यदि कर्मचारी औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा के बाद भी निरंतर सेवा साबित करता है तो उसे ग्रेच्युटी का भुगतान पाने का अधिकार: कलकत्ता हाइकोर्ट

Update: 2024-05-06 06:50 GMT

कलकत्ता हाइकोर्ट के जस्टिस अरिंदम मुखर्जी की सिंगल बेंच ने माना कि औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा के बाद भी वह अपनी निरंतर सेवा के लिए ग्रेच्युटी का हकदार है। पीठ ने कहा कि ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए निरंतर सेवा की अवधि की स्थापना शर्त है और सबूत का भार कर्मचारी पर है।

संक्षिप्त तथ्य

कर्मचारी को 18 अक्टूबर 1968 को बज बज कंपनी द्वारा नियोजित किया गया और 25 जून, 1978 को भुगतान की स्थिति प्राप्त हुई। कर्मचारी को 7 जुलाई, 2006 को रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने पर रिटायर किया गया। वहीं वह 15 जुलाई 2012 तक काम करता रहा। इसलिए कामगार ने तर्क दिया कि काम की इस अतिरिक्त अवधि को ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए माना जाना चाहिए।

शुरू में कामगार ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 (Payment of Gratuity Act, 1972) के तहत नियंत्रण प्राधिकरण के समक्ष ग्रेच्युटी के लिए दावा दायर किया। नियंत्रण प्राधिकरण ने ब्याज सहित ग्रेच्युटी राशि की गणना 67,643 रुपये की। 18 अक्टूबर 1968-24 जून 1978 और 7 जुलाई 2006-15 जुलाई 2012 की अवधि के ग्रेच्युटी के बहिष्कार के बावजूद इस निर्णय को कामगार ने बिना किसी चुनौती के स्वीकार कर लिया।

हालांकि प्रबंधन ने नियंत्रण प्राधिकरण के निर्णय पर विवाद किया और मामले की अपील की। ​​9 जून 2023 को अपीलीय प्राधिकरण ने कामगार के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें वर्ष 1974 के लिए ग्रेच्युटी प्रदान की गई और ग्रेच्युटी गणना के प्रयोजनों के लिए कुल तीस वर्षों की निरंतर सेवा की अनुमति दी गई। इस निर्णय ने प्रभावी रूप से नियंत्रक प्राधिकरण के निर्णय को पलट दिया तथा मामले को ग्रेच्युटी राशि की पुनर्गणना के लिए वापस भेज दिया।

अपीलीय प्राधिकरण के निर्णय के पश्चात नियंत्रक प्राधिकरण ने ग्रेच्युटी की पुनर्गणना की तथा प्रबंधन द्वारा कर्मचारी को देय 88,200/- रुपए की मूल राशि प्राप्त की। पूर्व में भुगतान की गई 44,077/- रुपए की राशि को समायोजित करने के पश्चात नियंत्रक प्राधिकरण ने निर्धारित किया कि कर्मचारी को अभी भी 44,123/- रुपए बकाया हैं। साथ ही अतिरिक्त ब्याज भी। हालांकि 18 अक्टूबर 1968-24 जून 1978 तथा 7 जुलाई 2006-15 जुलाई 2012 की अवधि को अभी भी ग्रेच्युटी की गणना में शामिल नहीं किया गया।

अपवर्जन के आधार पर कर्मचारी ने कलकत्ता हाइकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की, जिसमें नियंत्रक प्राधिकरण के प्रारंभिक निर्णय तथा उसके पश्चात अपीलीय प्राधिकरण के निर्णय दोनों को चुनौती दी गई।

हाइकोर्ट की टिप्पणियां

हाइकोर्ट ने पाया कि कर्मचारी पांच वर्षों तक प्रत्येक वर्ष 240 दिनों तक लगातार रोजगार का प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल रहा, जो 18 अक्टूबर, 1968 और 24 जून 1978 के बीच ग्रेच्युटी पाने के लिए शर्त थी। हालांकि, अपीलीय प्राधिकरण ने उस वर्ष कर्मचारी के 240 दिनों के अनुमानित कार्य के आधार पर 1974 के लिए ग्रेच्युटी प्रदान की। अपीलीय प्राधिकरण ने 25 जून, 1978 और 7 जुलाई, 2006 के बीच निरंतर सेवा की पुष्टि की तथा कार्य निलंबन के दौरान ग्रेच्युटी के विरुद्ध प्रबंधन का तर्क खारिज कर दिया।

हाइकोर्ट ने यह भी माना कि 1968 से 1973 तक लगातार रोजगार साबित करने का भार कर्मचारी पर था। कर्मचारी ऐसा करने में विफल रहा।

7 जुलाई 2006 से 15 जुलाई, 2012 (रिटायरमेंट के बाद की अवधि जब तक कर्मचारी काम करता रहा) की अवधि के संबंध में हाइकोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया, क्योंकि प्रबंधन निरंतर सेवा का खंडन करने में विफल रहा।

परिणामस्वरूप हाइकोर्ट ने मामले को अपीलीय प्राधिकरण को विचाराधीन अवधि के लिए ग्रेच्युटी और ब्याज की गणना करने के लिए वापस भेज दिया। इसने प्राधिकरण को चार महीने के भीतर मौजूदा साक्ष्य पर विचार करने का निर्देश दिया और प्रमाणित प्रतियों की आवश्यकता के बिना अनुपालन अनिवार्य कर दिया। अंत में रिट याचिका का तदनुसार निपटारा किया गया।

केस टाइटल: एस.के. एकबाल @ एकबाल एस.के. बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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