असम में NRC : ड्राफ्ट में नाम ना आने पर मतदाता सूची से बाहर, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) से जुड़ा एक और मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। NRC में नाम ना होने के चलते मतदाता सूची से भी नाम हटने को लेकर 2 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है।
शुक्रवार को इस मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस याचिका पर केंद्र, असम सरकार, चुनाव आयोग और NRC कोऑर्डिनेटर को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।
ये याचिका पश्चिम बंगाल निवासी गोपाल सेठ और असम निवासी सुशांत सेन ने दाखिल की है। सेन इस मामले में प्रभावित हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि पहले मतदाता सूची में उनका नाम था लेकिन अब उनका नाम गायब है। उनका कहना है कि 30 जुलाई 2018 के NRC ड्राफ्ट में उनका नाम नहीं आया इसलिए मतदाता सूची से भी उनका नाम हटा दिया गया। उन्होंने कहा है कि वो NRC में नाम हटाने पर दावा-आपत्ति दर्ज करा चुके हैं। इस तरह हजारों लोग मतदान के अधिकार से वंचित हो गए हैं।
याचिका में कहा गया है कि उनका और उनकी पत्नी का नाम वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के लिए जारी मतदाता सूची में रह चुका है, जबकि सेठ ने इस संबंध में जनहित में याचिका दाखिल की है।
उनकी याचिका में कहा गया है कि उनका मतदाता अधिकार छीन लिया गया है जो उनके संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है। नागरिक को मतदान का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है, और ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत भी सरंक्षित है। मतदाता की भागीदारी लोकतंत्र की ताकत है और गैर भागीदारी, निराशा और उदासीनता का एक कारण बनती है जो भारत के बढ़ते लोकतंत्र के लिए स्वस्थ संकेत नहीं हैं।
याचिका में ये भी कहा गया है कि मतदान का यह अधिकार, संविधान से उत्पन्न होता है और ये अनुच्छेद 326 में निहित संवैधानिक जनादेश के तहत है।
इस याचिका में वर्ष 2003 के पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का भी हवाला दिया है, जिसमें यह माना गया था कि मतदान का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है।
दरअसल 24 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) के अंतिम ड्राफ्ट को 31 जुलाई 2019 तक प्रकाशित किया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की पीठ ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया और NRC प्रक्रिया को कर्मचारियों की कमी के कारण एक दूसरे को प्रभावित किए बिना एक साथ चलना चाहिए।
पीठ ने निर्देश दिया है कि असम के मुख्य सचिव, NRC कोऑर्डिनेटर और चुनाव आयोग के सचिव एक साथ बैठ कर कर्मचारियों के मुद्दे को सुलझाएं।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि चुनाव और NRC दोनों महत्वपूर्ण हैं और वो एक दूसरे के लिए बाधा नहीं बन सकते। पीठ ने असम सरकार से कर्मचारियों के मुद्दे पर चुनाव आयोग के साथ बैठक के बाद 1 सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा।
वहीं इस मामले में समन्वयक की भूमिका निभा रहे प्रतीक हजेला ने पीठ को बताया था कि अंतिम सूची के प्रकाशन को अगस्त या सितंबर तक बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि NRC के कर्मचारियों का उपयोग लोकसभा चुनाव के लिए किया जा सकता है।
दरअसल, कुल 36.2 लाख लोगों ने NRC में शामिल होने के दावे प्रस्तुत किए हैं। यह लोग उन 40 लाख लोगों में से हैं जिन्हें NRC के मसौदे में स्थान नहीं दिया गया था। इन दावों की सुनवाई 15 फरवरी से शुरू होगी।