पीएमएलए के प्रावधानों को बरकरार रखने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला "काला धब्बा", फैसले ने ईडी को हथियारबंद कर दियाः सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने का फैसला "काला धब्बा" है।
वह 27 जुलाई को जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ की ओर से दिए गए फैसले की चर्चा कर रहे थे, जिसमें गिरफ्तारी, छापे, कुर्की और बयान दर्ज करने और जमानत के लिए कड़ी शर्तें रखने और सबूत के उल्टे बोझ जैसी प्रवर्तन निदेशालय की विस्तृत शक्तियों का बरकरार रखा गया था। (विजय मदनलाल चौधरी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया)।
लाइव लॉ के प्रबंध संपादक मनु सेबेस्टियन को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने "प्रवर्तन निदेशालय को हथियार थमा दिया है। उन्हें वह औज़ार दिया गया है, जिसे हम पिछले कुछ वर्षों से देख रहे हैं कि ईडी उसका दुरुपयोग कर रही है"।
उन्होंने कहा कि जजों द्वारा की गई अधिनियम की व्याख्या आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और यह निर्णय कई खामियों से ग्रस्त है।
उन्होंने कहा,
"मुझे लगता है कि यह निर्णय निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट के अन्यथा अच्छे कामों पर, जिन्हें वह समय-समय पर करता रहा है, एक धब्बा है। वास्तव में इसे लंबे समय तक याद किया जाएगा, जो कि सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों को दिया है, जिसे उसे नहीं करना चाहिए था।"
सीनियर एडवोकेट दवे ने फैसले को "पीड़ा का उपहार" कहा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों को दिया है।
दवे का विचार है कि जजों को उस चयनात्मक तरीके पर ध्यान देना चाहिए था, जिस तरीके से ईडी का इस्तेमाल राजनीतिक विपक्ष पर हमला करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने माना कि भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, मगर समस्या यह है कि ईडी अपनी जांच में चयनात्मक रही है।
उन्होंने कहा,
क्या केवल विपक्ष में भ्रष्टाचार है? क्या पूरे देश में भाजपा नेतृत्व का एक भी व्यक्ति या उनके मित्र हैं, जिनकी जांच तक की गई है, ईडी ने गिरफ्तार तो बिल्कुल ही नहीं किया है? क्या हमें यह विश्वास करना चाहिए कि विभिन्न भाजपा सरकारों, उन नगरपालिका और अन्य प्राधिकरणों में, जिन पर भाजपा का नियंत्रण है, वहां कोई गलत काम नहीं हो रहा है? क्या हम इतने अंधे हैं कि हम उस संपत्ति को नहीं देखना चाहते जो देश भर के भाजपा नेताओं और उनके परिजनों ने जमा की है?
उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों में भ्रष्टाचार फैला हुआ है। दुर्भाग्य से यह हमारी रगों में फैल गया है। इससे लड़ा जाना चाहिए, प्रवर्तन निदेशालय को इससे लड़ना चाहिए! लेकिन उसे न्यायसंगत तरीके से लड़ना चाहिए। उसे बिना किसी भेदभाव के लड़ना चाहिए। जिन लोगों के पास दौलत है, उनकी जांच होनी चाहिए। हम सभी जानते हैं कि देश में क्या हो रहा है। माना जाता है कि बहुत कम लोग आज भी अपने करों का भुगतान करते हैं। और वे आलीशान घरों में रहते हैं, फैंसी कारों में चलते हैं, वे अपने बच्चों की शादी में 100 या 200 करोड़ खर्च करते हैं। क्या यह सब ईडी नहीं देख रहा है?
सीनियर एडवोकेट दवे ने कहा,
मुझे लगता है कि जजों का न देखना ठीक नहीं है। उन्हें न्यायिक नोटिस लेना चाहिए। वे यह नहीं कह सकते कि वे अइवरी टावरों में रहते हैं। ऐसा पुराने दिनों में था। आज जज हर चीज से वाकिफ हैं। और ये जज..एक अधिनियम की व्याख्या कर रह हैं, जो मेरे विचार से, हर तरह से आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। फैसले में कई खामियां हैं।
उन्होंने कहा, जजों को भी गलती करने का हक़ है। मगर सवाल यह है कि क्या उन्होंने अपनी आंखें खुली रखीं हैं और देख रहे हैं कि आज देश में क्या हो रहा है, ईडी क्या कर रही है ... आप सीबीआई के जरिए विपक्ष को नष्ट करना चाहते हैं। और विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल हो रहा है? मुझे किसी भ्रष्ट व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं है। मैं यह स्पष्ट कर दे रहा हूं। लेकिन मैं निश्चित रूप से राजनेताओं के एक वर्ग को निशाना बनाने के खिलाफ हूं, उन अधिकांश राजनेताओं को छोड़कर जिनकी जांच तक नहीं हो रही है।
उन्होंने कहा, परेशानी की बात यह है कि जज इसे देखने में विफल हैं और उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय को ऐसी असाधारण शक्तियां दी हैं, जो संवैधानिक कानून, मौलिक अधिकारों और बुनियादी मानवीय मूल्यों के मूल सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत हैं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान ईडी निदेशक का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा बढ़ा चुकी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन्हें और विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए। केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए एक कानून लाया है ताकि ईडी निदेशक को 5 साल तक का विस्तार दिया जा सके।
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