त्रिपुरा में पशु बलि : राज्य की अपील पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, पशु बलि के एक अलग क्षेत्र की स्थापना का आदेश
त्रिपुरा के मंदिरों में पशु बलि पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। इस अपील की अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और एस रविंद्र भट की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा,
अंतरिम आदेश के माध्यम से हम इस बीच, निर्देश देते हैं कि इस याचिका में जिन उद्देश्यों का ज़िक्र किया गया है अगर उसके लिए पशुओं की बलि दी जाती है तो यह ऐसे स्थान में किया जाए जिसको क़ानून के अनुरूप स्थापित किया गया है। नगर निगम इस निर्देश के अनुपालन सुनिश्चित करेगा। भारतीय पशु कल्याण बोर्डऔर श्रीमती गौरी मौलेखी से इस तरह के क्षेत्र की स्थापना के बारे में मशवरा किया जा सकता है।
इसका मतलब यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर आंशिक रोक लगा दिया है और कहा है कि पशु बलि ऐसे क्षेत्र में ही हो सकता है जिसकी स्थापना नगर निगम ने क़ानून के अनुरूप किया है और इसके लिए पशु कल्याण बोर्ड और पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी की सलाह ली गई है।
इस मामले को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ लंबित अपील के साथ जोड़ दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस अपील को सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के ख़िलाफ़ लंबित एक अपील के साथ नत्थी कर दिया है। उस अपील में भी इसी तरह के आदेश को चुनौती दी गई है जो अप्रैल 2017 में सुनाया गया। 2014 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर पशु बलि पर रोक लगाई थी।
इस आदेश में दिए गए एक निर्देश के अनुसार, "हिमाचल प्रदेश में कहीं भी कोई व्यक्ति किसी पशु या पक्षी की किसी धार्मिक स्थल पर …सार्वजनिक स्थल पर बलि नहीं देगा। …"
त्रिपुरा हाईकोर्ट का फ़ैसला
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राज्य भर के मंदिरों में पशु/पक्षियों की बलि पर यह कहते हुए रोक लगा दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पशुओं के भी मौलिक अधिकार हैं।
राज्य सहित किसी भी व्यक्ति को त्रिपुरा राज्य में किसी मंदिर में किसी पशु/पक्षी के बलि की इजाज़त नहीं होगी। न्यायमूर्ति संजय करोल और अरिंदम लोध की पीठ ने यह फ़ैसला सुनाया। फ़ैसले में कहा गया कि किसी मंदिर में पशु की बलि ज़रूरी नहीं है कि धर्म का आवश्यक हिस्सा हो, और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी है।