एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत केसों में आरोपी पूरी तरह पेशी में छूट का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-04-21 12:40 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई आरोपी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध से संबंधित मामले में पेश होने से पूरी छूट का दावा नहीं कर सकता है।

इस मामले में, मजिस्ट्रेट ने एक चेक बाउंस मामले में आरोपी द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि जब मामला मजिस्ट्रेट के सामने उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए सूचीबद्ध हो तो उसे सभी तारीखों पर छूट दी जाए।

बाद में, उसकी पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, सत्र न्यायालय ने निर्देश दिया कि अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करके मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिए जमानत बांड/श्योरटी प्रस्तुत करेंगे और और इस आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत करने पर कि पहचान के संबंध में कोई विवाद नहीं उठाया जाएगा, और उनके वकील नियमित रूप से पेश होंगे, ट्रायल कोर्ट उपस्थिति की अन्य आवश्यकताओं के अधीन, जब आवश्यक हो, उन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देगा।

इसके अलावा, पूरी छूट की मांग करते हुए, आरोपी ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने पाया कि सीआरपीसी में कोई विशेष प्रावधान नहीं है, जो संबंधित ट्रायल जज को सशक्त बनाता है, कि वो सभी अवसरों पर आरोपी को अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति से पूरी तरह छूट दे सके ।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, आरोपी ने मेसर्स भास्कर इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम मेसर्स भिवानी डेनिम अपेरल्स लिमिटेड: (2001) 7 SCC 401 के फैसले पर भरोसा किया और हाईकोर्ट के समक्ष अपने द्वारा उठाए गए तर्कों को दोहराया। पीठ ने उक्त फैसले पर गौर करते हुए कहा कि यह व्यक्तिगत पेशी से पूरी तरह छूट के दावे से संबंधित नहीं है।

अदालत ने कहा,

"उक्त निर्णय को पढ़ने के बाद, हम इस बात से संतुष्ट हैं कि उसमें की गई टिप्पणियां अनिवार्य रूप से उक्त मामले के तथ्यों से संबंधित हैं। इसके अलावा, यह देखते हुए भी कि उपयुक्त मामलों में मजिस्ट्रेट एक आरोपी को एक वकील के माध्यम से पहली बार पेश होने की अनुमति दे सकता है, इस न्यायालय ने यह भी संकेत दिया है कि इस तरह के विवेक का प्रयोग केवल दुर्लभ उदाहरणों में ही किया जाना चाहिए और उपस्थिति से दूर होने के अच्छे कारण होने चाहिए।"

विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा:

"यह समझना मुश्किल है कि वर्तमान प्रकृति के मामले में, याचिकाकर्ता विद्वान सत्र न्यायाधीश के आदेश के संदर्भ में एक बार भी पेश होने से बचना चाहते हैं। हमें इस याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं मिलता है।"

मेसर्स भास्कर इंडस्ट्रीज लिमिटेड (सुप्रा) में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यह एक मजिस्ट्रेट की शक्तियों के भीतर है और इस तरह की कार्यवाही के किसी विशेष चरण में किसी अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने के लिए न्यायिक विवेकाधिकार में है। एक समन मामले में, यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति का आग्रह स्वयं उसे भारी पीड़ा या दुख देगा, और तुलनात्मक लाभ कम होगा।

यह कहा गया था,

"इस तरह के विवेक का प्रयोग केवल दुर्लभ मामलों में ही किया जाना चाहिए, जहां पर आरोपी रहता है या व्यापार करता है या किसी सामग्री या अन्य अच्छे कारणों से मजिस्ट्रेट को लगता है कि न्याय के हित में आरोपी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जानी चाहिए। हालांकि, अभियुक्त को इस तरह का लाभ देने वाले मजिस्ट्रेट को निश्चित रूप से ऊपर बताई गई सावधानियां बरतनी चाहिए। हम यह दोहरा सकते हैं कि जब कोई आरोपी अपने विधिवत अधिकृत वकील के माध्यम से एक मजिस्ट्रेट से अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट का लाभ उठाने के लिए प्रार्थना करता है, मजिस्ट्रेट सभी पहलुओं पर विचार कर सकते हैं और आगे बढ़ने से पहले उचित आदेश पारित कर सकते हैं।"

मामले का विवरण

महेश कुमार केजरीवाल बनाम भानुज जिंदल | 2022 लाइव लॉ (SC) 394 | एसएलपी (सीआरएल) 3382/2022 | 18 अप्रैल 2022

पीठ: जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

वकील: अधिवक्ता सौभिक मित्तर

हेडनोट्स: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 205 (2), 251 और 317 - नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1882; धारा 138- मेसर्स भास्कर इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम मेसर्स भिवानी डेनिम अपेरल्स लिमिटेड (2001) 7 SCC 401 में निर्णय : व्यक्तिगत उपस्थिति से पूरी छूट के दावे से संबंधित नहीं है - इसमें टिप्पणियां अनिवार्य रूप से उक्त मामले के तथ्य से सह-संबंधित हैं- उपयुक्त मामलों में मजिस्ट्रेट किसी अभियुक्त को वकील के माध्यम से भी पहली बार पेश होने की अनुमति दे सकता है - इस तरह के विवेक का प्रयोग केवल दुर्लभ मामलों में ही किया जाना चाहिए और उपस्थिति से छूट देने के लिए अच्छे कारण होने चाहिए।

सारांश: पंजाब और हरियाणा एचसी के फैसले के खिलाफ एसएलपी जिसने धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत व्यक्तिगत पेशी से पूरी तरह छूट के याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया - खारिज की गई - यह सराहना करना मुश्किल है कि वर्तमान प्रकृति के मामले में, याचिकाकर्ता एक बार के लिए भी विद्वान सत्र न्यायाधीश के आदेश के अनुसार उपस्थिति से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

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