2008 Malegaon Blast: प्रज्ञा ठाकुर और अन्य आरोपियों को बरी करने के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती
2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले के पीड़ितों ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें पूर्व भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
निसार अहमद सैय्यद बिलाल द्वारा दायर अपील पर जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रंजीतसिंह भोंसले की खंडपीठ 15 सितंबर को सुनवाई कर सकती है।
अन्य पीड़ितों शेख लियाकत मोहिउद्दीन, शेख इशाक शेख यूसुफ, उस्मान खान ऐनुल्लाह खान, मुश्ताक शाह हारून शाह और शेख इब्राहिम शेख सुपदो ने भी बिलाल के साथ वकील अब्दुल मतीन शेख के माध्यम से अपील दायर की।
उल्लेखनीय है कि स्पेशल कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करते हुए यह माना कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि विस्फोट वाली बाइक प्रज्ञा की थी। अदालत ने आगे कहा कि दक्षिणपंथी नेता विस्फोट से कम से कम दो साल पहले 'साध्वी' बन गईं और 'भौतिक संसार' त्याग दिया। अदालत को उनके या किसी अन्य आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
सह-आरोपी कर्नल पुरोहित के आवास पर आरडीएक्स रखे जाने के बारे में अदालत ने कहा कि विस्फोटकों के भंडारण के बारे में कोई ठोस सबूत रिकॉर्ड में नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित द्वारा स्थापित संगठन 'अभिनव भारत' ने अपने धन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया।
वर्ष 2018 में मुकदमा शुरू होने के बाद इस मामले में फैसला 19 अप्रैल, 2025 को सुरक्षित रखा गया। इस मामले में पूर्व BJP सांसद ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (रिटायर) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी सहित सात आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।
यह विस्फोट 29 सितंबर, 2008 को हुआ था, जब मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट किया गया। इस मामले की जांच शुरू में शहीद पुलिसकर्मी हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) द्वारा की गई। इसने ठाकुर और पुरोहित सहित सभी 12 आरोपियों के खिलाफ जनवरी 2009 में आरोप पत्र दायर किया, जिन्हें विस्फोट के महीनों बाद गिरफ्तार किया गया।
हालांकि, 2011 में यह मामला राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के हाथ में आ गया, जिसने 13 मई, 2016 को अपना पूरक आरोपपत्र दाखिल किया।
ATS की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि ठाकुर और दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के संस्थापक पुरोहित ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर मुस्लिम समुदाय को 'बदला' लेने और 'आतंकित' करने की साजिश रची। इसमें आगे कहा गया कि भोपाल, इंदौर और अन्य जगहों पर कई 'षड्यंत्र बैठकें' हुईं।
ATS के अनुसार, ठाकुर ने मोटरसाइकिल उपलब्ध कराई, जिसका इस्तेमाल विस्फोट को अंजाम देने के लिए किया गया। ATS ने कहा कि उक्त मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी।
ATS ने अपने आरोपपत्र में सभी आरोपियों के खिलाफ कठोर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) सहित कई आरोप लगाए।
NIA 2011 से 2016 तक ठाकुर की किसी भी राहत का विरोध करती रही। हालांकि, आतंकवाद-रोधी एजेंसी ने पूरी तरह पलटवार करते हुए अपने 'पूरक आरोपपत्र' में उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। हालांकि, इसने अन्य आरोपियों के खिलाफ ATS का बयान बरकरार रखा और उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम सहित कई कठोर कानूनों के तहत आरोपपत्र दायर किया।
ATS के विपरीत NIA के आरोपपत्र में कहा गया कि उसे ठाकुर के खिलाफ कोई महत्वपूर्ण सबूत नहीं मिला। इसके बजाय ATS पर ठाकुर के खिलाफ बयान दर्ज करने के लिए गवाहों को 'प्रताड़ित' करने का आरोप लगाया। एजेंसी ने सभी 12 आरोपियों के खिलाफ MCOCA के आरोपों को हटाने की भी सिफारिश की थी।
यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि NIA ने अपने नामित विशेष लोक अभियोजक (SPP) अविनाश रसाल को सूचित किए बिना नाटकीय ढंग से अपना आरोपपत्र दायर किया था।
हालांकि, स्पेशल कोर्ट ने NIA द्वारा ठाकुर को क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद उन्हें बरी करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा था कि वह ATS द्वारा उसके खिलाफ पेश की गई आपत्तिजनक सामग्री की अनदेखी नहीं कर सकती।
गौरतलब है कि यह मामला कई विवादों के कारण सुर्खियों में रहा है। रसल से पहले विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान थीं, जिन्हें अचानक पद से हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने आरोप लगाया कि NIA ने उनसे मामले में गिरफ्तार दक्षिणपंथी नेताओं के खिलाफ 'नरम रुख' अपनाने को कहा था।