कलकत्ता हाईकोर्ट ने 'डायन' होने के संदेह में महिला का सिर काटने के दोषी व्यक्ति की मृत्युदंड की सजा कम की

Update: 2025-07-28 07:18 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने व्यक्ति की मृत्युदंड की सजा कम की, जिसे 'डायन' होने के संदेह में एक महिला का सिर काटने के आरोप में दोषी ठहराया गया था।

जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने कहा,

"सुधार गृह में उसका समग्र आचरण अच्छा पाया गया। उसकी उम्र भी सुनवाई योग्य है। इसके अलावा वह बस की छत से गिर गया, जिसके कारण उसकी मानसिक बीमारी हो गई, जो अक्सर हिंसक हो जाती थी। इसके कारण परिवार को उसे हिरासत में रखना पड़ा। हमारा मानना है कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए मृत्युदंड के बजाय आजीवन कारावास पर्याप्त सजा होगी। हम निचली अदालत द्वारा दी गई मृत्युदंड की पुष्टि करने के पक्ष में नहीं हैं।"

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि लिखित शिकायत की तुलना में अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में भिन्नता है। अपीलकर्ता के वकील की ओर से यह भी दलील दी गई कि अभियोजन पक्ष के गवाह विशेष रूप से अभियोक्ता 1 और अभियोक्ता 3 जिन्होंने घटना के प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा किया था, अत्यधिक संदिग्ध थे क्योंकि इन गवाहों के बयानों में पर्याप्त विरोधाभास थे।

वकील ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष की ओर से किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की गई, क्योंकि अभियोक्ता 1 और 3 पीड़िता के रिश्तेदार हैं और अत्यधिक रुचि रखने वाले गवाह हैं। अपीलकर्ता की दोषसिद्धि सुनिश्चित करने के लिए उनकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।

यह भी दलील दी गई कि जिस इलाके में घटना होने का दावा किया गया, वहां के किसी भी व्यक्ति की गैर-हाज़िरी या गैर-जिम्मेदाराना गवाही अभियोजन पक्ष के मामले को अत्यधिक संदिग्ध बनाती है।

वकील ने यह भी दलील दी कि निचली अदालत ने विवादित फैसले में कोई कारण नहीं बताया कि उसके पास मृत्युदंड देने के अलावा कोई विकल्प क्यों नहीं बचा। यह दलील दी गई कि निचली अदालत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची कि यह मामला दुर्लभतम से भी दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में आता है और उसने मृत्युदंड की सज़ा सुना दी। विवादित फैसले में यह निष्कर्ष नहीं निकाला गया कि अपीलकर्ता सुधार की स्थिति से बाहर है।

राज्य के वकील ने दलील दी कि पीड़िता को उसके घर से घसीटकर एक मंदिर के पास कुछ दूरी पर ले जाया गया, जहां अपीलकर्ता ने उसका सिर काट दिया। घटना के प्रत्यक्षदर्शी गवाह भी मौजूद थे। इसके अलावा, जहां तक चोट की प्रकृति और तरीके का सवाल है, चिकित्सा साक्ष्य भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अपीलकर्ता पीड़िता को उसके गांव के शिव मंदिर के पास ले गया और धारदार हथियार से उसका सिर काट दिया। वास्तविक शिकायतकर्ता ने अपनी लिखित शिकायत में आगे कहा कि इस घटना के बाद अपीलकर्ता एक हाथ में पीड़िता का सिर और दूसरे हाथ में धारदार हथियार लेकर सड़क पर नाचते हुए अपने घर लौट आया।

अदालत का तर्क

अदालत ने कहा कि उपरोक्त गवाहों के साक्ष्य से यह पूरी तरह से स्थापित हो गया कि पीड़िता को जबरन उसके घर से घसीटकर काली मंदिर ले जाया गया। उसे दंडवत किया गया और अपीलकर्ता ने उसकी गर्दन के पिछले हिस्से पर धारदार हथियार से वार किया, जिससे पीड़िता की अप्राकृतिक मृत्यु हो गई।

हालांकि अपील की सुनवाई के दौरान, अदालत ने आरोपी का मनोवैज्ञानिक, मेडिकल और सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन भी कराने का आदेश दिया था। रिपोर्टों से पता चला कि अपीलकर्ता 28 वर्ष का है और अविवाहित है। वह अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र है और उसकी कोई बहन नहीं है। उसने पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की और उसके बाद खेतिहर मजदूर और एक राजमिस्त्री के सहायक के रूप में काम किया।

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि अपीलकर्ता एक बार बस की छत से गिर गया और तब से उसे मानसिक बीमारी हो गई। इस बीमारी के कारण वह अक्सर हिंसक हो जाता था। उसे बांधकर रखा जाता था और उसका इलाज चल रहा था।

सामाजिक-आर्थिक रिपोर्ट के अनुसार न्यायालय ने पाया कि परिवार की सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। परिवार की शैक्षिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। परिवार गरीब और अशिक्षित है और परिणामों को समझने की स्थिति में नहीं है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अपीलकर्ता का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और सुधार गृह में उसका आचरण सामान्य था। वह शारीरिक रूप से स्वस्थ लेकिन मानसिक रूप से अवसादग्रस्त पाया गया।

ऐसी रिपोर्टों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित बाध्यकारी उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया।

केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य बनाम राधाकांत बेरा

Tags:    

Similar News