बांके बिहारी मंदिर | 'अगर राज्य निजी विवाद में पड़ता है तो कानून का शासन टूट जाएगा': सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल किया

Update: 2025-05-29 04:44 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया कि वह वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर से संबंधित निजी विवाद में कैसे हस्तक्षेप कर सकती है और निजी व्यक्तियों के बीच मुकदमेबाजी को "अपहृत" कर सकती है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि अगर राज्य पक्षों के निजी विवादों में प्रवेश करना शुरू कर देते हैं तो मुकदमेबाजी "अपहृत" हो जाएगी और इससे कानून का शासन टूट जाएगा।

न्यायालय विविध आवेदन (एमए) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 15 मई के फैसले को वापस लेने की मांग की गई, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर कॉरिडोर पुनर्विकास परियोजना के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति दी गई। यह निर्णय निजी पक्षों के बीच सिविल अपील में पारित किया गया, जिसमें राज्य ने हस्तक्षेप किया। बाद में देवेंद्र नाथ गोस्वामी नामक एक मंदिर भक्त ने वर्तमान एमए दायर किया, जिसमें निर्णय को वापस लेने की मांग की गई, जिसमें तर्क दिया गया कि उनकी बात नहीं सुनी गई।

शुरुआत में आवेदक की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा:

"यह रिट याचिका इस बात पर आधारित है कि मंदिर के पास मौजूद 300 करोड़ रुपये की राशि, गिरिराज मामले में दायर एमए में हमें पक्षकार बनाए बिना राज्य को सौंप दी गई। हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार करते हुए, जिसमें कहा गया कि 300 करोड़ रुपये नहीं दिए जाएंगे।"

इस पर जस्टिस नागरत्ना ने पूछा:

"क्या आप इस न्यायालय के समक्ष पक्षकार है?"

सिब्बल ने उत्तर दिया कि वे पक्षकार नहीं हैं।

फिर उन्होंने पूछा:

"यह राशि किसकी है?"

सिब्बल ने कहा कि यह राशि भक्तों द्वारा मंदिर को दिया गया चढ़ावा है।

उन्होंने कहा:

"ये जनता द्वारा मंदिर को दिए गए चरवा हैं और राज्य ले रहा है... मंदिर कैसे आवेदन कर सकता है? इसे किसी के माध्यम से चलाया जाना चाहिए। इसलिए सेवक ने आवेदन दायर किया। जो हुआ है, वह सिर्फ कानून का सरल प्रश्न है, आप किसी अन्य याचिका में आदेश देकर यह निर्देश कैसे दे सकते हैं कि निजी मंदिर की 300 करोड़ रुपये की आय किसी को भी पक्ष बनाए बिना राज्य को सौंप दी जाए।"

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य द्वारा अन्य याचिका में एम.ए. दायर करने की अनुमति दी, जो गलियारे के विकास से संबंधित थी। उन्होंने प्रस्तुत किया कि राज्य धन वापस नहीं ले सकता। नवंबर, 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित गलियारे के विकास की योजना को मंजूरी दी। हालांकि, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को गलियारे के निर्माण के लिए देवता के बैंक खाते से 262.50 करोड़ रुपये का उपयोग करने से रोक दिया।

हालांकि, हाल ही में 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को कॉरिडोर विकास के लिए मंदिर के आसपास 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने के लिए धन का उपयोग करने की अनुमति दी, इस शर्त पर कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी।

जस्टिस शर्मा ने सवाल किया कि क्या इस रिट याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता इस न्यायालय के निर्णय की समीक्षा करने का प्रयास कर रहा है। जब सिब्बल ने जवाब दिया कि वह केवल खुद को पक्ष बनाने के लिए निर्णय में 'संशोधन' की मांग कर रहे हैं तो जस्टिस शर्मा ने कहा:

"आपको निर्णय की समीक्षा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यहां तक ​​कि निर्णय में संशोधन भी उसकी समीक्षा करने के बराबर है।"

इसके बाद जस्टिस नागरत्ना ने उत्तर प्रदेश राज्य के वकील से पूछा कि क्या वह हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही में पक्ष है।

उनसे पूछा गया कि राज्य वास्तव में हाईकोर्ट के समक्ष पक्षकार नहीं है तो उन्होंने टिप्पणी की:

