हाईकोर्ट सीधे अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार न करें, पहले सेशन कोर्ट जाएं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-09-29 13:38 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हाई कोर्ट को आगाह किया है कि वह सीधे अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की अर्जी पर सुनवाई करने से बचें और सामान्यतः पक्षकारों को पहले सेशन कोर्ट में जाने का निर्देश दिया जाना चाहिए, इसके बाद ही हाई कोर्ट की समवर्ती न्यायक्षेत्र (Concurrent Jurisdiction) का उपयोग करना चाहिए।

यह मामला पटना में एक स्वास्थ्यकर्मी की हत्या से जुड़ा था, जिसे कथित रूप से पैसे उधार देने वालों (Moneylenders) के कहने पर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि मृतक से लाखों रुपये जबरन वसूलने के बाद, जब वह और पैसे नहीं दे सकी तो आरोपियों ने कॉन्ट्रैक्ट किलर्स (Contract Killers) को लगा दिया। आरोपियों ने गिरफ्तारी की आशंका में सीधे पटना हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मांगी और जमानत मिल गई।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे, ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गंभीर आरोपों वाले इस मामले में, बिना ठोस कारण बताए, अग्रिम जमानत दे दी गई। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हाई कोर्ट ने राहत देने से पहले शिकायतकर्ता को पक्षकार के रूप में शामिल तक नहीं किया।

कोर्ट ने कहा,“हालांकि, हम यह भी व्यक्त करना चाहते हैं कि हाई कोर्ट ने इस मामले में जिस जल्दीबाजी के साथ कार्यवाही की, वह चिंता का विषय है। जबकि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) के तहत हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट को अग्रिम जमानत के लिए अर्जी सुनने की समवर्ती न्यायक्षेत्र दी गई है, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह देखा है कि हाई कोर्ट को हमेशा यह प्रोत्साहित करना चाहिए कि पहले वैकल्पिक/समवर्ती उपाय (Concurrent Remedy) को अपनाया जाए।”

कोर्ट ने समझाया कि पक्षकारों को पहले सेशन कोर्ट भेजना जमानत याचिकाओं की दो स्तरों वाली जांच सुनिश्चित करता है: इससे हाई कोर्ट को सेशन कोर्ट की विचारधारा (Reasoning) का लाभ मिलता है और शिकायतकर्ता को हाई कोर्ट में याचिका का विरोध करने का अवसर भी मिलता है।

इस दृष्टिकोण से सभी पक्षों के हित संतुलित रहते हैं। पहले पीड़ित पक्ष को हाई कोर्ट में चुनौती देने का मौका मिलता है, और दूसरा, हाई कोर्ट को सेशन कोर्ट द्वारा लागू की गई न्यायिक दृष्टि (Judicial Perspective) का मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है, बजाय इसके कि वह सीधे अपने विचार से मामले पर निर्णय करे।

यह निर्णय इस पृष्ठभूमि में आया है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केरल हाई कोर्ट को नोटिस जारी किया था, क्योंकि वह सीधे जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, सेशन कोर्ट को दरकिनार करते हुए।

2023 में, सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की बेंच ने गुवाहाटी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम असम राज्य एवं अन्य मामलों में यह विचार करने का निर्णय लिया था कि “क्या हाई कोर्ट के पास यह विवेकाधिकार है कि वह धारा 438 के तहत आने वाली याचिका को इसलिए नहीं सुने कि आवेदनकर्ता को पहले सेशन कोर्ट में आवेदन करना चाहिए।”

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