एक बार अल्पसंख्यक संस्थान घोषित होने के बाद संगठन हमेशा अपना अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2025-03-07 07:00 GMT
एक बार अल्पसंख्यक संस्थान घोषित होने के बाद संगठन हमेशा अपना अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि एक बार किसी संगठन को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे दिया जाता तो उसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिलती रहेगी। उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह इस दर्जे को बरकरार रखने के लिए नियमित रूप से राज्य प्राधिकारियों से संपर्क करे।

अल्पसंख्यक विद्यालय के दर्जे को चुनौती देने वाला मामला चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस सी. चटर्जी (दास) की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया जिसने रिट याचिका को खारिज कर दिया।

खंडपीठ ने कहा,

"अल्पसंख्यक हमेशा अल्पसंख्यक ही रहता है।"

अदालत ने याचिकाकर्ता की अधिकारिता पर भी सवाल उठाया और कहा कि उसने ऐसे दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिन तक उसे नियमित रूप से पहुंच नहीं होती।

संगठन को अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने के लिए अल्पसंख्यक आयोग का प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं।

अदालत ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 30 की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कई निर्णय दिए हैं, जिसमें उसने कहा है कि जो विद्यालय अल्पसंख्यक विद्यालय है, वह अल्पसंख्यक बना रहेगा चाहे सरकार उसे अल्पसंख्यक घोषित करे या नहीं।

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में संगठन की अल्पसंख्यक संस्था के रूप में स्थिति घोषित करने वाले अल्पसंख्यक आयोग के प्रमाणपत्र की भी आवश्यकता नहीं होगी।

ऐसा कहते हुए अदालत ने रिट याचिका खारिज कर दी

टाइटल: तपस पाल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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