"राज्य ने किस हैसियत से विवाद में प्रवेश किया? यदि राज्य पक्षों के बीच निजी विवादों में प्रवेश करना शुरू कर देते हैं तो यह कानून के शासन का उल्लंघन होगा! आप मुकदमेबाजी को हाईजैक नहीं कर सकते। हम राज्य द्वारा किसी भी तरह के विकास कार्य में बाधा नहीं डाल रहे हैं, लेकिन दो पक्षों के बीच निजी मुकदमेबाजी में राज्य द्वारा पक्षकार आवेदन दाखिल करना और उसे हाईजैक करना स्वीकार्य नहीं है।"

वकील ने प्रस्तुत किया कि इस संबंध में अधिनियम लागू किया गया, जिसमें कहा गया कि मंदिर की पूरी संपत्ति और धन ट्रस्ट में निहित हो सकता है, न कि सरकार के पास।

उन्होंने कहा:

"कृपया विचार करें, जिस पूरे धन के बारे में हम बात कर रहे हैं, वह अधिनियम के आधार पर सरकार के पास नहीं बल्कि ट्रस्ट में निहित होगा। उस अधिनियम में कहा गया कि राज्य सरकार को भी धन को छूने का कोई अधिकार नहीं है।"

हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने सवाल करना जारी रखा कि राज्य निजी विवाद में खुद को एक पक्ष के रूप में कैसे शामिल कर सकता है।

"हमारी एकमात्र चिंता यह है कि दो पक्षों के बीच एक निजी मुकदमे में राज्य एक पक्षकार के रूप में आवेदन दाखिल कर रहा है। हम उद्देश्य के पक्ष में नहीं हैं, राज्य मुकदमे में पक्षकार बने बिना भी ऐसा कर सकता है। आपको सुधार करने से कौन रोक रहा है? चाहे आपको पक्षकार बनाया जाना चाहिए, आप हाईकोर्ट में नहीं हैं।"

सिब्बल ने यह कहना जारी रखा कि अधिनियम के बावजूद, यदि कोई हो, उत्तर प्रदेश राज्य को निजी निधियों को छीनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। राज्य के वकील ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि अधिनियम के बाद उत्तर प्रदेश राज्य का कोई अधिकार नहीं है। इसके विपरीत, सिब्बल का मुवक्किल ट्रस्ट बोर्ड का हिस्सा है।

उन्होंने कहा:

"यह अधिनियम इस निर्देश को पूरी तरह से कमजोर कर देगा। यह एक अध्यादेश है। यह ट्रस्ट बांके बिहारी मंदिर के प्रशासन के लिए है। श्री बांके बिहारी मंदिर (वृंदावन), मथुरा के बेहतर प्रबंधन के लिए अध्यादेश। कृपया न्यासी मंडल देखें। धारा 5(iii), बोर्ड के सदस्य कुल 11 व्यक्ति होंगे, जिसमें संत, गुरु, विद्वान, महंत सहित तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे...आज, मुझे इस अधिनियम के तहत निधियों का उपयोग करने से रोक दिया गया।"

सिब्बल के साथ याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अन्य वकीलों ने टिप्पणी की कि यह अधिनियम मंदिर पर "अप्रत्यक्ष अतिक्रमण" है। हालांकि, इस मोड़ पर न्यायालय को पता चला कि अधिनियम अभी केवल एक अध्यादेश है। इसे लागू नहीं किया गया, क्योंकि राज्य विधानसभा सत्र में नहीं है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा:

"यदि आपने अभियोग आवेदन दायर नहीं किया होता तो यह निर्देश जारी नहीं किया जाता।"

जस्टिस शर्मा ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को समीक्षा दायर करनी चाहिए।

इस पर सिब्बल ने पुरजोर विरोध किया और कहा:

"मैं क्यों जाऊं? मुझे पहले पक्षकार बनाया जाना चाहिए। आप हमारी बात सुने बिना मेरी निजी संपत्ति देने का आदेश पारित नहीं कर सकते। मुझे खेद है, आप निजी मंदिर की संपत्ति इस तरह नहीं छीन सकते...आपने ऐसा किया।"

न्यायालय ने आदेश दिया:

"राज्य की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि इस न्यायालय के निर्णय के अनुसरण में बाद के घटनाक्रम जो कि राज्य सरकार द्वारा दिनांक 26.5.2025 की अधिसूचना द्वारा जारी अध्यादेश के रूप में है, उसको संबंधित विभाग के प्रधान सचिव के हलफनामे के साथ रिकॉर्ड पर रखा जाएगा। 29 जुलाई को सूचीबद्ध करें।"

हालांकि, न्यायालय ने इस मामले में नोटिस जारी नहीं किया।

केस टाइटल: ईश्वर चंद शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य | डायरी नंबर 28487-2025

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