भीमा कोरेगांव हिंसा : पुणे की अदालत ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी को गैरकानूनी करार दिया, रिहा करने के आदेश [आर्डर पढ़े]
भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में आरोपी आनंद तेलतुंबडे को पुणे की अदालत ने ये कहते हुए रिहा कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी गैरकानूनी है। तेलतुंबडे को आज सुबह करीब 3.30 बजे पुलिस ने मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया था।
अदालत ने कहा कि 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को गिरफ्तारी से 4 हफ्ते का सरंक्षण दिया था।
इससे पहले शुक्रवार को पुणे जिला अदालत में एडिशनल सेशन जज किशोर वडाने ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि जांच अधिकारी ने पर्याप्त सबूत पेश किए हैं कि आरोपी बताये गए अपराध में शामिल रहा है।
इससे पहले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा था कि इस मामले की जांच दिनों दिन बड़ी होती जा रही है और इस चरण पर कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा।
हालांकि पीठ ने आरोपी को गिरफ्तारी से 4 हफ्ते का सरंक्षण देते हुए कहा कि इस दौरान वो ट्रायल कोर्ट से जमानत का अनुरोध कर सकते हैं। इससे पहले, आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
21 दिसंबर 2018 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस साजिश की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिसके नतीजे भी बेहद गंभीर हैं। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति बी. पी. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एस. वी. कोतवाल की पीठ ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे की याचिका को खारिज कर दिया था।
याचिका में तेलतुंबडे ने दावा किया था कि उन्हें इस मामले में बेवजह फंसाया जा रहा है। अपनी याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को गलत बताया था, जबकि पुलिस ने दावा किया है कि उसके पास याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
पीठ ने कहा था कि तेलतुंबडे के खिलाफ अभियोग चलाने लायक सामग्री मौजूद है। पीठ ने यह भी कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति का है। साजिश गहरी है और इसके बेहद गंभीर प्रभाव हैं। साजिश की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए यह जरूरी है कि जांच एजेंसी को आरोपी के खिलाफ सबूत खोजने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाए।
हाई कोर्ट ने कहा था कि शुरू में पुलिस की जांच इस साल (2018) 1 जनवरी को हुई हिंसा तक सीमित थी, जो पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में हुई यलगार परिषद के एक दिन बाद हुई थी। पीठ ने कहा था कि बहरहाल अब जांच का दायरा कोरेगांव-भीमा घटना तक सीमित नहीं है, लेकिन घटना की वजह बनी गतिविधियां और बाद की गतिविधियां भी जांच का विषय हैं। पीठ ने यह टिप्पणी भी की थी कि, तेलतुंबडे के प्रतिबंधित संगठन, सीपीआई (माओवादी) से संबंध की जांच की जानी चाहिए।