक सेवा आयोग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, एचएसए (प्राकृतिक विज्ञान) के पद के लिए योग्यताएं निम्न हैं-

-आवेदकों ने स्नातक या स्नातकोत्तर में मुख्य विषय के रूप में वनस्पति विज्ञान या जीव विज्ञान या गृह विज्ञान या सूक्ष्म जीव विज्ञान पढ़ा हो।

-''संबंधित विषय'' में बी.एड/ बीटी।

मुद्दा यह था कि क्या 'जैविक विज्ञान' में बी.एड एचएसए (प्राकृतिक विज्ञान) के उद्देश्य के लिए ''संबंधित विषय'' में बी.एड के रूप में अर्हता प्राप्त करेगा।

जब पीएससी ने यह कहते हुए उनके आवेदनों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उनके पास 'प्राकृतिक विज्ञान' में बी.एड नहीं है, तो उन्होंने केरल प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। केएटी के समक्ष उनके मामलों के लंबित रहने के दौरान, केरल सरकार ने दो आदेश जारी किए, जिनमें कहा गया कि अपीलकर्ताओं की बी.एड 'जैविक विज्ञान' की डिग्री 'प्राकृतिक विज्ञान' में बी.एड के समकक्ष है।

इन सरकारी आदेशों के आधार पर, ट्रिब्यूनल ने दोनों याचिकाओं को अनुमति दी और केपीएससी को अपीलकर्ताओं के नामों को रैंक सूची में शामिल करने का निर्देश दिया।

केपीएससी ने केरल हाईकोर्ट के समक्ष ट्रिब्यूनल के आदेशों को चुनौती दी। हाईकोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई कि समकक्षता संबंधित शासनादेशों के जारी होने की तिथि से संचालित होनी चाहिए और उक्त शासनादेशों को पदों की अधिसूचना की तिथि से पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता है। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति वीजी अरुण की खंडपीठ ने पीएससी की दलील को स्वीकार करते हुए केएटी के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के आदेशों को पूर्वप्रभावी रूप से स्वीकार करना खेल के बीच में नियमों में बदलाव के समान होगा, जिसकी अनुमति नहीं है।

हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका मुख्य तर्क यह है कि जीओ ने केवल उनकी संबंधित शैक्षणिक योग्यता की स्थिति और पात्रता आवश्यकता को पूरा करने के लिए उनके बी.एड विषय की समकक्षता की पुष्टि के संबंध में एक मौजूदा स्थिति को मान्यता दी है।

सुप्रीम कोर्ट का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल शिक्षा नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी विशिष्ट विषय में बी.एड को योग्यता मानदंड बनाता है।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि,''संबंधित विषय में स्नातक की आवश्यकता है, लेकिन उक्त खंड के अनुसार, यह पात्रता मानदंड के रूप में बी.एड. डिग्री सरल को निर्धारित करता है। केरल राज्य या आयोग के वकील द्वारा हमें कोई अन्य नियम नहीं दिखाया गया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उपरोक्त पदों के लिए एक उम्मीदवार के पास संबंधित विषय में बीएड डिग्री होना आवश्यक है।''

सरकारी आदेशों के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि उन्होंने ''जहां तक डिग्रियों की प्रकृति का संबंध है, मौजूदा स्थिति को मान्यता दी है और अपीलकर्ताओं के पास मौजूद डिग्री के लिए नए मूल्य का सृजन नहीं किया है।''

फैसले में कहा गया है कि,

''एक बार जब जीओ ने विशेष रूप से घोषित कर दिया है कि उनकी बी.एड डिग्री निर्दिष्ट विषय के बराबर है, जो रोजगार अधिसूचना का हिस्सा है, तो जीओ को मूल रूप से व्याख्यात्मक प्रकृति के रूप में व्याख्यायित किया जाना चाहिए और इन्हें शासनादेशों में घोषणा किए जाने के बाद उनके पास पहले से मौजूद डिग्री की स्थिति को ऊंचा करने वाला नहीं माना जा सकता है। जहां तक डिग्रियों की प्रकृति का संबंध है, तो इन जीओ ने केवल मौजूदा स्थिति को ही मान्यता दी और अपीलकर्ताओं के पास पहले से मौजूद डिग्रियों के नए मूल्य का सृजन नहीं किया है। यद्यपि ये समकक्ष आदेश रोजगार अधिसूचना जारी करने की तारीखों पर अस्तित्व में नहीं थे, फिर भी शासनादेश इस तरह की डिग्री प्राप्त करने की तारीखों से इस तरह की स्थिति को मान्यता देते हैं। शासनादेश किसी भी हस्तक्षेप करने वाली ऐसी परिस्थितियों का खुलासा नहीं करते हैं, जिसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि संबंधित डिग्री ने उनके बी.एड डिग्री के अनुदान के बाद बनने वाली ऐसी परिस्थितियों के कारण समकक्ष दर्जा प्राप्त कर लिया है।''

कोर्ट ने कहा कि उनको नहीं लगता कि ''अपीलकर्ताओं की डिग्री को वर्ष 2019 में जारी जीओ द्वारा लागू अधिसूचनाओं के तहत आवश्यक डिग्री के बराबर मानने से खेल के नियमों के बीच में कोई बदलाव आएगा।''

कोर्ट ने कहा कि, ''लाक्षणिक रूप से इसे नियमों की व्याख्या करने के रूप में कहा जा सकता है,जब खेल चल रहा था। इस तरह के पाठ्यक्रम, हमारी राय में, अनुमेय हैं।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि,

''हमने माना है कि बीएड में अपीलकर्ताओं की डिग्री रोजगार अधिसूचनाओं के लिए आवश्यक डिग्री के बराबर है और समकक्षता वाले आदेश केवल प्रकृति में स्पष्टीकरण हैं। इस कारण से, हमें नहीं लगता कि अपीलकर्ताओं के मामलों में संबंधित रोजगार अधिसूचनाओं के खंड 7 के नोट्स (v) और (vi) का कोई मौलिक उल्लंघन हुआ है।''

सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेशों को बहाल कर दिया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि,

''अपीलकर्ताओं के परिणाम का खुलासा किया जाए और यदि उनके प्रदर्शन के आधार पर, वे रैंक की गई सूची के अनुसार चयनित उम्मीदवारों की सूची में आते हैं, तो समय के बीत जाने से सूची के व्यपगत होने के आधार पर अपीलकर्ताओं को इसके लाभ से वंचित न किया जाए। यदि वे नियुक्ति के लिए अर्हता प्राप्त करते हैं, तो उन्हें नियुक्ति दी जाए और उन्हें उनके संबंधित पदों पर नियुक्ति की तारीख से सेवा में माना जाएगा।''

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता सरथ जनार्दन पेश हुए।

मामले का विवरण

केस का शीर्षकः प्रवीण कुमार सीपी बनाम केरल लोक सेवा आयोग व अन्य (सीए नंबर 4846/2021)

उद्धरणः एलएल 2021 एससी 392

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