जेनेवा कन्वेंशन (या जिनेवा कन्वेंशन) हाल ही में काफी चर्चा में है। भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे विवाद के बीच कल (27 फरवरी 2019) को विदेश मंत्रालय (MEA) ने पुष्टि की कि 27 फरवरी को पाकिस्तानी विमान के साथ संघर्ष के दौरान, भारत ने अपना एक मिग 21 खो दिया और एक भारतीय वायु सेना (IAF) पायलट को पड़ोसी देश द्वारा बंदी बना लिया गया।
इस पायलट का नाम विंग कमांडर अभिनन्दन बताया जा रहा है, और कथित रूप से यह पायलट इस वक़्त भी पाकिस्तान सेना के पास मौजूद है। हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आज ही अपनी पार्लियामेंट को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान कल (01 मार्च) को भारतीय पायलट अभिनंदन को रिहा करेगा। इमरान खान ने कहा कि शांति के कदम के तौर पर पायलट की रिहाई का कदम उनके द्वारा उठाया जा रहा है.
गौरतलब है कि इससे पहले पाकिस्तान से यह मांग की जा रही थी कि वर्ष 1929 के जेनेवा कन्वेंशन के अनुसार भारतीय पायलट के साथ पाकिस्तान द्वारा मानवीय बर्ताव किया जाए और उन्हें जल्द से जल्द भारत वापस भेजा जाए।
जेनेवा कन्वेंशन वर्ष 1864 और 1949 के बीच सैनिकों और नागरिकों पर युद्ध के प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से जेनेवा में संपन्न संधियों की एक श्रृंखला है। वर्ष 1864 में युद्ध के समय घायलों की मदद करने के लिए युद्ध कर रहे देशों के बीच वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए रेड क्रॉस के संस्थापक हेनरी डुनेंट के परिणामस्वरूप इन कन्वेंशन को अस्तित्व में लाया गया था।
जेनेवा कन्वेंशन और उसके अतिरिक्त प्रोटोकॉल, आधुनिक अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का आधार हैं। ये कन्वेंशन यह निर्धारित करते हैं कि युद्ध के दौरान युद्धरत एवं संघर्षरत सैनिकों और नागरिकों के साथ कैसा बर्ताव किया जाना चाहिए और उन्हें क्या सुविधाएँ मिलनी चाहिए।
दूसरे शब्दों में वर्ष 1949 का यह जेनेवा कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय संधियों का एक ऐसा समूह है जो यह सुनिश्चित करता है कि युद्ध लड़ रहे पक्ष या देश, युद्ध में शामिल देशों के नागरिक और चिकित्सा कर्मियों जैसे गैर-लड़ाकों के साथ मानवीय तरीके से पेश आएं। मानवीय व्यवहार करने की यह जिम्मेदारी, युद्ध लड़ रहे देशों के ऊपर लड़ाकों के मामलों में भी लागू है जो सक्रिय रूप से युद्ध में शामिल नहीं हैं।
उदहारण के लिए, युद्ध के कैदी (प्रिजनर ऑफ़ वॉर), और घायल या बीमार सैनिक। इसके अंतर्गत 4 कन्वेंशन हैं। वर्ष 1977 में इसमें 2 अतिरिक्त प्रोटोकॉल को अपनाया गया, जिसने मौजूदा नियमों को विस्तारित किया। फिर, वर्ष 2005 में एक तीसरे प्रोटोकॉल पर सहमति हुई, जिसने एक अतिरिक्त प्रतीक, लाल क्रिस्टल को मान्यता दी।
जेनेवा कन्वेंशन (III) या तीसरा जेनेवा कन्वेंशन
