'जमानत नियम है, जेल अपवाद': सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल के लिए समय सीमा तय करके नियमित तरीके से जमानत देने से इनकार करने वाले हाईकोर्ट की निंदा की
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 नवंबर) को जाली नोटों के मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत दी, जो दो साल और छह महीने से जेल में बंद था। इस सिद्धांत का हवाला देते हुए कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद।"
कोर्ट ने कहा,
"अपीलकर्ता ढाई साल की अवधि तक जेल में रहा है। राज्य द्वारा दायर किए गए काउंटर से पता चलता है कि कोई पूर्ववृत्त रिपोर्ट नहीं किया गया। इसलिए मामले के तथ्यों में अपीलकर्ता को इस सुस्थापित नियम के अनुसार जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है।"
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि हाईकोर्ट को जमानत आवेदनों को खारिज करते समय ट्रायल के समापन के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं करनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
"इस आदेश को जारी करने से पहले हमने विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा पारित कई आदेशों में देखा है कि नियमित तरीके से जमानत के लिए आवेदनों को खारिज करते समय हाईकोर्ट मुकदमों के समापन के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय कर रहे हैं। इस तरह के निर्देश ट्रायल कोर्ट के कामकाज को प्रभावित करते हैं, क्योंकि कई ट्रायल कोर्ट में निपटान के लिए बहुत पुराने मामले लंबित हैं। जमानत के लिए प्रार्थना खारिज करने के बाद अदालतें मुकदमे के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करके आरोपी को किसी तरह की संतुष्टि नहीं दे सकती हैं।"
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद बनाम यूपी राज्य में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि संवैधानिक अदालतों को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर निचली अदालतों को मामलों को विशिष्ट समय सीमा के भीतर निपटाने का निर्देश देने से बचना चाहिए।
आरोपी को इस्लामपुर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 34 के साथ धारा 489-ए, 489-बी और 489-सी के तहत दर्ज एक मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। मामले में 500 रुपये के छह नकली नोट शामिल थे, जिन्हें आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों ने मई 2024 में कैश प्रोसेसिंग के दौरान पकड़ा था। जांच में कथित तौर पर नोटों का पता आरोपी तक लगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने फरवरी 2023 में आरोपी की पहली जमानत याचिका खारिज की और अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। हाईकोर्ट ने जनवरी 2024 के अपने आदेश में फिर से जमानत देने से इनकार किया और ट्रायल कोर्ट को उचित अवधि के भीतर कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया। उस समय तक मुकदमा आरोप तय करने से आगे नहीं बढ़ पाया था।
इसके बाद आरोपी ने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार मामले के निपटारे के लिए समय सीमा तय करने की प्रवृत्ति को चिह्नित किया।
4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के लंबित मामलों पर विचार किए बिना जमानत देने के बजाय ट्रायल कोर्ट को तय समय सीमा के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश देने की हाईकोर्ट की प्रवृत्ति अस्वीकार्य है।
उसी दिन न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जजों के भारी कार्यभार को देखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में निष्पादन मामले के निपटारे के लिए समय सीमा तय करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।
इसी पीठ ने इस साल जुलाई में पटना हाईकोर्ट का आदेश खारिज कर दिया था, जिसमें आपराधिक मामले में निचली अदालत को एक साल के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने निचली अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर विचार नहीं किया।
अगस्त में पीठ ने संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए मौखिक रूप से कहा कि वह हाईकोर्ट में सुनवाई में तेजी लाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकती।
केस टाइटल- संग्राम सदाशिव सूर्यवंशी बनाम महाराष्ट्र राज्य