[S. 498A IPC] दूसरी पत्नी सिर्फ़ इसलिए क्रूरता की दोषी नहीं, पति ने पहली पत्नी के जीवनकाल में उससे शादी की: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2024-11-20 06:41 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने व्यक्ति की दूसरी पत्नी के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला खारिज किया जिसमें धारा 498A (क्रूरता), धारा 494, 406 और धारा 506 शामिल हैं। साथ ही दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत उसकी पहली पत्नी द्वारा दर्ज मामला भी खारिज कर दिया।

जस्टिस शम्पा (दत्त) पॉल ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा,

“IPC की धारा 494 के तहत आरोपित अपराध उस व्यक्ति पर लागू होता है, जिसने अपने जीवनसाथी के जीवनकाल में वैध विवाह में दूसरी बार विवाह किया। उक्त शिकायत में आरोपित कोई भी अपराध याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होता, जो निश्चित रूप से शिकायतकर्ता के पति का रिश्तेदार नहीं है।"

उन्होंने कहा,

"याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप यह है कि वह शिकायतकर्ता के पति की दूसरी पत्नी है। दूसरी शादी का उक्त आचरण प्रथम दृष्टया शिकायतकर्ता के पति के संबंध में लागू होता है और आरोपित अपराधों के तत्व प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होते हैं।"

यह याचिका याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने के लिए दायर की गई, जिसने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 ने वर्तमान कार्यवाही को परेशान करने वाले तरीके से शुरू किया।

न्यायालय ने नोट किया कि उक्त शिकायत में आरोपित कोई भी अपराध याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होता जो निश्चित रूप से शिकायतकर्ता के पति का रिश्तेदार नहीं है। याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप यह है कि वह शिकायतकर्ता के पति की दूसरी पत्नी है।

इसमें कहा गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 494 उस व्यक्ति पर लागू होती है, जिसने वैध विवाह में अपने जीवनसाथी के जीवनकाल के दौरान दूसरी बार विवाह किया, न कि इस मामले में याचिकाकर्ता पर।

न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता के पति के संबंध में दूसरी शादी करना प्रथम दृष्टया लागू होता है तथा आरोपित अपराधों के तत्व प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होते।

यह भी माना कि शेष अपराध धारा 498ए/406/506 आईपीसी के अंतर्गत होने के कारण भी प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के संबंध में लागू नहीं होते। धारा 506 आईपीसी के अंतर्गत अपराध गठित करने के लिए आवश्यक तत्व भी याचिकाकर्ता के संबंध में मौजूद नहीं हैं।

कोर्ट ने माना कि वर्तमान याचिकाकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही कानून की दृष्टि से खराब है। ऐसी कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग होगा। इस प्रकार उन्होंने कार्यवाही रद्द की।

केस टाइटल: सागरी हेम्ब्रम - बनाम - पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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