चूँकि यह पूरा मामला जेनेवा कन्वेंशन (III) के तहत आता है। इसलिए हम इसे संक्षेप में आपको समझा रहे हैं। वर्ष 1949 के कन्वेंशन के दौरान बनाई गई संधियों में से एक, जेनेवा कन्वेंशन (III) 'प्रिजनर ऑफ वॉर' को परिभाषित करता है और ऐसे कैदियों को उचित और मानवीय उपचार देने के बारे में बात करता है जिनका उल्लेख पहले कन्वेंशन में मिलता है।
विशेष रूप से, ऐसे कैदियों को शत्रु पक्ष के हाथों में आ जाने के बाद केवल अपना नाम, रैंक और सीरियल नंबर देने की आवश्यकता होती है (देखें जेनेवा कन्वेंशन (III) का अनुच्छेद 17)। कन्वेंशन के अंतर्गत कोई भी राष्ट्र या पक्ष प्रिजनर ऑफ़ वॉर से जानकारी निकालने के लिए उनपर यातना का उपयोग नहीं कर सकता है।
विंग कमांडर अभिनन्दन की स्थिति
जेनेवा कन्वेंशन (III) का अनुच्छेद 4 'युद्ध के कैदियों को परिभाषित करता है' (प्रिजनर ऑफ़ वॉर) और उनके अधिकारों के बारे में बात करता है। कन्वेंशन में विस्तार से बताया गया है कि युद्ध के कैदियों को प्राप्त करने वाले देश को उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए और पकड़े गए अधिकारी के पद और पदनाम का भी सम्मान करना चाहिए।
अनुच्छेद 4 कहता है, "...निम्नलिखित श्रेणियों में से एक से संबंधित व्यक्ति, जो दुश्मन के हाथों में चले गए हैं: (1) संघर्षरत पार्टी में से किसी एक के सशस्त्र बलों का कोई सदस्य और साथ ही (2) मिलिशिया या स्वयंसेवक वाहिनी के ऐसे सदस्य जो सशस्त्र बल का एक हिस्सा हों।" इस परिभाषा के अंतर्गत विंग कमांडर अभिनन्दन आएंगे क्यूंकि वो भारतीय वायु सेना के एक सदस्य हैं।
इनमें से एक प्रश्न यह भी उठा है कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव को बिना किसी औपचारिक घोषणा के 'युद्ध' कहा जा सकता है? गौरतलब है कि न तो भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा और न ही पाकिस्तान द्वारा मौजूदा तनाव को युद्ध का नाम दिया गया है। पाकिस्तान द्वारा पकडे गए पायलट की पहचान भी POW (प्रिजनर ऑफ़ वॉर) के रूप में अबतक नहीं की गयी है।
हालाँकि, जेनेवा कन्वेंशन (III) के अनुच्छेद 2 के अनुसार, "यह कन्वेंशन घोषित युद्ध या किसी अन्य सशस्त्र संघर्ष के सभी मामलों पर लागू होता है जो दो या अधिक कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ताओं के बीच उत्पन्न हो सकता है, भले ही युद्ध की स्थिति उनमें से एक द्वारा मान्यता प्राप्त न हो।" इसलिए यह कहा जा सकता है की इस मामले में जेनेवा कन्वेंशन लागू होगा।
विंग कमांडर अभिनन्दन का प्रिजनर ऑफ़ वॉर के रूप में घोषित हो जाने के चलते जेनेवा कन्वेंशन (III) के
अनुच्छेद 118 के अनुसार, पहला पैराग्राफ उनपर लागू होता है, जो कहता है "
युद्ध के कैदियों को सक्रिय युद्ध/संघर्ष के खत्म हो जाने के बाद बिना किसी देरी के रिहा किया जाएगा और उसे वापस उसके देश भेजा जायेगा"।
इसके अलावा यह भी कहा गया है की, "इस प्रत्यावर्तन में अगर अकारण देरी होती है तो यह प्रोटोकॉल का गंभीर उल्लंघन होगा।"
प्रिजनर ऑफ़ वॉर (युद्ध के कैदी) आखिर हैं क्या?
