जमानत अर्जी पर जल्दी से निर्णय लिया जाना चाहिए और एक नियत समय के बाद इसे टाला नहीं जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि जमानत आवेदनों पर जल्द से जल्द फैसला किया जाना चाहिए और नियत समय के बाद इसे टाला नहीं जाना चाहिए।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए एक अग्रिम जमानत आवेदन में प्रार्थना की गई अंतरिम राहत को खारिज करते हुए इस प्रकार देखा। हाईकोर्ट ने जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया था और मामले को 'उचित समय में' अंतिम सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया था।
पीठ ने कहा कि यह एक असामान्य प्रथा है और जो इस न्यायालय ने कभी नहीं देखी। पीठ ने तब हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस मुद्दे पर न्यायिक टिप्पणी करने का अनुरोध किया।
अदालत ने कहा,
"कम से कम जमानत आवेदन चाहे वह गिरफ्तारी से पहले की जमानत हो या गिरफ्तारी के बाद की जमानत (सीआरपीसी की धारा 438 या धारा 439 के तहत) पर जल्द से जल्द फैसला किया जाना चाहिए। हालांकि हमें इसके निपटान के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं देना चाहिए।
लेकिन साथ ही हम हमेशा उम्मीद करते हैं कि जमानत आवेदनों पर जल्द से जल्द फैसला किया जाना चाहिए और इसके बाद के समय के लिए पोस्ट नहीं किया जाना चाहिए।"
अदालत ने देखा कि एसएलपी में अंतरिम आदेश पारित करने के बाद हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी गई है। इसे रिकॉर्ड करते हुए पीठ ने एसएलपी को निष्फल बताते हुए खारिज कर दिया।
मामले का विवरण
तुलसी राम साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 764 | एसएलपी (सीआरएल) 2564/2022 | 8 सितंबर 2022 |
बेंच : जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्न
हेडनोट्स
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 438, और धारा 439 - जमानत आवेदनों पर यथाशीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए और नियत समय पर पोस्ट नहीं किया जाना चाहिए।
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