रोस्टर बदलने का हवाला देकर जमानत याचिका पहले जज को न भेजना हाईकोर्ट जज के लिए अनुचित: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-09-29 10:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक हाईकोर्ट जज की आलोचना की, जिन्होंने एक सामान्य जमानत याचिका को पहले की बेंच को भेजने से इनकार कर दिया था, जिसने उसी FIR से संबंधित अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला किया था। जज ने इसका कारण यह बताया कि पहले जज का रोस्टर बदल गया है।

कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट जज द्वारा अपनाया गया यह कारण उचित नहीं है।

जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस SVN भाटी की खंडपीठ ने उस याचिका की सुनवाई की, जिसमें दो आरोपियों को दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने नोट किया कि दिल्ली हाईकोर्ट में अपीलकर्ता ने सिंगल जज से अनुरोध किया था कि मामला उसी जज को भेजा जाए जिसने अग्रिम जमानत याचिका खारिज की थी। लेकिन यह अनुरोध खारिज कर दिया गया क्योंकि पहले जज का रोस्टर बदल गया था और वह उस दिन डिविजन बेंच में बैठे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए कहा,“सिर्फ इसलिए कि सिंगल जज का रोस्टर बदल गया था और वह उस दिन डिविजन बेंच में थे, मामले के ट्रांसफर का अनुरोध खारिज करना उचित नहीं है। ऐसा कारण दर्ज करने से यह प्रतीत होता है कि अगर जज का रोस्टर नहीं बदलता या वह डिविजन बेंच का हिस्सा नहीं होते, तो मामला उसी जज को भेजा जा सकता था।”

जस्टिस अमानुल्लाह के अनुसार, किसी भी बेंच को यह वर्तमान रोस्टर देखकर निर्णय नहीं लेना चाहिए कि मामला किसे भेजा जाए। यह केवल चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया:

• किसी भी मामले को सह-बेंच को भेजते समय, उस बेंच की वर्तमान संरचना को देखना न्यायालय का काम नहीं है।

• यह केवल संबंधित चीफ जस्टिस का अधिकार है कि वे बेंच का गठन करें या मामले का स्थान तय करें।

• अगर किसी जज ने ट्रांसफर का आदेश दिया भी है, तो रजिस्ट्री उसे तब तक लागू नहीं करेगी जब तक चीफ जस्टिस उपयुक्त आदेश न दें।

खंडपीठ ने 7 फरवरी के आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि सामान्य नियम जो जमानत याचिकाओं को उसी बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश देता है, उसे रोस्टर बदलने की स्थिति में शिथिल किया जा सकता है। इस आदेश में जमानत याचिकाओं में होने वाली देरी को ध्यान में रखा गया।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश किसी जज के अधिकार को प्रभावित नहीं करता कि वे जमानत याचिकाओं को पहले जज को भेज सकें, बशर्ते चीफ जस्टिस की मंजूरी प्राप्त हो।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “इस मुद्दे पर फिलहाल हमारे टिप्पणियां यहीं समाप्त होती हैं। यह ध्यान रखें कि ऊपर दी गई टिप्पणियां किसी जज के अधिकार को प्रभावित नहीं करती कि वे मामला पहले जज को भेजें, यदि ऐसा आवश्यक हो – बशर्ते कि चीफ जस्टिस के आदेश प्राप्त हों।”

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