प्रिजनर ऑफ़ वॉर, आमतौर पर युद्ध अथवा संघर्ष में शामिल किसी एक पक्ष के सशस्त्र बलों के के सदस्य होते हैं, जो युद्ध अथवा संघर्ष में शामिल किसी दूसरे पक्ष के हाथों में आते हैं। हालाँकि जेनेवा कन्वेंशन (III) में उन व्यक्तियों की अन्य श्रेणियों को भी वर्गीकृत किया गया है जिनके पास प्रिजनर ऑफ़ वॉर की हैसियत प्राप्त करने का अधिकार है, यानी उन्हें भी प्रिजनर ऑफ़ वॉर के रूप में माना जा सकता है।
प्रिजनर ऑफ़ वॉर के ऊपर युद्ध कारित करने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। उनका नजरबंद या कैद में लिया जाना सजा का एक रूप नहीं है, बल्कि ऐसा करके केवल यह सुनिश्चित किया जाता है कि चल रहे संघर्ष में उनकी आगे की भागीदारी को रोका जा सके।
युद्ध समाप्त होने के बाद ऐसे कैदियों को बिना देरी किए रिहा किया जाना चाहिए। कैद करने वाला पक्ष उन पर संभावित युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चला सकता है, लेकिन हिंसा के कृत्यों के लिए ऐसी कैदियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत वैध हैं।
प्रिजनर ऑफ़ वॉर को हिंसा, धमकी, अपमान से बचाव और आवास, भोजन, कपड़े, स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल जैसी न्यूनतम शर्तों की गारंटी दी जाती है।
मौजूदा मामले में पाकिस्तान की जिम्मेदारी
जेनेवा कन्वेंशन को अगर पूर्ण रूप से मौजूदा मामले पर लागू किया जाए तो भारतीय वायुसेना के पायलट को वापस लौटना पाकिस्तान के लिए जरुरी है। इस कवेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को सभी परिस्थितियों में प्रिजनर ऑफ़ वॉर के साथ मानवीय व्यवहार करने की आवश्यकता है और पाकिस्तान चूँकि कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्ता है इसलिए उसे हर हाल में भारतीय पायलट को मानवीय बर्ताव प्रदान करना होगा और अंततः वापस भारत भेजना होगा।
पाकिस्तान की जिम्मेदारी, विंग कमांडर अभिनन्दन को चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएँ देने के अलावा (देखें जेनेवा कन्वेंशन (III) का अनुच्छेद 15), जाति, राष्ट्रीयता, धार्मिक विश्वास आदि के आधार पर किसी भी प्रतिकूल अंतर के बगैर उनके साथ समान बर्ताव की है (देखें जेनेवा कन्वेंशन (III) का अनुच्छेद 16)।
जेनेवा कन्वेंशन (III) का
अनुच्छेद 5 यह कहता है कि, "
...शत्रु के हाथों में गिरने और प्रिजनर ऑफ़ वॉर के अंतिम रिलीज और प्रत्यावर्तन तक जेनेवा कन्वेंशन अनुच्छेद 4 में उल्लेखित श्रेणियों के व्यक्तियों पर लागू होगा।" इसका सीधा मतलब है कि प्रिजनर ऑफ़ वॉर को कैद में लेने और उसकी अंतिम रिलीज तक, कन्वेंशन के तहत दायित्वों को सभी परिस्थितियों में निभाना पाकिस्तान का कर्त्तव्य है।
जेनेवा कन्वेंशन (III) का
अनुच्छेद 13, मानवीय बर्ताव को लेकर पाकिस्तान के ऊपर एक और जिम्मेदारी डालता है। यह अनुच्छेद बताता है कि युद्ध के कैदियों को "
हर समय, विशेष रूप से हिंसा या धमकी के खिलाफ और अपमान और सार्वजनिक जिज्ञासा के खिलाफ संरक्षित किया जाना चाहिए।" अब चूँकि पाकिस्तान द्वारा विंग कमांडर अभिनन्दन का एक वीडियो जारी किया गया है, तो यह कहा जा सकता है की पाकिस्तान द्वारा जेनेवा कन्वेंशन (III) के
अनुच्छेद 13 का उल्लंघन किया गया है।
लेकिन अधिकारी को वापस करने के लिए पाकिस्तान को किसी तय समय सीमा का पालन नहीं करना है। ऐसा ही एक वाकया 27 मई, 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान भी घटा था जब बटालिक सब-वे में दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करते हुए मिग -27 के पकड़े जाने के बाद उसे उड़ाने वाले लेफ्टिनेंट कंबम्पति नचिकेता को 1 सप्ताह से अधिक समय तक पाकिस्तानी हिरासत में रहना पड़ा, इसके बाद उन्हें भारत वापस भेज दिया गया।
(लेखक के विचार व्यक्तिगत है)