यूट्यूब पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य नेताओं का मजाक का आरोप, हाईकोर्ट ने मामला खारिज किया

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य राजनीतिक नेताओं का अपमानजनक टिप्पणी करने और उनका मजाक उड़ाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज किया।
मामला रद्द करते हुए जस्टिस अजय कुमार गुप्ता ने कहा,
"केस डायरी में उपलब्ध सामग्री की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद इस न्यायालय को वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई पर्याप्त या ठोस सबूत या यहां तक कि प्रथम दृष्टया मामला भी नहीं मिला। बिना किसी ठोस या अस्थिर सबूत के केवल आरोप पत्र दाखिल करना याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा जारी रखने के उद्देश्य से पर्याप्त नहीं होगा। यहां तक कि अगर तर्क के लिए कार्यवाही जारी रखी जाती है तो याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि की संभावना धूमिल और दूर की कौड़ी लगती है। इस तरह आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से अभियुक्त को बहुत अधिक उत्पीड़न और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ेगा। इसलिए आपराधिक कार्यवाही जारी रखना न्यायोचित नहीं होगा और न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए कार्यवाही रद्द किया जाना उचित है।"
वर्तमान आपराधिक पुनर्विचार आवेदन याचिकाकर्ता/अभियुक्त द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत दायर किया गया, जिसमें शिकायत से उत्पन्न कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि 2022 में वर्तमान याचिकाकर्ता ने अन्य व्यक्तियों के साथ आपराधिक साजिश में प्रवेश किया और पश्चिम बंगाल राज्य की मुख्यमंत्री के खिलाफ यूट्यूब पर अपमानजनक भाषण प्रसारित किया और उनका और अन्य राजनीतिक नेताओं का मजाक उड़ाया, जिसका एकमात्र उद्देश्य लोगों को बदनाम करना और समाज के भीतर सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालकर शांति भंग करना था।
याचिकाकर्ता के अनुसार वह पूरी तरह से निर्दोष है। किसी भी तरह से कथित अपराध में शामिल नहीं है। उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया, जबकि कथित अपराध के कमीशन में उसकी कोई भूमिका नहीं है। आपराधिक कार्यवाही स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता पर बदला लेने के गुप्त उद्देश्य से दुर्भावनापूर्ण इरादे से की गई। इसलिए उनके अनुसार, यदि कार्यवाही जारी रहने दी गई तो यह कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग होगा और याचिकाकर्ता को भी बहुत परेशान करेगा।
यह भी कहा गया कि जांच अधिकारी ने उचित जांच किए बिना टेबल वर्क के आधार पर यांत्रिक रूप से आरोप पत्र दायर किया, क्योंकि यह मामला मुख्यमंत्री के खिलाफ अपमानजनक भाषण से संबंधित है, जबकि कोई भी पर्याप्त प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध नहीं थी।
यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने बिना विवेकपूर्ण दिमाग लगाए या प्रथम दृष्टया मामले पर गौर किए, जांच अधिकारी द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत किए जाने मात्र पर संज्ञान ले लिया।
राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि जांच के दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153/500/501/509/505/120बी के तहत प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त सामग्री एकत्र की गई।
यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता राज्य की मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर अपमानजनक वीडियो और भाषण प्रसारित करने में शामिल था और उनका और अन्य राजनीतिक नेताओं का मजाक उड़ाया, जिसका एकमात्र उद्देश्य उन्हें बदनाम करना था।
अदालत के निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि हालांकि 2021 के विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में आरोप गंभीर थे लेकिन जांच अधिकारी इसकी कोई क्लिप एकत्र नहीं कर सके और आरोप पत्र दाखिल करते समय गवाहों के बयानों पर भरोसा किया।
अदालत ने कहा,
"पूरे मामले के रिकॉर्ड से यह अदालत यह नहीं पाती है कि मोबाइल को विशेषज्ञ की राय के लिए भेजा गया, जिससे यह पता लगाया जा सके कि उसी गैजेट का इस्तेमाल कथित अपमानजनक वीडियो या भाषण के प्रसारण के लिए लोगों को बदनाम करने और समाज के भीतर सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालकर शांति भंग करने के एकमात्र इरादे से किया गया। इसके अलावा शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए यूट्यूब चैनल से वीडियो क्लिप या भाषण का कोई डेटा प्राप्त नहीं किया गया।"
तदनुसार इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की सुस्थापित स्थिति को देखते हुए अदालत ने आरोपपत्र में सबूतों की कमी को नोट किया और याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला रद्द कर दिया।
केस टाइटल: सौरव पॉल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य