कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूर्व आरजी कर प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष की मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2024-08-22 06:43 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष की याचिका पर मीडिया आउटलेट्स को समाचार प्रसारित करने से रोकने का आदेश जारी करने से इनकार किया। पूर्व प्रिंसिपल ने मीडिया ट्रायल का आरोप लगाया है।

जस्टिस शम्पा सरकार की एकल पीठ ने घोष की याचिका अस्वीकार करते हुए मीडिया को एनिमेटेड नाटकीयता से बचने और व्यक्ति राय के बजाय वस्तुनिष्ठ समाचार प्रकाशित करने की चेतावनी दी।

कोर्ट ने कहा,

"मीडिया यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति (नागरिक समाज के सदस्य) राष्ट्रीय महत्व के मामले में भाग लें। इस मामले में घटना ने वैश्विक महत्व का दर्जा प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार इस मामले में सूचना का अधिकार मौलिक होगा क्योंकि नागरिक समाज का प्रत्येक सदस्य घटना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर रूप से प्रभावित होता है।"

आगे कहा गया,

"इस स्तर पर मीडिया या बिचौलियों पर किसी भी तरह का प्रतिबंध इस उम्मीद और विश्वास के अलावा कि वे जिम्मेदारी के साथ अपने कार्य का निर्वहन करेंगे आवश्यक नहीं है। पूछताछ प्रक्रिया से संबंधित समाचार याचिकाकर्ता नंबर 1 की भूमिका पर पूर्वाग्रह या टिप्पणी किए बिना प्रसारित किए जाने चाहिए। समाचार वस्तुनिष्ठ होना चाहिए न कि मीडिया की व्यक्तिपरक राय। मीडिया को जांच एजेंसी की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। मीडिया हाउस और बिचौलियों को पूछताछ का एनिमेटेड नाटकीयकरण प्रकाशित करने से बचना चाहिए।"

घोष ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि मीडिया घरानों ने 9 अगस्त, 2024 को आरजी कर अस्पताल में स्टूडेंट के साथ हुए बलात्कार और हत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में उनकी संलिप्तता के संबंध में असत्य, अवास्तविक और दुर्भावनापूर्ण कहानियां प्रकाशित की हैं।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार समाचार प्रकाशनों और सोशल मीडिया पोस्ट के परिणामस्वरूप जनता में गुस्सा चल रही जांच के प्रति पूर्वाग्रह, उनकी निजता के अधिकार का हनन और उनकी प्रतिष्ठा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 पर्याप्त उपाय प्रदान करते हैं और याचिकाकर्ता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी भी कथित आपत्तिजनक सामग्री को हटाने और ऐसे मध्यस्थों के खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए प्रार्थना करके संबंधित प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं।

ट्विटर (अब एक्स) की ओर से पेश हुए एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि उक्त प्रतिवादी मध्यस्थ है और पहले संदर्भित संहिता याचिकाकर्ताओं को पर्याप्त उपाय प्रदान करती है। याचिकाकर्ता किसी भी पूर्वाग्रही सामग्री को हटाने के लिए प्रार्थना करके उक्त संहिता 2021 के तहत आगे बढ़ सकते हैं। प्राधिकरण द्वारा शिकायत के तथ्यों और प्रकृति के आधार पर प्रावधानों को लागू किया जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं के निजता के अधिकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया घरानों के व्यापार के अधिकार के बराबर मानते हुए अदालत ने कहा कि घोष के बारे में समाचारों की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोकने वाला कोई भी सीधा आदेश जारी नहीं किया जा सकता है। यह माना गया कि यदि घोष किसी रिपोर्टिंग से व्यथित हैं तो उन्हें संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता होगी।

इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने मीडिया हाउस को अपनी रिपोर्टिंग में तथ्यात्मक और निष्पक्ष रहने की याद दिलाते हुए याचिका का निपटारा किया।

केस टाइटल- डॉ. संदीप घोष और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य

Tags:    

Similar News