"सेना का सम्मान करें, आप उनकी वजह से चैन से सोते हैं" : सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल से मारपीट के आरोप में पंजाब पुलिस पर CBI जांच को दी मंज़ूरी

Update: 2025-08-04 10:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज (4 अगस्त) पंजाब पुलिस के उन अधिकारियों की हरकतों की कड़ी निंदा की, जिन पर एक सेवारत आर्मी कर्नल और उनके बेटे के साथ मारपीट का आरोप है।

मामले के अनुसार, दिल्ली से पटियाला की यात्रा के दौरान एक ढाबे पर खाना खाते समय आर्मी अफसर और उनके बेटे से चार पुलिसकर्मियों ने इसलिए मारपीट की क्योंकि उन्होंने अपनी गाड़ियाँ हटाने से इनकार कर दिया था। शिकायतकर्ता (आर्मी अफसर) का यह भी आरोप है कि घटना के बाद उन्होंने कई बार शिकायत की, लेकिन पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए राज्य सरकार ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की।

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी, जिसमें मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट का आदेश "ठोस और कारणपूर्ण" है। शुरू में कोर्ट ने मौखिक रूप से भारी जुर्माना लगाने की बात कही, लेकिन अंतिम आदेश लिखवाते समय वह नहीं लगाया गया।

पुलिस अधिकारियों की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश पारित किया है मानो ट्रायल शुरू होने से पहले ही उन्हें दोषी ठहरा दिया गया हो। वहीं, आर्मी अफसर की ओर से अधिवक्ता सुमीर सोढी पेश हुए।

इस पर जस्टिस शर्मा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा,"जब युद्ध होता है, तब आप इन सेना अधिकारियों को महिमामंडित करते हैं... आपके SSP कहते हैं कि अग्रिम जमानत खारिज होने के बावजूद मैं उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पा रहा क्योंकि वे पुलिस अधिकारी हैं... एफआईआर दर्ज करने में 8 दिन की देरी?! सेना के लोगों के लिए सम्मान रखिए। आप अपने घर में चैन से सो रहे हैं क्योंकि वो -40 डिग्री पर सीमा पर ड्यूटी कर रहे हैं... हम इसे भारी जुर्माने के साथ खारिज करने जा रहे हैं। इस तरह की अराजकता स्वीकार नहीं की जा सकती। न कोई कानूनी दलील, न कुछ... आपकी जमानत खारिज हुई, वे खुलेआम घूम रहे हैं, और अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई... CBI जांच करे इस मामले की... वो आपको बचाने जाते हैं और तिरंगे में लिपटकर लौटते हैं।"

जस्टिस संजय कुमार ने भी जोड़ा,"अगर आपके पास छिपाने को कुछ नहीं है, तो स्वतंत्र जांच से डर क्यों?"

FIR दर्ज होने के आठ दिन बाद, शिकायतकर्ता ने निष्पक्ष जांच की उम्मीद में हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ की एसपी मंजीत को जांच सौंपते हुए चार महीने में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। लेकिन इसके बावजूद किसी भी पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं हुई। इस पर हाईकोर्ट को कहना पड़ा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि जांच निष्पक्ष ढंग से की जा रही है। इसलिए 16 जुलाई को अपने आदेश में हाईकोर्ट ने जांच CBI को सौंप दी।

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