राजनीतिक दलों को POSH Act के दायरे में लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका वापस ली गई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (1 अगस्त) को वकील द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) को वापस लेने की अनुमति दी, जिसमें कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) को राजनीतिक दलों पर लागू करने की मांग की गई।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता वकील योगमाया एमजी को केरल हाईकोर्ट के 2021 के फैसले को चुनौती देने की भी अनुमति दी, जिसमें कहा गया कि POSH Act के अनुसार राजनीतिक दल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
जैसे ही मामला सुनवाई के लिए आया, चीफ जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता की वकील सीनियर एडवोकेट शोभा गुप्ता से कहा कि यह विधायी नीति का मामला है, जिसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
चीफ जस्टिस गवई ने वकील से कहा,
"यह संसद का अधिकार क्षेत्र है। हम इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? यह नीतिगत मामला है। कुछ सांसदों और महिला सांसदों को इसमें शामिल करें... कम से कम 25-30 महिला सांसद होनी चाहिए... उनसे एक निजी विधेयक पेश करने को कहें।"
गुप्ता ने कहा कि संसद इस मुद्दे पर विचार नहीं कर रही है। उन्होंने पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता ने पहले भी इसी तरह की एक याचिका न्यायालय में दायर की थी, जिसका निपटारा संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष अभिवेदन दायर करने की छूट के साथ किया गया। चूंकि अभिवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए वर्तमान याचिका दायर की गई।
हालांकि, खंडपीठ ने अपनी अनिच्छा व्यक्त की और यह कहते हुए आदेश दिया कि वे रिट याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र का मामला है।
हालांकि, गुप्ता ने उत्तर दिया कि वह किसी नए प्रावधान को लागू करने की मांग नहीं कर रही हैं, बल्कि केवल मौजूदा प्रावधानों की व्याख्या की मांग कर रही हैं ताकि राजनीतिक दलों को POSH Act के दायरे में लाया जा सके।
उन्होंने कहा,
"मेरी प्रार्थना उन्हें कानून बनाने का निर्देश देने की नहीं है। यह रिट याचिका का दायरा नहीं है। रिट याचिका का दायरा प्रावधान की व्याख्या है।"
उन्होंने तर्क दिया कि POSH Act के अर्थ में राजनीतिक दल "कार्यस्थल"/ "नियोक्ता" माने जाएंगे, जिससे उन्हें महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं के यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए इन प्रावधानों का पालन करना होगा। उन्होंने खंडपीठ को केरल हाईकोर्ट के फैसले के बारे में भी बताया। खंडपीठ ने तब कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को स्वतंत्र रूप से चुनौती देनी होगी।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए याचिका वापस लेने की इच्छा व्यक्त की।
खंडपीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता के सीनियर एडवोकेट याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता के साथ-साथ कानून में बताए गए कदम उठाने की स्वतंत्रता चाहते हैं।"
याचिकाकर्ता ने भाजपा, कांग्रेस, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, माकपा, भाकपा, राकांपा, आप, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनपीपी) और बसपा को प्रतिवादी बनाया था। भारत संघ और भारत निर्वाचन आयोग अन्य प्रतिवादी हैं।
यह याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड श्रीराम परक्कट के माध्यम से दायर की गई थी।
Case Details: MS. YOGAMAYA M.G. v. UNION OF INDIA & ORS. |WP(C) No. 695 OF 2025