पूर्वी भारत में धार्मिक प्रथाएं उत्तर भारत से अलग, उन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता: पशु बलि पर अंकुश लगाने की याचिका पर कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट की अवकाश पीठ ने टिप्पणी की कि पूर्वी भारत में धार्मिक प्रथाएं उत्तर भारत से भिन्न हैं इसलिए उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना यथार्थवादी नहीं होगा, जो कई समुदायों के लिए आवश्यक धार्मिक प्रथा बन सकती हैं।
जस्टिस विश्वजीत बसु और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ अखिल भारतीय गो सेवक संघ की एक सतत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बोल्ला काली पूजा के अवसर पर कोलकाता के बोल्ला काली मंदिर में पशुओं की बलि पर अंकुश लगाने की माँग की गई।
पिछले साल चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से भी वर्तमान संगठन ने बोल्ला काली पूजा के अवसर पर 10,000 बकरियों के कथित वध पर रोक लगाने के लिए संपर्क किया था।
उस अवसर पर पीठ ने पशु बलि को रोकने के लिए किसी भी अंतरिम राहत से इनकार किया था। हालांकि, पीठ ने पश्चिम बंगाल में पशु बलि की वैधता के बड़े सवाल पर विचार करने पर सहमति जताई।
वर्तमान सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने शुक्रवार को होने वाली जानवरों की बलि को रोकने के लिए फिर से तत्काल राहत मांगी थी।
पीठ ने कहा कि इस दलील के बावजूद कि पशु बलि आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है उत्तर भारत और पूर्वी भारत के बीच आवश्यक प्रथा का गठन किस तरह होता है। यह बहुत अलग-अलग होगा।
पीठ ने टिप्पणी की,
यह विवाद का विषय है कि पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी।”
यह देखते हुए कि कार्यान्वयन की असंभवता और याचिकाकर्ताओं द्वारा स्पष्ट मामला बनाए बिना इस तरह का व्यापक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, पीठ ने अंतरिम राहत से इनकार किया और मामले को नियमित पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।