"अयोध्या को रखा, मथुरा को छोड़ दिया", सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिका
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि उक्त प्रावधान 15 अगस्त, 1947 से पहले पूजा और तीर्थ स्थानों पर अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ उपचार पर रोक लगाते हैं।
यह कहा गया है कि उक्त प्रावधानों ने उन लंबित मुकदमे/ कार्यवाही को समाप्त कर दिया है, जिनकी कार्रवाई का कारण 15 अगस्त, 1947 से पहले उत्पन्न हुआ था और इस प्रकार, पीड़ित व्यक्ति के लिए अदालत के माध्यम से उपलब्ध उपचार से इनकार कर दिया गया है।
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने न्यायालय से संपर्क करने का अधिकार छीन लिया है और इस तरह न्यायिक उपचार के अधिकार बंद दिया गया है।
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि कि ये प्रावधान मनमाने, तर्कहीन और पूर्वव्यापी कट-ऑफ डेट का निर्माण करते हैं, और इस प्रकार अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (प्रार्थना, अभ्यास, और धर्म प्रचार के अधिकार), अनुच्छेद 26 (पूजा-तीर्थ स्थलों के प्रशासन, प्रबंधन और रखरखाव के अधिकार) और अनुच्छेद 29 (संस्कृति के संरक्षण का अधिकार) का हनन करती है।
याचिका में आगे कहा गया है कि उक्त प्रावधान धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और अनुच्छेद 49 के तहत ऐतिहासिक स्थलों की रक्षा करने और संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत धार्मिक सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के राज्य के कर्तव्य के खिलाफ हैं।
याचिका में कहा गया है, "केंद्र ने पूजा और तीर्थ स्थलों पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ उपचार पर रोक लगा दी है और अब हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख अनुच्छेद 226 के तहत मुकदमा दायर नहीं कर सकते या हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं। इसलिए, वे अनुच्छेद 25-26 की भावना के अनुसार, मंदिरों की बंदोबस्ती और अपने पूजा स्थलों और तीर्थयात्रा को बहाल नहीं कर पाएंगे और आक्रमणकारियों के गैरकानूनी बर्बर कृत्य का अपराध सर्वदा जारी रहेगा।"
"हिंदू सैकड़ों साल से भगवान कृष्ण के जन्मस्थान की बहाली के लिए लड़ रहे हैं और शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन जारी है, लेकिन कानून लागू करते समय, केंद्र ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को बाहर रखा, लेकिन मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को बाहर नहीं रखा, जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार, निर्माता हैं। "
याचिकाकर्ता ने निम्न दलीलें पेश की हैं:
-उक्त अधिनियम 'सार्वजनिक व्यवस्था' की आड़ में लागू किया गया है, जो राज्य का विषय है [एंट्री-1, लिस्ट- II,शेड्यूल -7]। इसी प्रकार, 'तीर्थयात्रा, भारत के बाहर के तीर्थस्थलों के अलावा' भी राज्य का विषय है [प्रवेश -7, सूची- II, अनुसूची -7]। इसलिए, केंद्र के पास उक्त अधिनियम को लागू करने की विधायी क्षमता नहीं है।
-अनुच्छेद 13 (2) राज्य को भाग- III के तहत प्रदत्त अधिकारों को छीनने के लिए कानून बनाने पर रोक लगाता है, लेकिन उक्त अधिनियम, बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा हिंदू, जैन, बौद्ध, सिखों के नष्ट किए गए पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों को बहाल करने के अधिकारों को छीन लेता है।
-केवल उन्हीं स्थानों की रक्षा की जा सकती है, जो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत कानून के अनुसार खड़े किए गए हैं या निर्मित किए गए हैं, लेकिन व्यक्तिगत कानून के अनादर में खड़े किए गए या निर्मित किए गए स्थानों को 'पूजा स्थल' नहीं कहा जा सकता है।
-केंद्र न तो बहाली के मुकदमे की सुनवाई करने की सिविल न्यायालयों की शक्ति को छीन नहीं सकता है और न ही अनुच्छेद 226 और 32 के तहत हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की शक्ति छीन सकता है।
प्रार्थना
a) संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,25,26,29 के उल्लंघन के कारण होने के कारण पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2 को शून्य और असंवैधानिक घोषित करना और निर्देशित करना, अब तक यह बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा अवैध रूप से निर्मित 'पूजा स्थलों' को मान्य करने का प्रयास करता है;
b) पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 3 को अनुच्छेद 14,15,21,25,26,29 का उल्लंघन होने के कारण शून्य और असंवैधानिक घोषित करना और निर्देशित करना, अब तक यह बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा अवैध रूप से निर्मित 'पूजा स्थलों' को मान्य करने का प्रयास करता है;
c) पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 को अनुच्छेद 14,15,21,25,26,29 के उल्लंघन के कारण शून्य और असंवैधानिक घोषित करना और निर्देशित करना, अब तक यह बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा अवैध रूप से निर्मित 'पूजा स्थलों' को मान्य करने का प्रयास करता है;
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